22 हेनरी जेम्स

 

पाठ का प्रारूप

  1. पाठ का उद्देश्य
  2. प्रस्तावना
  3. फ्रांसीसी परिदृश्य और कथालोचन
  4. हॉर्थन की समीक्षा
  5. कथा-लेखन एक कला रूप है
  6. चेतना के ब्लॉक्स वाला कथा-स्थापत्य
  7. निष्कर्ष

 

  1. पाठ का उद्देश्य

इस पाठ के अध्ययन के उपरान्त आप –

  • हेनरी जेम्स का साहित्यिक परिचय प्राप्‍त कर सकेंगे।
  • फ्रांसीसी परिदृश्य और कथालोचन पर उनके विचार जान सकेंगे।
  • हॉर्थन की समीक्षा सम्बन्धी उनके दृष्टिकोण से अवगत हो सकेंगे।
  • कथा लेखन सम्बन्धी हेनरी जेम्स के विचार जान सकेंगे।
  • हेनरी जेम्स का समग्र मूल्यांकन कर सकेंगे।
  1. प्रस्तावना

हेनरी जेम्स (सन् 1843-सन् 1916) एक अमेरिकन कथाकार और साहित्य-चिन्तक थे। वे अपने जीवनकाल के आखिरी दौर में, अपनी मृत्यु से एक वर्ष पूर्व सन् 1915 में ब्रिटिश नागरिक हो गए थे। हेनरी जेम्स की ख्याति एक रचनाकार और आलोचक की है। उन्होंने कहानियाँ, नाटक, यात्रा-वृत्तान्त और आत्मकथा जैसी विधाओं में लेखन किया। उन्होंने अंग्रेजी में महत्त्वपूर्ण उपन्यास लिखे। अतः उनकी ख्याति एक उपन्यासकार और उपन्यास के आलोचक की है। कुछ विद्वानों का मत है कि वे शुद्ध आलोचक कभी रहे ही नहीं। वे तो उपन्यासकार हैं और अपने उपन्यास लेखन के अनुभवों को उन्होंने उपन्यास की भूमिकाओं में लिखा। टी.एस. इलियट तो यहाँ तक कहते हैं कि हेनरी जेम्स आलोचक हैं ही नहीं। इसी तरह उन पर यह भी आरोप लगता है कि अपने समकालीनों पर लिखा गया उनका लेखन पूर्वग्रहग्रस्त है। वे अपने आपको स्थापित करने के लिए उनकी अनावश्यक कटु आलोचना करते हैं। हालाँकि कुछ लोग उन्हें सही अर्थों में साहित्य का आलोचक मानते हैं। उनका यह भी कहना है कि वे अत्यन्त गहराई से कला के दर्शन की चर्चा करते हैं।

 

इस सन्दर्भ में एक बात और महत्त्वपूर्ण है कि हेनरी जेम्स ऐसे पहले आलोचक हैं जिनका उल्लेख पाश्‍चात्य काव्यशास्‍त्र के भीतर होता है। आरम्भ में पाश्‍चात्य काव्यशास्‍त्र का सम्बन्ध यूनान से था। बाद में इटली इसमें शामिल हुआ। इसके बाद फ्रांस, इंग्लैण्ड आदि देशों के चिन्तक आने लगे। भारतीय विश्‍वविद्यालयों में मुख्यतः अंग्रेजी चिन्तकों की चर्चा होती रही। हेनरी जेम्स के बाद पाश्‍चात्य काव्यशास्‍त्र यूरोपीय-अमेरिकी आलोचना हो गई। इस दृष्टि से भी हेनरी जेम्स महत्त्वपूर्ण आलोचक हैं। एक आलोचक के रूप में हेनरी जेम्स ने ‘कथा या वृत्तान्त की सैद्धान्तिकी’ का निर्माण करने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। इसका महत्त्व आज भी अनेक रूपों में पुनर्व्याख्यायों का आधार होने के कारण कायम है।

 

हेनरी जेम्स अमेरिकन-चित्त तथा वहाँ के लोगों के व्यक्तित्व को यूरोपियनों की तुलना में अधिक निश्छल, वर्तमान-प्रेरित और सरल मानते थे। अपने किशोर-काल से ही उन्हें बार-बार यूरोप की यात्राओं का अवसर मिला था। जिस यूरोप को हेनरी जेम्स ने देखा था, वह विश्‍वयुद्धों से ठीक पहले वाला यूरोप था। वह अपने साम्राज्यवादी विस्तार को विश्‍व के सभ्यताकरण के रूप में देखता था। हेनरी जेम्स की उस दौर में की गई बहुत से देशों की यात्राएँ, ‘ऐतिहासिक कथ्य’ के दृष्टिकोण के साथ-साथ इतिहास के मनोवैज्ञानिक अन्तर्व्यक्तित्व’ को समझने के लिये समर्पित नज़र आती हैं। उस दौर का इतिहास उनकी कथाओं, यात्रा-वृत्तान्तों और उनके पात्रों के ‘मनोवैज्ञानिक अन्तर्गठन’ में देखा जा सकता है। उनकी किताबों के शीर्षक उनकी इस दृष्टि को प्रमाणित करने के लिए पर्याप्‍त हैं। उदाहरण के लिए द अमेरिकन, द यूरोपियन, द इटेलियन आवर तथा द इंग्लिश आवर को देखा जा सकता है। स्पष्ट है कि यहाँ उनका मुख्य चिन्तन-परिप्रेक्ष्य है– अमेरिका और यूरोप की आपसी तुलना।

 

हेनरी जेम्स के लेखन को मुख्यतः तीन पड़ावों में विभाजित किया जाता है। पहला पड़ाव सन् 1865 से सन् 1880 तक का है। इसकी परिणति द पोर्टट ऑफ अ लेडी   के प्रकाशन के रूप में होती है। इस दौर की उनकी सुप्रसिद्ध आलोचना पुस्तकें हैं–फ्रेंच पाट्स एण्ड नावलिस्ट (सन् 1878) तथा ॉर्थोन (सन् 1879)। उनके लेखन का दूसरा पड़ाव सन् 1880 से सन् 1900 तक का है। इस दौर में उनका सर्वाधिक चर्चित लेख द आर्ट ऑफ फिक्शन (सन् 1884) है। कुछ उपन्यासों की भूमिकाओं में भी उन्होंने अपनी आलोचना की धारणाओं पर विचार किया है। उसके लेखन का आखिरी पड़ाव सन् 1900 से सन् 1916 तक माना जा सकता है।

 

एक आलोचक के रूप में हेनरी जेम्स ने कथा या वृत्तान्त (नेरेटिव) केन्द्रित साहित्य-चिन्तन  किया। इस चिन्तन  ने अमेरिका व यूरोप में उपन्यास-विधा को साहित्य की गम्भीर  एवं अर्थपूर्ण विधा के रूप में स्थापित किया। इससे पहले उपन्यास और कहानी को एक विधा के रूप में इतना महत्त्वपूर्ण नहीं माना जाता था। यह एक सर्वविदित तथ्य है कि उपन्यास का जन्म ही एक आधुनिक विधा के रूप में हुआ है। अठारहवीं शती से पूर्व जो गल्प-कृतियाँ मिलती हैं, उन्हें विधिवत आधुनिक उपन्यास या कहानी का दर्जा नहीं दिया जा सकता। इनमें नाटकों या महाकाव्यों के कथानकों के रूप में प्रयुक्त होकर कथा गम्भीर रचनात्मक साहित्य का हिस्सा बनती थी। परन्तु स्वतन्त्र रूप में उसका परी-कथाओं या मिथकों वाला रूप ही प्रचलित था, जिसमें अविश्‍वसनीय घटनाएँ होती थीं तथा जिनमें कारण-कार्य-मूलक अन्तर्विकास की कमी थी। आधुनिक कथा से ताल्लुक रखने वाले डॉक्‍व‍िग्जोट  जैसे आरम्भिक उपन्यास ‘रोमांसकथाओं’ के विकास ही थे।

 

हेनरी जेम्स के समय तक उपन्यास को मुख्यतः ‘स्‍त्रि‍यों के द्वारा अधिक पढ़ी जाने वाली विधा’ एवं ‘मध्यवर्ग का मनोरंजन करने वाली विधा’ की तरह देखा जाता था। हालाँकि हॉर्थोन, डिकेन्स, जॉर्ज इलियट तथा उनसे पहले के टॉमस हार्डी के उपन्यासों में इतिहास और मानवीय मूल्यों की भव्यता  दिखाई देती थी। इसके बावजूद ‘कथा सम्बन्धी  साहित्य-चिन्तन  एवं सैद्धान्तिकी’ पर गहराई से विचार न होने के कारण उपन्यास को वह स्थान नहीं मिल पा रहा था जो काव्य अथवा नाटक को मिला हुआ था। हेनरी जेम्स ने कला की ‘सैद्धान्तिकी’ को इतनी गहराई से स्थापित किया कि उनके बाद उपन्यास साहित्य की केन्द्रीय विधा के रूप में स्वीकृत हो गया। परिणाम यह हुआ कि कुछ आलोचक उपन्यास को ‘आधुनिकबोध की सर्वाधिक सशक्त अभिव्यक्ति करने वाली विधा’ की तरह देखने लगे।

  1. फ्रांसीसी परिदृश्य और कथालोचन

सन् 1878 में हेनरी जेम्स की किताब फ्रेंच पोट्स एण्ड नवलिस्ट का प्रकाशन हुआ। इसके प्रकाशन के कारण फ्रांस में उनका लम्बा प्रवास था। इसी दौर में उन्होंने फ्रेंच सीखी तथा मूल रूप में फ्रेंच साहित्य का अध्ययन किया। एक कथाकार के रूप में वे बाल्ज़ाक से सर्वाधिक प्रभावित हुए। शायद इसीलिए उन्होंने यहाँ तक लिखा कि अगर दुनिया का सारा साहित्य संकट में हो और उसमें किसी एक को बचाने की नौबत आए तो वे बाल्ज़ाक को चुनेंगे। बाल्जाक में उन्हें बुर्जुआ पतनशीलता और उसकी छाया में बदलते शेष समाज के सांस्कृतिक-नैतिक विघटन के प्रामाणिक चित्रण दिखाई दिए। साथ ही चरित्रों के ‘प्राकृतिक व प्रान्तीय अन्तर्गठन’ का बोध भी मिला। उनके अनुसार यह पूरी ‘मानवजाति की सामाजिक-सांस्कृतिक पुनर्रचना’ का आधार हो सकता था। सभी पात्रों में ‘शुभ के साथ अशुभ की मौजूदगी’ बाल्ज़ाक को यथार्थ के करीब लाती थी। हेनरी जेम्स की इस किताब में जिन रचनाकारों के साहित्य का विश्‍लेषण हुआ है, उनमें बॉद्रिला, फ्लावेयर, बाल्जाक, जॉर्ज सैंक, अल्फ्रेड मुसल और रूस से सबद्ध लेखक तुर्गनेव आदि मुख्य हैं।

  1. ॉर्थन की समीक्षा

नेथेनियल हॉर्थोन पर लिखी किताब हॉर्थोन (सन् 1879) हेनरी जेम्स की स्वतन्त्र आलोचना पुस्तकों में से एक है। नेथेनियल हॉर्थोन (सन् 1804-64) विक्टोरियन काल के महत्त्वपूर्ण उपन्यासकार थे। वे स्कारलेट लेटर (सन्1850) तथा हाऊस ऑफ सेतन गेवल्स (सन् 1851) के लिए अधिक प्रसिद्ध हुए। उनकी रचनाओं में नवशास्‍त्रीय नैतिकतावाद के विघटन में पैदा हुए सांस्कृतिक संकट को समाजेतिहास की विकास-प्रक्रियाओं की पृष्ठभूमि में प्रस्तुत किया गया है। ऐसा करने के लिए वे अनेक दफा जादू-टोने तथा अतिमानवीय अस्तित्व को आधार बनाकर पैदा होने वाली मनोवैज्ञानिक जटिलताओं को पाठकों के सम्मुख लाते हैं।

 

हेनरी जेम्स के उपन्यासों में भी इतिहास की पृष्ठभूमि में पैदा होने वाली पात्रगत मनोवैज्ञानिक जटिलता की प्रस्तुति मिलती है। इस लिहाज से वे हॉर्थोन की परम्परा को आगे बढ़ाते प्रतीत होते हैं। बावजूद इसके अपनी इस आलोचना पुस्तक में जेम्स ने हॉर्थोन की उपन्यास-कला की अनेक कमियों पर उँगली रखने का प्रयास किया है। इस सन्दर्भ में अनेक विद्वानों का मत है कि हॉर्थोन के प्रति हेनरी जेम्स की निर्भयता ‘वस्तुनिष्ठ’ नहीं है। सम्भवतः वे अपने पूर्ववर्ती समकालीन लेखक के प्रति किसी आन्तरिक प्रतिस्पर्द्धा के कारण उनके प्रति इतने निर्मम हुए होंगे। यह भी सत्य है कि हॉर्थोन के प्रति उनकी विवादास्पद धारणाओं ने अधिक उल्लेखनीय और पुनर्विवेचनीय बना दिया था। इसका परोक्ष लाभ हॉर्थोन को ही पहुँचा था।

  1. कथा-लेखन एक कला-रूप है

कथा की कला  हेनरी जेम्स का एक लम्बा लेख है। यह सन् 1884 में प्रकाशित हुआ। यह समय जेम्स के लेखन का प्रौढ़ काल माना जाता है। इस लेख के प्रकाशन के साथ जेम्स एक कथालोचक के रूप में स्वीकृत-प्रतिष्ठित हो गए। यह आलेख अपनी गहराई और मौलिकता के कारण अभी तक कथालोचन की नई-नई व्याख्याओं के लिए प्रस्थान बिन्दु है। यह आलेख कथालोचना की विधिगत सैद्धान्तिकी तैयार करने वाला पहला महत्त्वपूर्ण कार्य  माना जाता है। इस आलेख में प्रस्तुत हेनरी जेम्स के विचारों को संक्षेप में जान लेना उपयोगी होगा।

  • कथा-लेखन काव्य तथा अन्य कोमल-कलाओं से तुलनीय है।

हेनरी जेम्स का मानना था कि चित्र, मूर्ति, स्थापत्य या काव्यकृति  की तरह ही एक ‘अच्छी कथा’ में अपनी विशेषताएँ होती हैं। इन विशेषताओं के अभाव में कथा अपनी श्रेष्ठता को खो देती है। अर्थात् हेनरी जेम्स के अनुसार कथा का मूल्यांकन करने की कसौटी यह है कि वह एक कला-रूप जैसी है अथवा नहीं?

  • कला-रूप धारण करने के लि कथा अनेक नियमोंसे मर्यादित होती है।

हेनरी जेम्स ने कथा को कला-रूप बनाने वाले नियमों की मुख्यतः तीन कोटियाँ रेखांकित की हैं :

 

क. अन्तःसंगति के नियम

ख. आनुपातिकता के नियम

ग. परिप्रेक्ष्य और घटनाओं के रिश्तों के नियम

  • कथा में अन्तःसंगति का आधार है – उसकी जैविक-आनुषंगिकता

हेनरी जेम्स कथा को एक जीते-जागते प्राणी की तरह ‘जैविक-आनुषंगिकता’ से युक्त मानते थे। उनके लिए कथा के सभी तत्त्व उसके ‘अंगों’ की तरह होते हैं।  ये सभी आपस में मिल-जुल कर काम करते हैं। इस प्रकार पूरी देह अपना काम करती है। जीते-जागते प्राणियों की देह में छोटे-बड़े सभी अंगों का महत्त्व बराबर होता है। एक भी अंग खराब होने से पूरी देह बीमार पड़ सकती है। जेम्स का मानना था कि ठीक ऐसा ही कथा की देह के साथ भी होता है। कथा के सभी तत्त्वों को कथा की देह में विलय होने पर ही कथा अन्तःसंगति प्राप्‍त करती है और सुचारु रूप से कार्य करती है।

  • सभी अंगों का महत्त्व बराबर होने पर भी वे सापेक्षिक-आनुपातिकता की मर्यादा में बन्धे हुए होते हैं।

कथा का लेखक जानता है कि कथा के किस तत्त्व को कब और कितना महत्त्व दिया जाए, कथा के सभी घटक हर समय एक ही तरह की आनुपातिकता में काम नहीं करते। पात्रों की मनःस्थितियाँ या उद्देश्य भी जरूरतें तय करती हैं कि कब किस स्थिति में कथा के किस तत्त्व को अधिक महत्त्व दिया जाना चाहिए।

 

क. परिप्रेक्ष्य से संचालित होकर भी घटनाओं के लि वह परोक्ष रहता है।

 

किसी भी उपन्यास में समग्रता में घटनाओं और पात्रों का विलय जरूरी होता है। कथा में चित्रण घटनाओं और पात्रों का ही होता है। समग्रता पृष्ठभूमि में रहती है जिसे घटनाएँ, पात्र-स्थितियाँ-उद्देश्य आदि घटक-तत्त्व व्यंजित करते हैं। परिप्रेक्ष्य अभिव्यक्त और अनभिव्यक्त के बीच के खाली प्रदेश में रहता है। इसे समझने के लिए हेनरी जेम्स की एक कहानी में चित्रित एक घटना अक्सर उद्धृत की जाती है। इस कहानी में एक महिला का ‘चित्र’ बनाया जा रहा है। चित्रकार जिस भाव को चित्रित करना चाहता है, वह भाव उसे उस पात्र में अनुपस्थित लगता है। वह जो चित्र बनाता है, वह वास्तविक महिला का ‘प्रतिबिम्ब’ न होकर, चित्रकार की अपनी ‘रचना’ जैसा होता है। उसमें व्यंजित ‘भावगत परिप्रेक्ष्य’ यथार्थ होकर भी यथार्थ के परे रहता है। अर्थात् ‘व्यंजित परिप्रेक्ष्य’, कथा के सभी घटकों का कुल जोड़ न होकर, उससे कहीं अधिक होता है। परन्तु वह केवल ‘कल्पना-प्रसूत’ व ‘अवास्तविक अमूर्त्तता’ जैसा भी नहीं होता। वह यथार्थ होता है, फिर यथार्थ नहीं भी होता है।

 

ख. जीवन का प्रतिनिधित्व गल्प-कला का मुख्य प्रयोजन होता है

 

हेनरी जेम्स के लिए कथा एक कला-रूप की तरह ‘जीवन का प्रतिनिधित्व’ करने वाली विधा है। यहाँ प्रतिनिधि शब्द व्याख्या की माँग करता है। ऊपर दिए गए उद्धरण में चित्रकार द्वारा महिला का चित्र बनाना  ‘जीवन के प्रतिनिधित्व’ का उदाहरण है। जीवन का प्रतिनिधित्व करने का अर्थ जीवन का यथार्थ अंकन या प्रतिबिम्ब  नहीं है, अपितु जीवन के ‘अर्थ’ या ‘सार’ की अभिव्यक्ति है। वह यथार्थ से पृथक नहीं है, पर यथार्थ-मात्र भी नहीं है। प्रतिनिधित्व करने वाला कभी इस यथार्थ की उपेक्षा या पलायन या अतिक्रमण भी नहीं करता है।

 

ग. जीवन के कथागत प्रतिनिधित्व का सुन्दर व मनोरंजक होना भी आवश्यक है।

 

हेनरी जेम्स से पूर्व उपन्यास को सम्भ्रान्त महिलाओं के मनोरंजन-मात्र की विधा की तरह देखा जाता था। कोई विधा मनोरंजक हो, इस पर हेनरी जेम्स को आपत्ति नहीं थी। उनका मानना था कि विधा को मनोरंजक होने के साथ-साथ जीवन का ‘सौन्दर्यमय प्रतिनिधित्व’ करने वाला भी होना चाहिए। यदि प्रतिनिधित्व सौन्दर्यानुभव का उद्बुद्ध करने में समर्थ होगा, तो मनोरंजन की क्षमता भी उसमें स्वतः आ जाएगी। इस प्रकार हेनरी जेम्स की कथालोचना ‘यथार्थवादी सौन्दर्यशास्‍त्र’ के विकास की एक अलग तरह की भूमिका लगती है।

 

घ. कथा के घटक-तत्त्वों का संरचनावादी पुनराख्यान

 

हेनरी जेम्स से पूर्व कथा की सैद्धान्तिकी का आधार अरस्तू के त्रासदी व महाकाव्य के घटकों के रूप में गिना दे गए तत्त्वों पर खड़ा था। खास तौर पर नवशास्‍त्रवादी काल में इसी को प्रस्तुत किया गया था। हेनरी जेम्स ने स्वीकार किया कि परम्परागत रूप में प्राप्‍त ये घटक, अर्थात् ‘कथानक, पात्र और उनका चरित्र-चित्रण, वातावरण, भाषा व उद्देश्य… ऐसे घटक हैं, जिनकी उपेक्षा सम्भव नहीं है। वे इसमें ‘अनुभव’ को शामिल करने के पक्ष में थे। इसके अलावा वे दृश्यों, विवरणों सहित हर छोटी से छोटी वस्तु, ब्यौरे, सूचना आदि तक को कथा का निर्माण करने वाली वस्तुओं की तरह देखते थे। यहाँ उनका आग्रह इस बात पर था कि इन सभी घटकों, तत्त्वों के ताने-बाने से जिस पट का निर्माण हो, वह कला की भाँति आनुषंगिक पूर्णता वाला हो। जिसमें कुछ भी आयातित न हो। आयातित न होने का अर्थ हेनरी जेम्स की कथालोचना में यह है कि कथा में चित्रित-अभिव्यक्त कोई भी घटक-तत्त्वगत पक्ष या पहलू ‘पूर्वनिर्धारित’ या ‘सायास’ नहीं होना चाहिए। स्थितियों को स्वयं अपने तौर पर छूट प्रदान करने से ही यह सम्भव होता है कि वहां ‘सायासता’ से बच सकते हैं।

  1. चेतना का कथा-स्थापत्य

हेनरी जेम्स की कथालोचना में कथा के भाषागत-पाठ को ‘इतिहास’ व ‘परिप्रेक्ष्य’ से जोड़ते हैं। इस वजह से वे रूपवाद और कलावाद की सीमाओं को लांघ कर, संरचनावाद की ओर आगे बढ़ती हैं। ‘परिप्रेक्ष्यमूलक अर्थ’ का उपन्यास की ‘कथामूलक संरचना’ के रूप में जो ‘व्यवस्थापन’ और ‘नियम’ होता है, उसकी ‘सैद्धान्तिकी  की नियामक धारणाएं’ इस प्रकार हैं-

 

क. जहाँ तक हो सके कथा को यथार्थवादी तरीके से स्वयं को रचना चाहिए।

ख. यथार्थवादी होने से अभिप्राय है – यथार्थ का प्रतिनिधित्व।

ग. प्रतिनिधित्व एक जीवन्त प्रक्रिया है। अतः उसे यथातथ्य अंकन-प्रतिबिम्बन की ज़मीन पर चलते-फिरते पात्रों द्वारा मूर्त्त  रूप प्रदान किया जाता है।

घ. पात्रों के जीवन्त व्यवहार की कसौटी यह होती है कि उन्हें स्थितियों के तर्कों-कारणों से संचालित होकर अपना मार्ग खुद तय करने के लिए स्वतन्त्र छोड़ना चाहिए।

ङ. पात्रों की व्यवहार-मूलक स्वतन्त्रता, स्थितिजन्य और सापेक्षिक होती है, अराजक नहीं।

च. पात्र, स्थितिजन्य यथार्थ का प्रतिनिधित्व अपनी-अपनी चेतना से उपजे ‘दृष्टिकोणों’ से करते हैं।

छ. पात्रों की चेतना से उद्भूत दृष्टिकोण कथा की ‘चेतनामूलक निर्माणधर्मी ईंटों’ की तरह होते हैं।

ज. पात्रों के चेतना मूलक दृष्टिकोणों से कथा के निर्माण की ईंटों वाला भवन, कथा के कलात्मक स्थापत्य’ का उदाहरण है।

झ. दृष्टिकोणगत भिन्‍नताएँ इतिहास से पैदा हुए नैतिकता-बोध के विविध-रूपों का प्रतिनिधित्व करती है।

ञ. इस प्रकार ‘जीवन का प्रतिनिधित्व’ समय के यथार्थ के साथ-साथ इतिहास के यथार्थ को प्रतिनिधित्व भी करता है।

 

उपर्युक्त दस नियम सिलसिलेवार तरीके से यह स्पष्ट करते हैं कि हेनरी जेम्स सैद्धान्तिकी और कलावाद दोनों का अतिक्रमण करते है।

  1. निष्कर्ष

हेनरी जेम्स का कथालोचन फ्रेंच उपन्यासकारों के विश्‍लेषण के बाद तुलनात्मक रूप में नेथेडियन हॉर्थन की कड़ी आलोचना तक आता है। इस वजह से इसे ‘ट्रान्स-अटलाण्टिक’ कथालोचन भी कहा जाता है। एक तरह से यहाँ यूरोप व अमेरिका एक-दूसरे के आमने-सामने खड़े दिखाई देते हैं। यह भौगोलिक अन्तर्द्वन्द्व हेनरी जेम्स के कथालोचन में ही नहीं, उनकी पूरी रचनाशीलता पर अधिकांश कहानियों, उपन्यासों औरा यात्रा-वृत्तान्तों पर पसरा-फैला देखा जा सकता है।

 

हेनरी जेम्स विक्टोरियन काल से आधुनिक काल में दाखिल होते समय के लेखक हैं। इस वजह से उनमें यथार्थवाद से संरचनावाद तक आने का प्रयास अभिव्यक्ति पाता है, जो गहराई में इतिहास और मनोविज्ञान की मदद से उत्तरसंरचनावाद की ओर उन्मुखता प्रदर्शित करता है। उनकी ‘चेतनामूलक ब्लॉकों के कथा-स्थापत्य’ की सैद्धान्तिकी , आगे चल कर वर्जीनिया वुल्फ जैसे लेखकों में उत्तरसंरचनावादी ‘चेतना-प्रवाह पद्धति’ के विकास की भूमिका बनती है।

 

अतिरिक्त जानें

 

पुस्तक सूची

  1. The Notebooks of Henry James, F. O. Matthiessen, Kenneth B. Murdock,London
  2. Henry James, Selected Letters, Leon Edel,The Balknap Press of Harvard University Press, London
  3. Henry James: Critical Assessments edited by Graham Clarke,Volume 1, Helm Informatons Ltd London
  4. Henry James and the Culture of Publicity,Cambridge University Press, Cambridge
  5. Theory of Literature, Paul H. Fry, Yale University Press, New Haven.
  6. Literary Criticism a short history, William K.Wimsatt, Yale University,Oxford&IBH publishing,Co, Calcutta
  7. The English Literature Companion, Julian Wolfreys, Palgrave Macmillan, New York
  8. A History Of Modern Criticism:1750-1950,Rane Wellek,Jonathan Cape ltd,London

 

वेब लिंक्स

  1. https://en.wikipedia.org/wiki/Henry_James
  2. http://www.online-literature.com/henry_james/
  3. http://www.britannica.com/biography/Henry-James-American-writer
  4. https://www.youtube.com/watch?v=XMgw7IIUQlo
  5. https://www.youtube.com/watch?v=rTP37We42KQ