1 पाश्चात्य काव्यशास्त्र की पृष्ठभूमि
पाठ का प्रारूप
- पाठ का उद्देश्य
- प्रस्तावना
- यूनान का ऐतिहासिक घटना-क्रम
- यूनानी धर्म
- यहूदी-ईसाई धर्म
- ग्रीक भाषा
- लैटिन भाषा
- बाइबिल की भाषा
- यूनानी-रोमन चिन्तन का परिप्रेक्ष्य
- निष्कर्ष
- पाठ का उद्देश्य
इस पाठ के अध्ययन के उपरान्त आप –
- प्राचीन यूनानी सभ्यता से परिचित हो सकेंगे।
- रोमन साम्राज्य और सभ्यता की जानकारी प्राप्त कर सकेंगे।
- ग्रीक और लैटिन भाषा और साहित्य के महत्त्व से अवगत हो सकेंगे।
- ग्रीक-रोमन धर्म और यहूदी-ईसाई धर्म के बारे में प्रारम्भिक जानकारी प्राप्त कर सकेंगे।
- यूनानी-रोमन चिन्तन के परिप्रेक्ष्य को समझ सकेंगे।
- प्रस्तावना
पाश्चात्य काव्यशास्त्र का जन्म यूनान में, विशेष रूप से एथेन्स में हुआ। जहाँ सुकरात, प्लेटो और अरस्तू निवास करते थे। काव्यशास्त्र ही नहीं, वरन् पाश्चात्य दर्शन, साहित्य, गणित, जीव विज्ञान, भौतिक विज्ञान का जन्म भी यूनान में ही हुआ। हालाँकि प्राचीन यूनान का बहुत-सा प्राचीन ज्ञान लुप्त हो गया है, परन्तु जो अभी तक उपलब्ध है, वह भी बहुत महत्त्वपूर्ण है। इस बचे हुए ज्ञानकोश से ही हम यूनान के अतीत के वैभव का थोड़ा-बहुत अन्दाजा लगा सकते हैं। यूनानी सभ्यता संसार की सबसे प्राचीन सभ्यता नहीं थी। हालाँकि यही सभ्यता बाद तक विकसित होती रही। इसलिए जब भी हम वर्तमान यूरोपीय सभ्यता की परम्परा की चर्चा करते हैं, तो उसका प्रारम्भ यूनान की सभ्यता से करते हैं।
यूनान और रोम का युग कई दृष्टियों से बहुत महत्त्वपूर्ण है। इसलिए इस युग की सम्यक जानकारी के बिना हम यूरोपीय चिन्तन को समझ ही नहीं सकते। पाश्चात्य आलोचना में आज भी यदि कोई आलोचक किसी नए सिद्धान्त को स्थापित करना चाहता है, तो वह प्लेटो या अरस्तू को अवश्य उद्धृत करना चाहता है। चाहे कलावादी हो या वस्तुवादी, यूनानी आलोचक सबके लिए उद्धरणीय है।
यूनानी-रोमन सभ्यता की कई चीजें आज भी जीवित हैं। उदाहरण के लिए हमारी आज की जनतान्त्रिक राजनीतिक व्यवस्था का प्रारम्भ यूनान से होता है। ओलम्पिक खेल यूनान में शुरू हुए। ईसाई-धर्म का प्रारम्भ यहीं से हुआ। रोम आज भी ईसाइयों का सबसे पवित्र धर्म-स्थल है। सप्ताह-महीने के दिन और कैलेण्डर का प्रारम्भ हुआ। वर्ष का प्रारम्भ 1 जनवरी से होने का निर्णय रोमन सभ्यता में हो गया था। ईस्वी-सन् का प्रारम्भ इसी काल में हुआ है। इतिहास की गणना के लिए ईसा मसीह का जन्म बहुत महत्त्वपूर्ण है। कोई भी घटना ईसा के जन्म से पहले हुई या बाद में हुई – समय की गणना का यह आधार अब वैश्विक स्तर पर स्वीकृत हो चुका है। यह भी ध्यातव्य है कि ईसा का जन्म 0 वर्ष में नहीं हुआ था। यहाँ तक कि 0 वर्ष होता भी नहीं। वैसे यह भी मान्यता है कि ईस्वी-सन् का प्रारम्भ ईसा के जन्म के तीन-चार साल बाद से हुआ है। अनुवाद का प्रारम्भ इसी काल में हुआ था। आज भी आधुनिक यूरोपीय भाषाएँ रोमन लिपि में लिखी जाती हैं। महाकाव्य, त्रासदी, कॉमेडी, सटायर, काव्यशास्त्र का प्रारम्भ यहूदी-रोमन संस्कृति में हुआ। वर्तमान ग्रेगोरियन कैलेण्डर फरवरी, 1582 में पॉप ग्रेगोरी XIII ने दिया। इसका पूर्व रूप जूलियस सीजर के काल में रोम में प्रयोग में लाया जाता था। गणित, भौतिक विज्ञान, राजनीतिक विज्ञान, दर्शनशास्त्र, जीव विज्ञान और ढेर सारी बातों का प्रारम्भ किसी न किसी रूप में यूनान-रोम में ही हुआ।
इस पृष्ठभूमि में हमें यूरोपीय काव्यशास्त्र, विशेषतः प्राचीन यूनानी-रोमन काव्यशास्त्र का अध्ययन करना चाहिए।
- यूनान का ऐतिहासिक घटना-क्रम
प्राचीन यूनान के चिन्तन की पृष्ठभूमि जानने के लिए यूनान के इतिहास की प्रारम्भिक जानकारी आवश्यक है। यूनान के इतिहासकारों का मानना है कि लगभग चार हजार वर्ष ईसा पूर्व यूनान में मानव आबादी बस चुकी थी। साथ ही यह भी लगभग मान्य तथ्य है कि ई. पू. 1000-499 में यूनान के नगर राज्यों की स्थापना हो चुकी थी। जहाँ अनेक राजाओं का शासन चलता था। जिन दो नगर राज्यों को शास्त्र चिन्तन की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण माना जाता है, वे हैं एथेन्स और स्पार्टा। ई. पू. 683 में एथेन्स में राजतन्त्र समाप्त हो गया और अपने ढंग का जनतन्त्र अस्तित्व में आया। एथेन्स के जनतन्त्र को समाप्त करने के लिए स्पार्टा ने अनेक बार आक्रमण किए, परन्तु एथेन्स अपराजित रहा। अन्त में सन् ई. पू. 404 में स्पार्टा ने एथेन्स को पराजित कर दिया, इसके साथ ही वहाँ का जनतन्त्र भी समाप्त हो गया। (https://en.wikipedia.org/wiki/History_of_Greece)
जनतन्त्र के दिनों में एथेन्स में 20 वर्ष से अधिक उम्र के सभी कुलीन नागरिक आपसी सहमति से सरकार चलाते थे। इनकी नियमित बैठकें हुआ करती थीं। इन बैठकों में सभी नागरिकों को अपना मत व्यक्त करने की आजादी थी। दास और स्त्रियाँ इन बैठकों में भाग नहीं ले पाती थीं। उनको यह राजनीतिक आजादी प्राप्त नहीं थी। ई. पू. 431 के आस-पास एथेन्स की आबादी लगभग तीन लाख थी, जिनमें से एक लाख दास थे। इसके अलावा कुछ व्यापारी और आगन्तुक भी होते थे। उन्हें ये अधिकार प्राप्त नहीं थे (https://en.wikipedia.org/wiki/History_of_Greece)
स्पार्टा द्वारा एथेन्स की पराजय के कारणों में से एक कारण एथेन्स के जनतन्त्र को भी रेखांकित किया गया था। मार्क कार्टराइट के अनुसार एरिस्टोफ़ेन्स, थुकाइडिडस जैसे लोग पहले से ही प्रजातन्त्र के विरोधी थे। उनका कहना था कि कोई भी प्रभावशाली वक्ता या लोकप्रिय नेता भावनाओं से खेलकर जनता को बहा ले जा सकता था और कोई भी बुरा निर्णय करवा सकता था। इसे रेखांकित किया जाना चाहिए कि एथेन्स के इसी जनतन्त्र ने ई. पू. 399 में सुकरात को मृत्युदण्ड दिया था। ई. पू. 338 में मकदूनिया के राजा फिलिप्स ने एथेन्स को अपने कब्जे में ले लिया। यहाँ इस तथ्य का उल्लेख करना भी आवश्यक है कि सिकन्दर महान इसी फिलिप्स का पुत्र था। राजा फिलिप्स ने अरस्तू को सिकन्दर का गुरु नियुक्त किया था, जब सिकन्दर की आयु 13 वर्ष थी। यही सिकन्दर विश्व विजय के लिए निकला था, जो भारत तक पहुँच गया। (http://ancient-greece.org/history.html)
इतिहास के विवरणों में अधिक न जाकर इस तथ्य को जान लेना आवश्यक है कि ई. पू. 168 में रोम ने मकदूनिया को पराजित कर दिया और अन्त में, ई. पू. 146 में पूरा यूनान रोम के अधीन हो गया।
रोमन सभ्यता की चर्चा करते हुए हमें देखना होगा कि उसके दो हिस्से हैं – एक, रोमन गणतन्त्र ई. पू. 509 से ई. पू. 30 तक का काल और दूसरा रोमन साम्राज्य, जो ई. पू. 30 से सन् 476 तक चला। यूनान के नगर राज्यों की तुलना में रोमन साम्राज्य अत्यन्त विशाल था। उस समय लोग कहते थे कि रोमन साम्राज्य सीमाहीन है। यूनान की तरह रोमन शासन के दिनों में युद्ध नहीं होते थे। लगभग 200 वर्षों तक इस क्षेत्र में कोई युद्ध नहीं हुआ। सन् 476 में रोमन साम्राज्य का पतन हो गया। अन्तिम रोमन सम्राट रोमुलुस थे। कुछ विचारकों ने रोमन साम्राज्य के पतन के कारणों में से एक कारण ईसाई धर्म भी बताया, जो रोमन साम्राज्य के पतन के बाद सारे पश्चिमी जगत में फैल गया।
- यूनानी धर्म
यूनान उस समय बहुदेवी देवताओं में विश्वास करता था। यूनानी किसी अदृश्य ईश्वर में विश्वास नहीं करते थे। उनके प्रत्येक कर्म का एक देवता हुआ करता था। वे मूर्तिपूजक थे और पूजा-अर्चना में पशुबलि देते थे। विद्वानों के अनुसार ज्यूस, डायोनाइसस, अपोलो, ईरोस, एरीस हरमीस, क्रोनोस, हैपीस्टर, पोसाइडन आदि देवता और हीरा, ऐफ्रोडाइटी, अथीना, आर्टमिस, डिमीटर, हेस्टिया, पर्सिफोनी आदि देवियाँ थीं। वे मानते थे कि देवता मनुष्यों कि तरह होते हैं, परन्तु उनमें अधिक शक्ति होती है। फिर वे भारतीयों की तरह देवताओं की अमरता में विश्वास करते थे। उनका यह भी विश्वास था कि देवताओं का भी परिवार हुआ करता है। वे आकाश में बादलों के अन्दर माउण्ट ओलम्पस में रहते हैं, जो ग्रीस का सबसे ऊँचा पर्वत है। वहीं से वे धरती पर मनुष्य की गतिविधियों पर नज़र रखते हैं। ज्यूस देवताओं के राजा और हीरा उनकी पत्नी थीं। सभी कलाओं और विद्याओं के अधिष्ठाता देवता हुआ करते थे। अथीना बुद्धि की देवी थीं और एथेन्स की संरक्षिका थीं। उन्हीं के नाम पर एथेन्स का नाम एथेन्स पड़ा। इससे जुड़े अनेक मिथक और दन्तकथाएँ यूनान में प्रचलित थीं।
जब यूनान पर रोम का आधिपत्य हुआ तो भी यूनानी देवी-देवताओं का मान-सम्मान पूर्ववत् बना रहा। कुछ नए देवी-देवता अवश्य उसमें जुड़ गए, परन्तु रोमन साम्राज्य ने अपने अधीन राज्यों पर अपना धर्म नहीं लादा। कविता, दवा, संगीत और विज्ञान के देवता अपोलो की पूजा-अर्चना रोमन साम्राज्य में भी होती रही थी। बाद में जब रोमन साम्राज्य का पतन हुआ और ईसाई धर्म की पूर्ण प्रतिष्ठा हो गई, तब इन ग्रीक-रोमन देवी-देवताओं का विरोध प्रारम्भ हुआ। कालान्तर में उन्हें शैतान मान लिया गया। जिस समय ग्रीक सभ्यता अपने सर्वोच्च शिखर पर थी, उस समय तक ईसाई धर्म का उदय नहीं हुआ था। हाँ, यहूदी धर्म का अस्तित्व तब भी था।
- यहूदी-ईसाई धर्म
यहूदी धर्म प्रचारक मानते हैं कि यहूदी धर्म की स्थापना ई. पू. 20वीं शताब्दी में हो चुकी थी। (http://bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%AF%E0%A4%B9%E0%A5%82%E0%A4%A6%E0%A5%80_%E0%A4%A7%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AE) तब से इस धर्म ने अनेक उतार-चढ़ाव देखे। यह एकेश्वरवादी धर्म था, इसीलिए यूनान और रोमन काल में इन्हें अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। ओल्ड टेस्टामेण्ट इनका पवित्र धर्मग्रन्थ है। बाद में यहूदी धर्म के भीतर से ईसाई धर्म का उदय हुआ।
ईसा मसीह का जन्म यरुशलम के पास बैथलहेम में हुआ था। ईसाई धर्म का प्रचार उनके शिष्यों ने किया। World Catholic Federation for the Biblical Apostolate के अनुसार ईस्वी सन् का प्रारम्भ ईसा मसीह के वास्तविक जन्म काल से नहीं होता। प्रारम्भ में ईसाई यहूदी धर्म की एक शाखा के रूप में जाना जाता था। स्वयं ईसा मसीह के माता-पिता यहूदी थे। ईसाई भी हिब्रू बाइबिल के 39 पुस्तकों को मान्यता देते हैं तथा न्यू टेस्टामेण्ट की 27 पुस्तकों को भी मानते हैं। इस तरह ईसाइयों के अनुसार बाइबिल में 66 पुस्तकें हैं। (The old testament, Arthur J. Bellinzoni Promethe us Books, New York, Page 35)। यहूदी और ईसाई मतावलम्बियों के बीच विवाद का प्रमुख मुद्दा स्वयं ईसा मसीह थे। ईसाई मानते हैं कि ईसा मानव रूप में ईश्वर है और उन्होंने हमारे पापों के लिए अपना बलिदान दिया है। इसीलिए ईसा मसीहा है। यहूदी ऐसा नहीं मानते। वे उन्हें बस अच्छा शिक्षक मानते हैं। इन विश्वासों की टकराहट हुई, जो कई बार खूनी संघर्ष में बदली। रोम के प्रथम रोमन कैथोलिक चर्च की स्थापना प्रथम शताब्दी में ही हो गई थी। स्वयं जीसस क्राइस्ट ने सेण्ट पीटर को इस चर्च का विशप नियुक्त किया था। सन् 30 में सेण्ट पीटर चर्च को येरुशलम से रोम ले गए थे।
प्रारम्भ से रोमन साम्राज्य में ईसाइयों को सन्देह की दृष्टि से देखा जाता था। इसका कारण यह था कि ईसाई ग्रीक-रोमन देवी-देवताओं को नहीं मानते थे। वे रोमन देवताओं के पूजा पाठ में भी शामिल नहीं होते थे। इसके अलावा वे अपना धार्मिक अनुष्ठान गोपनीय तरीके से करते थे। रोमन साम्राज्य को लगता था कि ईसाइयों के इस व्यवहार से उनके देवता रुष्ट रहते हैं, जिसके कारण रोम पर आपत्तियाँ आती रहती हैं। इस कारण उन्हें सजा, मुकद्दमा, अत्याचार झेलने पड़ते थे। कई बार रोमन सम्राज्य में ईसाई धर्म पर प्रतिबन्ध लगा दिया जाता था। सन् 313 में ईसाई धर्म को रोम में कानूनी रूप से मान्यता मिल गई। सन् 380 में सम्राट थियोडोसियस के शासन में ईसाई धर्म रोम का राजधर्म बन गया। सन् 476 में जब रोमन साम्राज्य का पतन हुआ, तब यह भी प्रचारित किया गया कि रोम के पतन का कारण ईसाई धर्मावलम्बी हैं।
- ग्रीक भाषा
प्राचीन यूनान में ग्रीक भाषा थी। इस भाषा की अनेक बोलियाँ थी। इन बोलियों का सम्बन्ध स्थान विशेष और कबीला विशेष से हुआ करता था। विकीपिडिया के अनुसार ‘सबसे पुरानी ग्रीक ‘मिसेनियम ग्रीक’ थी जिसे लोग लिनियर बी लिपि में लिखते थे। इसी तरह की दूसरी प्रणाली भी थी जिसे ‘किप्रिआट सिलैबरी’ कहते हैं। पुरानी ग्रीक में केवल बड़े अक्षर थे। छोटे अक्षरों का विकास बाद में स्याही के आविष्कार के साथ हुआ, जब कागज़ पर लिखे जाने का प्रचलन हुआ। आधुनिक ग्रीक भाषा में 24 वर्ण हैं। सभी वर्णों के बड़े और छोटे रूप हैं।
भाषा वैज्ञानिक होमर की भाषा को ‘मिश्रित आयो नियाक’ मानते हैं। प्राचीन यूनान में सभी लोग अपनी-अपनी बोलियों का ही प्रयोग करते थे। जो व्यक्ति ग्रीक नहीं बोल पाता, वह या तो अतिथि है या विदेशी है। धीरे-धीरे इन बोलियों का मानक रूप बनता गया। कुछ भाषा वैज्ञानिक भाषा और बोलियों में कोई भेद नहीं करते। वे कहते हैं कि “बोली वह भाषा होती है जिसके पास थल सेना और समुद्री सेना हो।” इसलिए ये बोलियाँ भी भाषाएँ ही थीं।
ग्रीक की बोलियों को विद्वानों ने तीन भागों में बाँटा है – डोरिक, प्रयोलिक और आयोटिक । ये तीनों अलग-अलग कबीलों की बोलियाँ थी। आज जब हम प्राचीन ग्रीक की चर्चा करते हैं, तो एटिक आयोटिक की ही चर्चा सबसे पहले करते हैं। यह एटिक या एटिका की बोली है, जिस क्षेत्र में एथेन्स स्थित है। स्टीफन कोल्विन ने एटिक आयोटिक के महत्त्व के कारणों पर विचार किया है। उनके अनुसार –
(1) इस बोली में सर्वाधिक साहित्य लिखा गया है, जिसमें त्रासदी, कॉमेडी, इतिहास, दर्शन, राजनीतिक और कानूनी व्याख्यान शामिल है। पाश्चात्य काव्यशास्त्र की दृष्टि से प्लेटो और अरस्तू ने इसी बोली में अपने ग्रन्थ लिखे हैं।
(2) यूनान के अन्य हिस्सों की तुलना में यहाँ शिलालेख अधिक मात्रा में उपलब्ध है।
(3) मकदूनिया द्वारा एथेन्स पर विजय के उपरान्त कोइने राजकीय भाषा बनी। यह भाषा भी एटिक आयोटिक पर आधारित है। (A Brief History of Ancient Greek, Stephen colvin, john wiley and sons ltd, Page 103)
- लैटिन भाषा
रोमन साम्राज्य की भाषा लैटिन थी, लेकिन रोम में ग्रीक भाषा और साहित्य का महत्त्व बराबर बना रहा। विकीपिडिया में दी हुई जानकारी के अनुसार औपचारिक रूप से लैटिन साहित्य का प्रारम्भ ई.पू. 240 में हुआ, जब रोमन दर्शकों ने एक ग्रीक नाटक के अनुवाद का मंचन देखा। इसका रूपान्तरण लिविस एण्ड्रोनिकस ने किया था, जो ई. पू. 272 में युद्ध में बन्दी बनाकर लाया गया था (https://en.wikipedia.org/wiki/Latin)। प्रथम लैटिन कवि ग्नायस नेवियस थे। बाद में सिसरो, जूलियस सीजर, अगस्तस आदि अनेक लेखक हुए। रोम में ईसाई धर्म के प्रसार के बाद ईसाई धर्म से प्रभावित साहित्य लिखा जाने लगा। लैटिन में ग्रीक साहित्य के अनेक अनुवाद हुए, जिसे ग्रीक आती थी, वह रोम में शिक्षित व्यक्ति माना जाता था। इस तरह आरम्भिक लैटिन में ग्रीक परम्परा ही फलती-फूलती रही। आगे चलकर लैटिन से आधुनिक यूरोपीय भाषाओं का विकास हुआ, जिनमें अंग्रेजी, फ्रेंच, स्पेनिश आदि मुख्य है। उल्लेखनीय है कि आज भी ये भाषाएँ रोमन लिपि में ही लिखी जाती हैं।
- बाइबिल की भाषा
बाइबिल ग्रीक शब्द biblin का अनुवाद है, जिसका अर्थ होता है पुस्तक। ऐसा माना जाता है कि बाइबिल में ईश्वर के वचन हैं, लेकिन उसे अन्तिम रूप देने में लेखकों और सम्पादकों की कई पीढ़ियाँ लग गईं। बाइबिल के दो रूप हैं। एक ओल्ड टेस्टामेण्ट है जो यहूदियों की बाइबिल है। इसकी रचना हिब्रू भाषा में हुई। ईसाइयों की बाइबिल की रचना अरेमिक भाषा में हुई। कुछ इतिहासकारों का मत है कि स्वयं ईसा मसीह की भाषा अरेमिक थी। जुडिथ हेरिन के अनुसार न्यू टेस्टामेण्ट की भाषा ग्रीक कोइने है। (The Formation Of Cristendom, Judith Herrin, Basil Black Wall, Oxford, 1987, Page 91)। इन संस्करणों में बहुत सुधार और परिष्कार हुए तथा ईसाई समाज में भ्रम की स्थिति बनने लगी। तब सन्त जेरोम को यह दायित्व सौंपा गया। जेरोम ने सन् 405 में ग्रीक, हिब्रू और अन्य पाठों का विश्लेषण, संशोधन, सम्पादन करके लैटिन में बाइबिल का प्रामाणिक पाठ तैयार किया। इसके साथ यह भी तथ्य है कि लैटिन प्राचीन रोमन साम्राज्य की राजकीय भाषा तो थी ही, रोमन कैथोलिक चर्च की मान्य धार्मिक भाषा भी थी। सन् 1960 तक रोमन कैथोलिक चर्च के सामूहिक अनुष्ठान लैटिन में ही हुआ करते थे।
- यूनानी-रोमन चिन्तन का परिप्रेक्ष्य
विचारकों का मत है कि कवि जब रचना करता है, तब उस रचना के बारे में अपने विचार भी व्यक्त करता है। रचना के बारे में व्यक्त किए गए इन्हीं विचारों से साहित्य-सिद्धान्तों का सूत्रपात होता है। वैसे भी यह माना जाता है कि पहले रचना रची जाती है, तब उसको समझने के लिए सिद्धान्तों का निर्माण किया जाता है। पाश्चात्य आलोचना का संक्षिप्त इतिहास लिखते हुए विमसेण्ट ने स्थापना दी कि कविता की उत्पत्ति के साथ ही कविता के सिद्धान्त पैदा हुए थे। विमसेण्ट ने होमर का उदाहरण देकर अपने मत को स्पष्ट किया।
प्राप्त जानकारी के अनुसार पश्चिम में सबसे प्राचीन कवि होमर हैं। उनकी इलियड और ओडिसी नामक दो रचनाएँ उपलब्ध हैं। ग्रीक साहित्य का बड़ा हिस्सा काल-प्रवाह में लुप्त हो गया है। उसका कहीं उल्लेख भी नहीं मिलता; जो हिस्सा बचा हुआ है, उसी से पाश्चात्य साहित्य और काव्यशास्त्र का इतिहास निर्मित किया जाता है। इस क्रम मे सब होमर से चर्चा का प्रारम्भ करते हैं।
होमर का रचना काल ई. पू. 850 माना जाता है। कुछ लोग ऐसा भी मानते हैं कि होमर नामक कोई व्यक्ति था ही नहीं। उस समय अनेक कवियों के समूह को होमर नाम दे दिया गया था। अधिकतर विद्वानों का मत है कि होमर अन्धे थे। वे विभिन्न स्थानों पर भ्रमण करते थे तथा घूमने-फिरने वाले लोगों के साथ घूमते-फिरते रहते थे। इलियड में उन्होनें ट्राय के विश्व प्रसिद्ध युद्ध का वर्णन किया।
होमर कहते हैं कि महाकाव्य की रचना उन्होंने दैवी प्रेरणा से की। होमर के साथ इन आरम्भिक यूनानी चिन्तकों के विचारों का सार-संक्षेप करते हुए विमसेण्ट ने कहा कि कविता आनन्ददायक होती है। वह तो सहज रूप से प्रतिभा से ही आती है। इसे कला द्वारा सीखा जा सकता है। कविता चित्र की तरह होती है। शब्दों के कुशलतापूर्वक उपयोग से कविता बन जाती है। (Literary Criticism : A Short History, William K. Wimsatt Jr. & Cleanth Brooks, Oxford, New Delhi, Page 4)
इन प्रारम्भिक बातों से चलकर पाश्चात्य काव्यशास्त्र विकसित हुआ। ये विचार आरम्भ में जहाँ बिखरे-बिखरे थे, वहाँ आगे चलकर इनसे काव्यशास्त्र की गम्भीर मान्यताएँ निर्मित हुईं। इसीलिए पाश्चात्य काव्यशास्त्र की विधिवत समझ प्राप्त करने के लिए प्रारम्भिक यूनानी साहित्य सिद्धान्तों की पृष्ठभूमि को समझना आवश्यक होगा।
इन बातों को ध्यान में रखते हुए हम कह सकते हैं कि एथेन्स के नागरिकों को पता था कि उनके लिखने का, कहने का और सोचने-विचारने का मतलब होता था। उनके सही या गलत निर्णय से एथेन्स को फायदा या नुकसान हो सकता है। ये सारे चिन्तक एथेन्स को अपना मानते थे। एथेन्स से प्रेम करते थे। इसलिए वे जो भी कहते थे, उसमें उनका दृढ़ विश्वास होता था। इसलिए वे जोर देकर अपनी बात कहते थे कि उनका कहा हुआ सही है। प्लेटो ने जब कवियों को आदर्श राज्य से बाहर निकालने की बात की थी, तो यह बात एथेन्स के हित में थी। अरस्तू ने जब प्लेटो के मत का खण्डन किया था, तो उनकी राय का एथेन्स के भविष्य से सम्बन्ध था। इसलिए वे पूरी जिम्मेदारी से अपनी बात कहते थे। इस कारण अरस्तू प्लेटो पर कोई आरोप नहीं लगाते। वे अपना सच कहते हैं। सुकरात को जब मृत्युदण्ड मिला तो वह भी एथेन्स के हित में ही लिया गया निर्णय था।
फिर एथेन्स में सामूहिक बैठकों में निर्णय हुआ करता था। अतः उन्हें ऐसी भाषा में, ऐसी शैली में पुष्ट तर्कों के साथ अपनी बात रखनी होती थी, ताकि दूसरे लोग उनसे सहमत हो जाएँ। इसलिए प्राचीन यूनानी चिन्तकों ने कविता के साथ-साथ विस्तार से भाषण कला की बारीकियों पर भी चर्चा की। ऐसा नहीं होना चाहिए कि सही बात उचित तर्कों के अभाव में दब जाए और एथेन्स को भारी नुकसान उठाना पड़े।
होमर, हेसियड, पिण्डार, गोर्जियास, एरिस्टोफेनिज़, सुकरात, प्लेटो, आइसाक्रेटिज़, इस्किलस, सोफोक्लिज़, युरिपाईडिज़, अरस्तू आदि विचारक, लेखक, चिन्तक यूनान में हुए थे जिनकी ख्याति आज भी यथावत बनी हुई है।
एथेन्स के दार्शनिकों, विचारकों और आलोचकों में एक और बात भी बहुत महत्त्वपूर्ण थी। उनमें से कोई भी आज के अर्थ में काव्यशास्त्री नहीं थे। वे मूलतः एथेन्स के नागरिक थे और अपने नगर के सर्वांगीण विकास में रुचि रखते थे। इसलिए उन्होंने लगभग सभी विषयों पर लिखा। सुकरात दार्शनिक थे। प्लेटो राजनीतिक चिन्तक और दार्शनिक थे। उन्होंने ‘विचारों का सिद्धान्त’ निर्मित किया। दर्शन और राजनीति उनका मुख्य विषय था। वे अपनी एकेडमी में दर्शन पढ़ाते थे।
अरस्तू, प्लेटो के शिष्य थे। अस्सी वर्ष की अवस्था में ईसा पूर्व 349 में प्लेटो की मृत्यु हुई। अठारह वर्ष तक अरस्तू प्लेटो के साथ रहे। प्लेटो की मृत्यु के 14 वर्षों बाद अरस्तू ने अपनी एकेडमी खोली। अरस्तू की व्यावहारिक बुद्धि से प्रभावित होकर मकदूनिया के राजा फिलिप्स ने उन्हें सिकन्दर का गुरु नियुक्त किया। बाद में मकदूनिया ने एथेन्स को पराजित कर दिया। कालान्तर में सारा यूनान रोमन साम्राज्य में विलीन हो गया।
- निष्कर्ष
रोमन साम्राज्य में ग्रीक साहित्य को पढ़ना लगभग अनिवार्य था। वे जानते थे कि प्लेटो और अरस्तू ने क्या कहा था। इसलिए ग्रीक साहित्य रोमन साम्राज्य में उपलब्ध था। जब तक रोमन साम्राज्य रहा, तब तक ग्रीक साहित्य और संस्कृति भी रही। आगे यूरोपीय चिन्तन का विकास अपने ढंग से हुआ।
अतिरिक्त जानें
पुस्तकें
- World Catholic Federation for the Biblical Apostolate
- The old testament, Arthur J. Bellinzoni Promethe us Books, New York
- A Brief History of Ancient Greek, Stephen colvin, john wiley and sons ltd.
- The Formation Of Cristendom, Judith Herrin, Basil Black Wall, Oxford
- Literary Criticism A Short History, William K. Wimsatt Jr. & Cleanth Brooks, Oxford, New Delhi
वेब लिंक –
- http://bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%AF%E0%A4%B9%E0%A5%82%E0%A4%A6%E0%A5%80_%E0%A4%A7%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AE
- https://en.wikipedia.org/wiki/History_of_Greece
- https://en.wikipedia.org/wiki/History_of_Greece
- http://www.ancient.eu/greece/
- http://ancient-greece.org/history.html
- http://www.ancientgreece.com/
- https://en.wikipedia.org/wiki/Latin
- https://www.google.co.in/url?sa=t&rct=j&q=&esrc=s&source=web&cd=13&cad=rja&uact=8&sqi=2&ved=0CGAQFjAMahUKEwjiodri0YDJAhUNI44KHWEsDhU&url=http%3A%2F%2Fwww.latinlanguage.org%2Flatin%2Fhistory.asp&usg=AFQjCNE2mi3hxSdq3gI-MpUrpiON72uIqw&sig2=GBKynpgSFoNaUdJ6Q2l3IA&bvm=bv.106923889,d.c2E
- https://en.wikipedia.org/wiki/Roman_Empire
- http://www.ancient.eu/Roman_Empire/