13 मैला आँचल में लोक जीवन

प्रो. सत्यकाम प्रो. सत्यकाम and रीता दुबे

 

पाठ का प्रारूप

  1. पाठ का उद्देश्य
  2. प्रस्तावना
  3. मैला आँचल के प्रमुख पुरुष पात्र
  4. मैला आँचल के प्रमुख स्‍त्री पात्र
  5. निष्कर्ष
  1. पाठ का उद्देश्य

 

इस पाठ के अध्ययन के उपरान्त आप –

  • किसी भी उपन्यास में पात्रों का महत्त्व जान पाएँगे।
  • मैला आँचल के पात्रों के सहारे रेणु द्वारा पूरे मेरीगंज के यथार्थ का चित्रांकन जान पाएँगे।
  • मैला आँचल के प्रमुख पात्र और उसके जीवन्त चरित्रांकन को जान पाएँगे।

 

2. प्रस्तावना

 

मैला आँचल उपन्यास में एक  भी पात्र ऐसा नहीं है जिसे उपन्यास का केन्द्रीय पात्र माना जा सके, और उपन्यास के नायक का दर्जा दिया जा सके। उपन्यास के डॉ. प्रशान्त, बालदेव, कालीचरण, लक्ष्मी, तहसीलदार विश्‍वनाथ प्रसाद जैसे कुछ पात्रों को महत्त्वपूर्ण पात्रों में गिना जा सकता है, पर ये  उपन्यास के नायक नहीं हो सकते। उक्त कोई भी पात्र ऐसा नहीं है, जिसके इर्द-गिर्द उपन्यासकार ने कथानक का ताना-बाना बुना हो, यह सौभाग्य उपन्यासकार ने पूर्णिया जिले के अति पिछड़े गाँव मेरीगंज को दिया है। मेरीगंज ही इस  आंचलिक उपन्यास का नायक है। मैला आँचल का कथा-संसार एक छोटे से गाँव पर केन्द्रित होने के बावजूद यह उपन्यास पात्रों से भरपूर है और इन्हीं पात्रों के सहारे लेखक ने मेरीगंज की सारी विशिष्टता जीवन्त करने का काम किया है।

 

3. मैला आँचल के प्रमुख पुरुष पात्र

 

मानवीय  अनुभूति और संवेदना के गहरे प्रश्नों से जूझे बिना कोई भी रचनाकार क्लासिकल पात्रों का चित्रण नहीं कर सकता है। जब भी हम गोदान के होरी की तरह मैला आँचल के किसी एक क्लासिकल पात्र की खोज करते हैं, निराशा ही हमारे हाथ लगती है, क्योंकि मैला आँचल की सफलता होरी जैसे किसी एक पात्र को जीवन्त कर देने में नहीं है, बल्कि बारह बरन की जातियों के कई छोटे-बड़े पात्रों के सहारे मेरीगंज की जहालत शोषण के पूरे  चक्र के उद्घाटन में है। इसके लिए सामाजिक व्यवस्था के कई प्रश्नों से दो-दो हाथ करना पड़ता है, जिसकी गूंज मैला आँचल के हर पृष्ठ पर सुनाई देती है।

 

मेरीगंज में बारहो बरन के लोग रहते हैं, इसका जिक्र किया जा चुका है। मेरीगंज के यादव टोली के मुखिया रामखेलावन यादव है; जो इस गाँव के समृद्ध किसानों, तहसीलदार विश्‍वनाथ प्रसाद, रामकिरपाल सिंह और शिवशंकर सिंह की पंक्ति में गिने जाते हैं, क्योंकि इनके पास डेढ़ सौ बीघे की जोत है। इतनी बड़ी जोत होने के साथ-साथ रामखेलावन यादव की बराबरी रामकिरपाल सिंह और विश्‍वनाथ प्रसाद से इस बात में भी है कि जिस प्रकार ये लोग भूमिहीन किसानों और मजदूरों का शोषण करतें हैं, उसी प्रकार ये भी गाँव  के गरीब किसानों को थोड़ा-सा कर्ज देकर, सादे कागज़ पर उनसे अँगूठे की टीप ले लेते हैं। अपने हलवाहों को पूरी मजदूरी नहीं देते हैं, उसमे भी काट-कपट करते हैं। उन्हें सिर्फ अपनी समृद्धि से ही मतलब है। जब तहसीलदार विश्‍वनाथ प्रसाद सन्थालों के विरुद्ध पूरे गाँव को एकजुट करते है तो रामखेलावन यादव भी उनका साथ देते हैं। और इसके बदले उन्हें पाँच बीघा जमीन मिलती है। जब हरगौरी सिंह नया तहसीलदार बनता है और पुराने रैयतों से जमीन छीनकर नई बन्दोबश्ती का एलान करता है, तो रामखेलावन यादव भी यादव टोली के रैयतों की नीलाम ली हुई जमीन अपने नाम करा लेते हैं। अन्त में सन्थालों और डकैती के मुक़दमे में फसने के फलस्वरूप उस पर कर्ज चढ़ता जाता है और उनकी सारी जमीन जायदाद चली जाती है। रामखेलावन यादव जैसे पात्रों के चरित्र-चित्रण से एक बात बहुत स्पष्ट है। वह यह कि ऐसे व्यक्तियों के लिए अपना वर्गीय हित ही सबसे ज्यादा महत्त्वपूर्ण है। ऐसे चरित्र के व्यक्ति अपनी जाति विशेष के नुमाइन्दे बनने की कोशिश तो करते हैं, लेकिन अन्त में वे अपनी सम्पूर्ण जाति या मानवता के उत्थान को छोड़कर सिर्फ अपने ही उत्थान में लगे रहते हैं।

 

तहसीलदार विश्‍वनाथ प्रसाद मैला आँचल के प्रमुख पात्रों में से एक हैं। तहसीलदार ने अपनी तिकड़म, चालाकी और बेईमानी से मेरीगंज की एक हजार बीघे जमीन पर अकेले कब्ज़ा जमा रखा है। उनके दादा  छल-कपट से परबंगा स्टेट में मिल गए, उनके पिता ने भी जीवन भर छल-प्रपंच का सहारा लिया और अब विश्‍वनाथ प्रसाद भी अपने बाप दादाओं के नक्शे कदम पर हैं। तहसीलदार के काइंयापन का खुलासा पहले ही पृष्ठ पर हो जाता है, जब उसे यह सूचना मिलती है कि गाँव में मलेटरी वाले आए  हैं तो उन्हें घी, बासमाती चावल और खस्सी का उपहार देते हैं। रास्ते में वे बिरंचीदास से यह कहना नहीं भूलते कि हिसाब लगाकर देख लो, पूरे पचास रुपए का सामान है। यह रुपया एक हफ्ते के अन्दर ही अपने टोले और लोबिन के टोले से वसूल कर जमा कर देना। ‘अपने फायदे के लिए एक तरफ तो मलेटरी वालों की चापलूसी है, दूसरी तरफ अपने ही रैयतों के लिए उनहोंने एक तालाब में जोंक पाल रखी है, जो लोग लगान या कर्ज के रुपए समय से नहीं दे पाते, उन्हें उसी तालाब में वह घण्टों खड़ा रखता है। तहसीलदार विश्‍वनाथ प्रसाद, चापलूस और शोषक होने के साथ-साथ समय के रुख को भाँप लेने वाले चालाक व्यक्ति भी हैं। वह जनान्दोलन को देखते हुए तहसीलदार के पद से इस्तीफ़ा दे देते हैं और कांग्रेस पार्टी में चार सौ रुपए देकर विशिष्ट सदस्य बन जाते हैं,  खद्दर पहनने लगते हैं और जिला कांग्रेस कमेटी के सदस्य बन जाते हैं। कपड़ा, चीनी, सीमेण्ट के परमिट देने का जो दायित्व अब तक सच्‍चे गाँधीवादी बालदेव पर है, वे दायित्व छद्म गाँधीवादी, किसानों के शोषक विश्‍वनाथ प्रसाद हथिया लेते हैं, विश्‍वनाथ प्रसाद के इस चरित्र-चित्रण के माध्यम से रेणु ने उस समय की राजनीतिक सचाई को उजागर किया  है।

 

वे बड़ी चालाकी से मेरीगंज के दलितों और पिछड़ी जाति के लोगों को सन्थालों के खिलाफ कर देते हैं। वे गाँव वालों के मन में यह बात अच्छी तरह से भर देते हैं कि सन्थाल बाहरी आदमी है। गाँव  के लोग भोले-भाले तो हैं  ही, कालीचरण जैसे नेता भी इनके बहकावे में आ जाते हैं। इसलिए जब सन्थाल अपने हक़ के लिए हमला करते हैं, तो मेरीगंज के सारे मजदूर किसान, राजपूत टोला के सभी लोग उस संघर्ष में विश्‍वनाथ प्रसाद का साथ देते हैं। विश्‍वनाथ प्रसाद ने डाकुओं की एक टोली भी बुला रखी है, इस संघर्ष में कई लोग मारे जाते हैं। कई घायल होते हैं,  बूढी स्‍त्रियों और बच्‍च‍ियों के साथ भी सामूहिक  बलात्कार होता है  और इस प्रकार ‘फूट डालो राज करो’ की नीति पर चलते हुए वे एक क्रान्तिकारी भूमि-संघर्ष और वर्ग-संघर्ष को नाकाम कर देते हैं। यह विश्‍वनाथ प्रसाद की क्रूरता नहीं तो और क्या है। लेकिन इस पर भी विश्‍वनाथ प्रसाद का कुछ नहीं होता,  मुकदमा चलता है और सजा सन्थालों को मिलती है। यह हमारे देश की न्याय-व्यवस्था का असली चेहरा है, जिसे दिखाने के लिए रेणु ने विश्‍वनाथ जैसे चरित्रों को गढ़ा है और इसमें उन्हें पूरी सफलता मिली है। विश्‍वनाथ प्रसाद शिक्षित चालाक और क्रूर व्यक्ति हैं, वे अपनी मानसिकता में कुछ हद तक गोदान के रायसाहब के समान हैं। एक दिन वे डॉ. प्रशान्त से कहते हैं कि “जिस दिन धनी, जमीन्दार, सेठ और मिल वालों को लोग राह चलते कोढ़ी और पागल समझने लगेंगे, उसी दिन असली सुराज हो जाएगा।”

 

जिस व्यक्ति का चरित्र इतना क्रूर और घृणास्पद है, उसी व्यक्ति का रेणु ने अन्त में हृदय-परिवर्तन करा दिया है। कमली, जो विश्‍वनाथ प्रसाद की पुत्री है, उसके पुत्र जन्म के बाद विश्‍वनाथ प्रसाद का हृदय परिवर्तित हो जाता है, वे गाँव  के प्रत्येक परिवार को पाँच बीघे की दर से जमीन लौटा देते हैं और सन्थाल टोले के लोगों को भी जिन्हें अब तक वे बाहरी साबित करते आए थे। उन्हें भी जमीन देते हैं। और इस प्रकार एक सौ बीघे जमीन को वे किसानों में बँटवा देते हैं । विश्‍वनाथ प्रसाद जैसे व्यक्ति का इस तरह सरल और दयालु हृदय हो जाने का कारण समझ में नहीं आता। अब तक शोषण के पुतले के रूप में जिस विश्‍वनाथ का चित्रण अत्यन्त संघटित और व्यवस्थित तरीके से हुआ था, उसी में हृदय परिवर्तन  करा कर रेणु ने उसे कमजोर कर दिया है।

 

उपन्यास में नए तहसीलदार हरगौरी के पिता रामकिरपाल सिंह को भी रेणु ने प्रमुखता से उभारा है। रामकिरपाल सिंह राजपूत टोला के महत्त्वपूर्ण सदस्य हैं और तीन सौ बीघे जमीन के मालिक हैं। लेकिन वे भी विश्‍वनाथ प्रसाद की तरह मजदूरों का शोषण करने वाले हैं। उनका भी अपना मजदूर टोला है– ततमा और पासवान टोला। वे भी सादे कागज़ पर अँगूठे का निशान लेकर उन्हें धान देते हैं, लेकिन वे विश्‍वनाथ प्रसाद जैसे चालाक नहीं हैं। इसका एक उदहारण तब देखने को मिलता है, जब कालीचरण के कहने पर मजदूर टीप देने से मना कर देते हैं और विश्‍वनाथ प्रसाद इस अवसर का लाभ उठाते हैं। वे मजदूरों को उधार देते हैं, जिस कारण रामकिरपाल सिंह के मजदूर भी विश्‍वनाथ प्रसाद की तरफ हो जाते हैं। इस कारण जब गाँव में बलवा होता है, तब तहसीलदार विश्‍वनाथ प्रसाद के खेत के बीहन बाख जाते हैं। रामकिरपाल सिंह का सब-कुछ नष्ट हो जाता है। अन्त में वह अपनी जमीन भी नहीं बचा पाता है। विश्‍वनाथ प्रसाद उसे भी हड़प लेते हैं। लेकिन वे इतने से ही  सहानुभूति के पात्र नहीं हो जाते, क्योंकि रेणु ने पहले ही स्पष्ट कर दिया कि किस प्रकार वे गरीब मजदूर किसानों पर अत्याचार करते हैं। उम्र की इसी अवस्था में वे उसका तन्त्रिमा टोली की स्‍त्रियों से अवैध सम्बन्ध रखते हैं।  समान्तवाद के अवशेष के रूप में उसके चरित्र का विश्‍लेषण किया जा सकता है।

 

उपन्यास के एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण पात्र डॉ. प्रशान्त अज्ञातकुलशील है। पटना कॉलेज से एम.बी.बी.एस. की डिग्री प्राप्‍त करते हैं और विदेश में नौकरी के अवसर ठुकराकर किसी गाँव में रहकर मलेरिया और कालाजार पर शोध करना चाहते हैं। इस लिए वे मेरीगंज पहुँचते हैं। वहाँ पहुँचकर वे शोध करने के साथ-साथ उस गाँव के लोगों से घुल-मिल जाते हैं। वे ऐसे डॉक्टर नहीं हैं जो गरीबों को लूटते हैं, वे तो मेरीगंज और उसके आस-पास के गाँव  में हैजा फैलने पर दिन-रात एक करके रोगियों की बिना फीस लिए सेवा करते रहते हैं। कुओं में दवा डलवाते हैं,  इसी क्रम में उन्हें गरीब मजदूर-किसानों की जिन्दगी के असली संघर्ष का पता चलता है। उन्होंने  आस-पास के दस पन्द्र्ह गाँव का परिचय प्राप्‍त किया है। भयातुर इन्सानों को देखा है। बीमार और निराश लोगों की आँखों की भाषा पढने की चेष्टा की है। रोगियों को देखकर उठते समय,  छींके पर टंगी हुई खाली मिट्टी की हाँडियों से उसका सिर टकराया है। सात महीने के बच्‍चे को बथुआ के साग पर पलते देखा है। धीरे-धीरे डॉ. प्रशान्त को गाँवं वालों की इस दुर्दशा का कारण समझ में आ जाता है। वे कहते हैं – ‘रिसर्च पूरा हो गया है।  उन्होंने रोग की जड़ पकड़ ली है…गरीबी और जहालत… इस रोग के दो कीटाणु हैं। वे सन्थालों के संघर्ष में उनका साथ शारीरिक रूप से खड़े होकर तो नहीं देते हैं, लेकिन सन्थालों को समझाते हैं कि तुम-लोग ही जमीन के असली मालिक हो। कानून है, जिसने तीन साल तक जमीन का जोत बोया है, जमीन उसी की होगी। वे तहसीलदार विश्‍वनाथ प्रसाद की बेटी कमला से प्रेम करते हैं,  लेकिन वे विश्‍वनाथ के अत्याचारों से परिचित हैं। वे उनका विरोध भी करते हैं। कालीचरण से कहते हैं – तहसीलदार साहब मुझसे उम्र में बड़े हैं। कमला की बीमारी के चलते मुझे वहाँ ज्यादा आना-जाना पड़ता है। वे मुझे बहुत प्यार भी करते हैं… लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि मैं तहसीलदार साहब के अन्याय का भी समर्थन करूँगा अथवा पक्ष लूँगा…।

 

पूरे उपन्यास में डॉ. प्रशान्त का चरित्र,उनकी भावनात्मक संवेदना, गरीब जनता के जीवन की विडम्बनाएँ दूर करने हेतु सर्वस्व बलिदान करने की उनकी बेचैनी मेरीगंज के दमघोंटू वातावरण में एक रोशनी का प्रतीक है, इस दुनिया में तहसीलदार जैसे क्रूर लोग हैं, तो डॉ प्रशान्त जैसे उदार लोग भी हैं, जो दूसरों की जिन्दगी में रंग भरने की कोशिश करते हैं। दरअसल डॉ. प्रशान्त रेणु के सपनों और आदर्शों के प्रतीक पात्र हैं।

 

ऐसा ही एक पात्र है बावनदास, जिस पर शायद इस उपन्यास के सन्दर्भ में सबसे ज्यादा बातें कही गई हैं। ये एक विशिष्ट पात्र हैं, जो अपने व्यक्तित्व से पूरे उपन्यास में छाए रहते। वे जिला कांग्रेस कमेटी की तरफ से कांग्रेस को मजबूत करने के लिए मेरीगंज आते हैं। यहाँ आकर उन्हें पता चलता है कि कांग्रेस अपने मूल्यों और आदर्शों से भटक गई है, स्वाधीनता की लड़ाई के दौरान स्वयं  सेवकों के खिलाफ काम करने वाले आज कांग्रेस के बड़े अधिकारी बने हुए हैं। जुआ कम्पनी चलाने वाला नेपाली गाँजे और लड़कियों का धन्धा करने वाला दुलारचन्द कटहा थाना कांग्रेस का सेक्रेटरी बना हुआ है। इसीलिए वे अनुभव करते हैं कि भारतमाता जार बेजार रो रही हैं। मेरीगंज पहुँचकर वे कचहरी में चल रही रिश्‍वतखोरी और किसानों की दुर्दशा देखकर दुखी होते हैं। वही बावनदास मेरीगंज में पहले तो सन्थालों के भूमि-संघर्ष में उनके साथ रहते हैं, लेकिन फिर तहसीलदार विश्‍वनाथ प्रसाद की चालाकी का शिकार बन कर उन पर होने वाले अत्याचारों का मूकद्रष्टा बन जाते हैं। गाँधीवादी सिद्धान्तों और आदर्शों की झलक बावनदास में देखने को मिलती है। नित्यानन्द तिवारी को बावनदास जैसा चरित्र कुछ प्रसंगों में होरी के निकट लगता है। उनका मानना है कि इन दोनों चरित्रों होरी और बावनदास में जो गहरा मानवीय सरोकार है, अमानवीयता के विरुद्ध जूझते रहने का जो संघर्ष है, वह दोनों की महत्त्वपूर्ण अन्तरवर्ती विशेषता है। वे लिखते हैं– “होरी और बावनदास ऐसे साधारण मनुष्य हैं, जिनके पास अपनी आदमियत के अलावा और कोई ताकत नहीं है। उनकी इस आदमियत की सर्वाधिक गहरी छाप उनके जीने में कम, उनके मरने में अधिक है… उनका जीना इसलिए बहुत सारवान नहीं है कि  उनमें भावुकता है और मरना इसलिए अधिक सारवान है कि मानव जीवन में उभरी अमानवीय शक्तियों की क्रूरता अपने भरपूर प्रहार के साथ खुल जाती हैं… आधुनिक हिन्दी साहित्य में इन दोनों पात्रों की मृत्यु से अधिक प्रभावी और सार्थक मृत्यु दूसरी नहीं हैं।”

 

पूरे उपन्यास के कुछ चरित्रों की विशिष्टता उपन्यास को एक नया आकार देती है। ऐसा माना जाता है कि महत्त्वपूर्ण उपन्यास वह होता है जिसमें उल्लेखनीय चरित्रों को गुण-दोष की स्पष्ट श्रेणी में परिभाषित न किया जा सके। मैला आँचल  में ऐसे अनेक पात्रों की सृष्टि रेणु ने की है कालीचरण उनमे से एक है। कालीचरण पूरे उपन्यास में एक उत्साही पात्र के रूप में सामने आते हैं। कालीचरण मेरीगंज की पिछड़ी जातियों के सम्मान को जगाने का प्रयत्न करते हैं और उसी के प्रयत्नों के फलस्वरूप तन्त्रिमा टोली की पंचायत निर्णय लेती है की कोई औरत अब बाबू टोला के किसी आँगन में काम करने नहीं जाएगी। बाबू बबुआन लोग शाम को गाँव में आवें कोई हर्ज नहीं,  किसी की अन्दर हवेली में नहीं जा सकते। मजदूरी में जो एक आध सेर मिले उसी में सबों को सन्तोख करना होगा। इतना ही नहीं, उसका साहस तब भी देखने को मिलता है जब लरसिंघदास महन्ती का टीका रामदास से हड़प लेना चाहता है, लक्ष्मी इसे रोकने के लिए सबसे प्रार्थना करती है। लेकिन कोई इसके लिए आगे नहीं आता। ऐसे समय में कालीचरण आगे आता है। इस अन्याय का पुरजोर ढंग से विरोध करता है। सहदेव मिसर,  फुलिया वाले प्रसंग में भी उसकी न्याय-भावना, निर्णय लेने की क्षमता, तथा निर्भयता का परिचय मिलता है। पढ़ा-लिखा न  होने पर भी वे अन्धविश्‍वासी नहीं हैं।  पूरा गाँव गणेश की नानी को डायन समझता है, पर वे ऐसा नहीं मानते। वे एक उत्साही वीर युवक हैं, लेकिन उनमें दूरदर्शिता का अभाव है।

 

बालदेव भी इस उपन्यास के महत्त्वपूर्ण पात्र हैं। देश की आजादी के लिए उन्होंने कई बार जेल की हवा खाई है। वे गाँधी जी के अहिंसा, अनशन, सहिष्णुता और आत्मनियन्त्रण के रास्ते  पर चलते हैं और हिंसा के घोर विरोधी हैं। वे गाँव के अस्पताल निर्माण के समय बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं। लेकिन इन सब के बाद उसके उसके चरित्र में कुछ मानवीय कमजोरियाँ भी हैं, वे अपनी कमजोर राजनीतिक समझ के कारण कांग्रेसी नेता बन बैठे, भूमिपतियों और पूँजीपतियों के हाथ का मोहरा बन जाते हैं और सन्थालों के विरोध में काम करते हैं। हैजे से डरकर वे बीमारों की सेवा करने वाले दल में भी शामिल नहीं होते हैं। वास्तव में बालदेव का चरित्र आजादी से पूर्व कांग्रेस पार्टी में बढ़ रहे राजनीतिकरण और उनमें  हो रहे बदलाव की तरफ इशारा करता है।

 

इस उपन्यास में कबीर मठ है, जिसके प्रमुख पात्र महन्त सेवादास हैं। वे मेरीगंज इलाके के ज्ञानी साधु समझे जाते हैं। सेवादास, उनकी मृत्यु के बाद नए महन्त रामदास, और महन्ती के दावेदार नरसिंह दास सब के सब  एक जैसे पात्र हैं। इन पात्रों के सहारे रेणु ने मठों में होने वाले अत्याचार, शोषण का खुलकर वर्णन किया है। इनके पोंगापन्थी का एक-एक रेशा खोलकर रेणु ने पाठकों के समक्ष रख दिया है। इसी मठ पर एक नागा साधु आता  है, जो औरों की तरह ही चरित्रहीन है। यह लक्ष्मी को अश्लील-अश्लील गालियाँ देता है। एक दिन तो वह साधु रात में चुपचाप खाली पैर लक्ष्मी के कोठरी में प्रवेश करने की भी कोशिश करता है।

 

जोतखी, खलासी, फुलिया, फुलिया की माँ, रामप्यारी चिचाय की माँ, रमजू की माँ… मैला आँचल के ये सभी पात्र पिछड़े गाँवों की जहालत, अन्धविश्‍वास, रूढ़िवादिता और चरित्रहीनता के प्रतीक पात्र है। जोतखी, जिसे ज्योतिष शास्‍त्र का कुछ भी ज्ञान नहीं है, लेकिन वे गाँव  वालों पर अपने ज्ञानी होने का रौब झाड़ते रहते हैं। वे पारबती की माँ को डायन घोषित करा देते हैं। एक बार पंचायत में वे प्रस्ताव रखते हैं कि इसे मैला घोलकर पिलाया जाए। हैजा, आज़ादी की लड़ाई में अंग्रेजों  द्वारा किए जाने वाले अत्याचार, सभी को वे ग्रहों का दोष मानते हैं। इसी तरह खलासी को पूरा गाँव भूत-प्रेत की विद्या में निपुण मानता है। उनकी मिथ्याचार की हद यहाँ तक है कि वह गाँव में मुकदमेबाजी के फलस्वरूप फ़ैली तबाही को बनरभुत्ता अर्थात बन्दर के भूत का परिणाम घोषित करते हैं।

 

4. मैला आँचल के प्रमुख स्‍त्री पात्र

 

रमजू की माँ तन्त्रिमा टोली की चरित्रहीन और भ्रष्ट औरत है। वे बुढापे में भी जवान लड़कियों के अवैध सम्बन्धों का प्रबन्ध करती हैं और इसलिए सभी लड़कियाँ  उसके वश में रहती हैं। न जाने वह कब किसका भेद खोल दे। फुलिया की माँ का चरित्र भी कुछ इसी तरह है। वे भी स्वयं  कई व्यक्तियों के साथ अवैध सम्बन्ध में रह चुकी हैं। वे जानती है कि उसकी बेटियाँ  ऊँची जाति के युवकों और प्रौढ़ व्यक्तियों से अवैध सम्बन्ध रखती है, पर उन्हें इस बात का तनिक भी संकोच नहीं है। वे तो इस बात को बढ़ावा देती हैं और उपहार पाकर प्रसन्‍न रहती हैं।

 

उनकी बेटी फुलिया भी उनके ही नक़्शे कदम पर है। वे मुक्त काम सम्बन्धों में विश्‍वास  रखती हैं। किसी प्रकार का नैतिक बन्धन स्वीकार नहीं करती। सहदेव मिसिर उनका प्रेमी है, जिसके साथ उसके शारीरिक सम्बन्ध भी हैं। इसके बावजूद वे खलासी से विवाह करती है और सहदेव मिसिर से रिश्ता बनाए रखती हैं। फिर खलासी को छोड़कर पैटमैन के साथ रहने लगती हैं। रामप्यारी भी उसी की तरह हैं। रामदास को फँसा लेती हैं और उसी के साथ रहने लग जाती हैं। उपन्यास के अन्य स्‍त्री पात्रों में लक्ष्मी और कमली दो महत्त्वपूर्ण पात्र हैं। कमली तहसीलदार विश्‍वनाथ प्रसाद की बेटी हैं। जो इस अन्धविश्‍वास का शिकार हो जाती हैं कि लड़की अपशकुनी है, इसके पैर अच्छे नहीं हैं, यह मनहूस है। जहाँ भी इसका विवाह तय होता है, वहाँ कोई न कोई अनिष्ट हो जाता है। कमली इन सारी बातों से दुखी है, और अन्त में वह डॉ प्रशान्त से मिलकर अपनी परेशानी भूलने लगती है और उससे प्रेम करने लगती है। विवाहपूर्व गर्भवती हो जाने के बाद भी वह डॉ प्रशान्त के प्रति अपने विश्‍वास को बनाए रखती हैं।

 

लक्ष्मी मैला आँचल के सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण पात्रों में से एक हैं। इस संसार में उनका कोई भी नहीं है। उनके पिता की मृत्यु भी हो चुकी है। महन्त सेवादास ने उन्हें अपनी बेटी की तरह पालने का वचन दिया था, लेकिन उसी सेवादास ने उसे अपनी कामवासना का शिकार बनाया। एक प्रत्यक्षदर्शी पात्र के शब्दों में–  “कहाँ वह बच्‍ची और कहाँ पचास बरस का बुड्ढा गिद्ध। रोज रात में लक्ष्मी रोती थी। ऐसा रोना कि जिसे सुनकर पत्थर भी पिघल जाए … सुबह में रोने का कारण पूछने पर चुपचाप टुकुर-टुकुर मुँह देखने लगती थी। ठीक गाय की बाछी की तरह,  जिसकी माँ मर गई हो। लक्ष्मी का अनुभव था कि अन्धा आदमी जब पकड़ता है, तो मानो उसके हाथों में मगरमच्छ का बल आ जाता है। अन्धे की पकड़ लाख जतन करो मुट्ठी टस से मस नहीं होगी… हाथ है या लोहार की सॅड़सी, दन्तहीन मुख का दुर्गन्ध, लार इस जुगुप्सा से भरे अनुभव से लक्ष्मी रोज गुजरती है।”

 

5. निष्कर्ष

 

इन प्रमुख पात्रों के अलावा रेणु के उपन्यास में अनेक पात्र हैं, जो मेरीगंज की कथा से ऐसे गुँथे हैं कि उन्हें अलग कर पाना असम्भव है। सुमिरातदास, चलित्तर कर्मकार, सहदेव मिसिर, गणेश की नानी, प्यारु ममता जैसे अनेक पात्र हैं जिनके बिना रेणु के मैला आँचल की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। रेणु ने अपने पात्रों की रचना में अद्भुत सफलता प्राप्‍त की है। वे पात्र अपने व्यक्तित्व की विशिष्टता बरकरार रखते हुए मेरीगंज के सम्पूर्ण व्यक्तित्व निर्माण में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। रेणु के पात्रों की सबसे बड़ी खूबी यह है कि वे हमारी जानी-पहचानी दुनिया के पात्र हैं। अपने एक संस्मरण में रेणु के पात्रों पर बात करते हुए अज्ञेय लिखते हैं– उपन्यासकार की शक्ति की एक माप यह भी है, कि उसने कितने स्मरणीय चित्र हमें दिए हैं। इस कसौटी पर भी रेणु खरे उतरते हैं। उनके चरित्र न केवल हमारी स्मृति में बस जाते हैं,  वरन हमारे अन्तर्विवेक को ऐसे रंग जाते हैं कि हमें बार-बार अपने जीवन में मिलने वाले चरित्रों को इन्हीं काल्पनिक चरित्रों से नापने लगते हैं।

 

अतिरिक्त जानें

 

पुस्तकें

  1. हिन्दी उपन्यास एक अन्त यात्रा, रामदरश मिश्र , राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली
  2.  अधूरे साक्षात्कार,नेमिचन्द्र जैन, राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली
  3. हिन्दी उपन्यास की संरचना, गोपाल राय , राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली
  4. आधुनिक हिन्दी उपन्यास-2, नामवर सिंह (सम्पादक)  राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली
  5. हिन्दी उपन्यास का इतिहास, गोपाल राय , राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली
  6. हिन्दी उपन्यास का विकास, मधुरेश, सुमित प्रकाशन, इलाहबाद

 

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