2 आधुनिकता और समकालीनता का सम्बन्ध
एस. डी. कपूर
- पाठ का उद्देश्य
इस पाठ के अध्ययन से आप –
- आधुनिकता की अवधारणा से परिचित हो सकेंगे।
- आधुनिकता और समकालीनता के सम्बन्ध की जानकारी प्राप्त कर सकेंगे।
- आधुनिकता और आधुनिकतावाद में भेद कर सकेंगे।
- ‘आधुनिकता’ पद का व्यवहार कब और किन परिस्थितियों में शुरू हुआ, इसकी पृष्ठभूमि जान सकेंगे।
- प्रस्तावना
यूरोप में आधुनिकता की शुरुआत पन्द्रहवीं सदी के रिनेसां (पुनर्जागरण) से मानी जाती है। आधुनिकता को एक विचारधारा के रूप में समझने के लिए दो बातों पर पर ध्यान देना जरूरी है। एक तो इससे जुड़ी पारिभाषिक शब्दावली; दूसरा इसका ऐतिहासिक सन्दर्भ। आधुनिक, प्राचीन के विपरीत अर्थ में इस्तेमाल होता है। अक्सर इतिहास का विभाजन प्राचीन और आधुनिक इतिहास में किया जाता है। आधुनिक कब से माना जाए, इसमें इतिहासकारों में मतभेद हो सकता है। जहाँ आधुनिकतावाद इसके सांस्कृतिक पक्ष में इस्तेमाल होता है वहीं आधुनिकता एक विचार-प्रणाली के अर्थ में। अक्सर लोग आधुनिकता और आधुनिकतावाद को एक अर्थ में इस्तेमाल करते हैं।
हर समाज के इतिहास में ऐसे अवसर आते हैं जब वहाँ नए विचारों का उदय होता है और वे स्थापित विचारों को चुनौती देते हैं। यह चुनौती लगातार मिलती रहे तो वह एक आन्दोलन का रूप ले लेता है। निरन्तरता के बिना वह व्यापक असर नहीं डाल पाता। वह एक विचार प्रणाली का हिस्सा तभी बन सकता है जब एक सशक्त आन्दोलन का रूप ले और पुरानी विचार प्रणाली को बदले। रेमण्ड विलियम Culture and Society में लिखते हैं– “शब्दों के अर्थ भी बदल जाते हैं; प्रकृति, समाज धर्म के नए तरीके से देखा जाने लगता है। मनुष्य को नए तरीके से परिभाषित किया जाता है और उसके समाज से और प्रकृति से सम्बन्ध भी नए तरीके से परिभाषित होते हैं। इसे ही नए युग की शुरुआत कहते हैं।”
- आधुनिकता का इतिहास
पश्चिम में आधुनिकता के बीज पन्द्रहवीं शती में ही पुनर्जागरण (रिनेसां) के दौरान बो दिए गए थे। पुनर्जागरण ज्ञान का पुनर्जन्म था। रोज़र बेकन (Roger Bacon) एक साधु, विद्वान और वैज्ञानिक थे। नए विचारों को विकसित कर रहे थे। वे धार्मिक साधु नहीं थे; ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में रह कर अध्ययन करते थे। जब ग्रीक वैज्ञानिक तुर्की के आक्रमण के डर से यूरोप आए तो पहले से विचारों के विस्तार के लिए रोज़र बेकन जैसे विद्वानों ने ज़मीन तैयार कर रखी थी। यूरोप के विद्वानों ने ग्रीक विद्वानों का स्वागत किया। शेष रूप से उन पुस्तकों का जो दर्शनशास्त्र, चिकित्साशास्त्र, गणित और खगोल विद्या से जुड़ी थी। रोज़र बेकन ने कहा कि सत्य को प्रयोग से समझना चाहिए। जाँचना चाहिए कि पादरियों के नैतिक उपदेश सही हैं या नहीं। इस पर धर्म के समर्थक उनके खिलाफ हो गए; उन्हें अधार्मिक विचार फैलाने के अपराध में जेल में डाल दिया गया। फिर भी उनके विचारों को फैलने से रोका नहीं जा सका। पोप के कहने पर उन्होंने अपने विचारों को तीन ग्रन्थों में लिख कर दिया, पर पोप सन्तुष्ट नहीं हुए, उनकी रिहार्इ नहीं हुई। उनका यह कहना था कि पुस्तकों में सत्य को खोजने की जगह प्रकृति के सत्य को समझना चाहिए, यह कैथौलिक चर्च के धार्मिक विचारों को सीधी चुनौती थी। लेकिन इस प्रक्रिया में उन्होंने कुछ वैज्ञानिक तथ्यों को भी स्थापित करते हुए मोटरकार, हवार्इ जहाज़ और पानी के जहाज़ के अविष्कार की नींव रखी।
इसी प्रकार रोज़र विलियम ने रोमन कैथौलिक चर्च के उपदेशों को यह कहकर चुनौती दी कि लोगों को स्वयं बाइबिल पढ़नी चाहिए। रोज़र विलियम एक पादरी और विद्वान थे। उनको भी रोज़र बेकन की तरह जेल में डाल दिया गया। यह एक ‘नॉन कन्फर्मिस्ट’ विचारधारा थी, क्योंकि अब तक यह माना जाता था कि केवल पादरी ही धार्मिक पुस्तकों की व्याख्या कर सकते हैं। मनुष्य स्वयं बाइबिल पढ़ेगा तो वह अधार्मिक कर्म होगा। इस ‘नॉन कन्फर्मिस्ट’ आन्दोलन को मॉर्टिन लूथर (सन 1500) से समर्थन मिला। वे एक मठवासी थे और विश्वविद्यालय के प्रोफेसर भी थे। उन्होंने सीधे-सीधे, धर्म की मान्यताओं और स्थापनाओं को चुनौती दी। इससे पोप अत्यधिक रुष्ट हुए, उन्होंने आदेश निकाला कि मार्टिन को न केवल चर्च से निकाल दिया जाए बल्कि सबके सामने जला दिया जाए। लेकिन जर्मन जनता लूथर के विचारों से प्रभावित थी और उनका समर्थन करती थी। इसीलिए पोप का आदेश राजा ने नहीं माना। यही नहीं, लूथर ने पोप के आदेश को जनता के सामने जलाकर उसका विरोध किया। लूथर इस तरह ‘प्रोटेस्टवाद’ या ‘प्रोटेस्टेण्ट सुधार’ के नेता बन गए। यह रिनेसां के अलावा दूसरा बड़ा आन्दोलन था जिसने आधुनिक विचार प्रणाली को मज़बूती प्रदान की।
इंग्लैण्ड में थॉमस मूरे ने अपनी पुस्तक यूटोपिया में एक आदर्श समाज की कल्पना की जहाँ लोग अपना धर्म स्वाभिमानी तरीके से अपनाते हैं और समाज को एक व्यवस्था द्वारा चलाया जाता है। यह सुधार आन्दोलन ही था, जिसने यूरोप के विचारों में क्रान्ति लाई। इसके साथ ही छापाखाने का आविष्कार हुआ। सन 1478 में इंग्लैण्ड में पहला छापाखाना लगा, जिससे विचारों के प्रसार में मदद मिली। इस विकासक्रम में दो बातें साथ साथ चलीं। वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा मिला, प्राचीन विचारों को चुनौती मिली। ये दोनों बातें एक दूसरे की पूरक थीं। इसके साथ एक और महत्त्वपूर्ण बात हुर्इ। इससे राजकीय सत्ता और चर्च के गठबन्धन को भी झटका लगा। राज्य सत्ता और धार्मिक सत्ता के केन्द्र अब तक एक विशेष प्रकार के समाज की बनावट पर टिके हुए थे। इन दोनों सत्ता केन्द्रों को चुनौती मिलने से सामाजिक बनावट के बदलाव की प्रक्रिया के साथ धर्मनिरपेक्षता की शुरुआत हुई।
अमेरिकी और फ्रांसीसी क्रान्ति की शुरुआत वाल्तेर, रूसो और पेन के विचारों से हुर्इ। यह सिद्ध हो गया कि विचारों की क्रान्ति से ही राजनीतिक क्रान्ति पैदा होती है। पेन ने अमेरिकी और फ्रांसीसी–दोनों क्रान्तियों में भाग लिया था। इन सबकी परिणति यूरोपियन आन्दोलन में हुर्इ जिसे प्रबोधन कहते हैं। यह 17 वीं शताब्दी के अन्त में और 18 वीं शताब्दी के आरम्भ में विकसित हुआ। यह एक बौद्धिक आन्दोलन था जिसने नए युग को एक व्यापक आधार दिया। विचारों में परिवर्तन हुआ और धर्म के स्थान पर तर्क को नए मूल तत्त्व के रूप में स्वीकार किया गया। बाखतीत इसको एकालापीय कल्पना का संवाद कल्पना में बदलाव कहते हैं, और इसे उपन्यास की शुरुआत मानते हैं। उनके अनुसार उपन्यास की संरचना संवाद है। इसमें समाज को नए रूप में परिभाषित किया गया। मनुष्य को नए तरीके से परिभाषित कर मनुष्य और समाज के अन्त:सम्बन्ध को स्थापित किया गया। साथ ही इतिहास को भी नए रूप में परिभाषित कर उसमें विकास की प्रक्रिया कारण और परिणाम के साथ जोड़ी गई। इतिहास पुरानी चीज़ों की पुनरावृत्ति नहीं है बल्कि एक बदलाव की प्रक्रिया है।
- आधुनिकता और धर्म
विद्वानों ने यह स्थापित करने की कोशिश की है कि हमारे देश में आधुनिकता पहले से ही मौजूद थी, जो विदेशियों के आधिपत्य की वजह से विकसित नहीं हो सकी। बात कुछ हद तक सही भी है। लेकिन हम आधुनिकता को मिटाने वाले अवयवों को अपने इतिहास में तलाश कर सकते हैं। हमें यह स्वीकार करना पड़ता है कि आधुनिकता एक विचार प्रणाली के रूप में पश्चिम में विकसित हुर्इ। आधुनिकता के साथ सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह आई कि मनुष्य को सामाजिक और राजनीतिक सन्दर्भ में परिभाषित किया गया, न कि धार्मिक सन्दर्भ में, जो हमारे यहाँ हमेशा से होता रहा। भारत में हमेशा से कहा जाता रहा है और अब भी कहा जाता है कि सब मनुष्य ईश्वर की सन्तान हैं, बराबर हैं। लेकिन दैनिक जीवन में इसका अनुसरण नहीं होता, कुछ लोगों को बराबर नहीं समझा जाता। कभी जाति के नाम पर, कभी धर्म के नाम पर लोगों के साथ भेद-भाव किया जाता रहा है। आधुनिकता आने से पहले स्थिरता प्रदान करने वाला मूलतत्त्व धर्म था। उसी मूल तत्त्व के सन्दर्भ में सामाजिक बनावट और मनुष्य के व्यवहार को समझा जाता था। सामाजिक परिवर्तन उस मूल तत्त्व का हिस्सा नहीं था, क्योंकि वह दैवीय विधान को चुनौती करने वाला होता। बदलाव की प्रक्रिया आधुनिकता के साथ आर्इ। साथ-साथ यह विचार भी आया कि बदलाव सम्भव है।
एक नए सामाजिक विकास के मूल तत्त्वों को विकसित होने में शताब्दियाँ लग गर्इं। धार्मिकता के मूल तत्त्व को चुनौती देना इतना आसान नहीं था। क्योंकि पुरोहित वर्ग अपनी मान्यताओं के साथ समाज के हितों पर काबिज थे और उनकी धारणा का मूल संकीर्णता और अन्धविश्वास पर पनपता था। नए मूल तत्त्व ने इन सबके ऊपर सवाल उठाए।
- भारत में आधुनिकता
भारत में पश्चिमी आधुनिकता अंग्रेजों के प्रभुत्व के बाद आर्इ। भारत स्वतन्त्र देश नहीं था, इसलिए इस पर इस आधुनिकता का पूरा प्रभाव नहीं पड़ा। बुद्धिजीवी और लेखक इसके प्रभाव में आए और उन्होंने अपने समाज को और इतिहास को समीक्षात्मक दृष्टि से परखा और प्राचीन विचारों को नर्इ विचार प्रणाली से जोड़ने की कोशिश की। इनमें राजा राम मोहन राय, रवीन्द्रनाथ टैगोर, ईश्वरचन्द्र विद्यासागर, एनी बेसेंट आदि प्रमुख हैं।
रवीन्द्रनाथ टैगोर ने उपनिषदों का अध्ययन किया और उनमें तार्किक विचारों को खोजा। साथ ही उन्होंने कबीर की उन एक सौ कविताओं का अंग्रेजी में अनुवाद किया, जिसमें कबीर ने अन्धविश्वास, पाखण्ड और रूढ़िवादी मान्यताओं को चुनौती दी है। टैगोर यह स्वीकार करते हैं कि उन्होंने पश्चिमी आधुनिकता में नया सत्य पाया। वे वैज्ञानिकता से प्रभावित हुए। इसलिए उन्होंने गाँधीजी के भूकम्प सम्बन्धी विचारों का खण्डन किया जिसमें गाँधीजी उस आपदा का कारण दलितों पर किए अत्याचार मानते हैं।
बंकिमचन्द्र मानते थे कि भारत में अंग्रेजों के आधिपत्य के दो कारण थे– पहला भाग्य में विश्वास रखने वाली आम जनता में स्वतन्त्र होने की तीव्र इच्छा की कमी और दूसरा राष्ट्रीय एकता का अभाव। राष्ट्र को सबसे ऊपर मानने के सोच का अभाव।
यह कहना सही नहीं होगा कि यह दृष्टिकोण स्वत: पैदा हुआ और पश्चिमी आधुनिक विचार प्रणाली से इसका कोर्इ सम्बन्ध नहीं था। पश्चिमी आधुनिकता ने ठहरे हुए भारतीय समाज में हलचल पैदा की। प्रश्न उठता है कि क्या आधुनिकता की एक स्वतन्त्र धारा भारत में थी, और यदि थी तो वह विकसित क्यों नहीं हुर्इ? क्या इसकी वजह हमारी लम्बी गुलामी और स्वतन्त्र विचारों का विकसित न होना था? यह मानना पड़ेगा कि व्यापक और सुव्यवस्थित रूप से आधुनिकता पश्चिम से आर्इ। इस सन्दर्भ में कई भारतीय विद्वानों ने अपनी राय दी है।
- आधुनिकता और भारत
अमर्त्य सेन अपनी पुस्तक THE ARGUMENTATIVE TRADITION : WRITING ON INDIAN HISTORY, CULTURE AND IDENTITY में कहते हैं कि भारत के इतिहास में तर्क परम्परा विद्यमान थी। सांस्कृतिक बहस में इस बात को अनदेखा किया जाता रहा है। वे विशेष रूप से दो शब्दों Heterology यानी स्थापित मान्यताओं की चुनौती देना और Dialouge यानी संवाद द्वारा स्थापित करते हैं कि आधुनिकता के इन दो अवयवों से भारतवासी अनभिज्ञ नहीं थे, पूरा भारतीय इतिहास इसका है। विश्व में जो विज्ञान का विकास हुआ वह heterology की वजह से हुआ। लेकिन वे लोकतन्त्र को पश्चिम के उपहार के रूप में स्वीकारने और बचने की सलाह देते हैं। यह मानते हैं कि भारतीय लोकतन्त्र, तर्क और विचारों के आदान-प्रदान से ही सम्भव है और यह परम्परा पश्चिम में ही नहीं भारत समेत अन्य देशों में भी रही है।
अमर्त्य सेन तर्क की परम्परा के स्त्रोत वेद को मानते हैं। ऋग्वेद में मुश्किल प्रश्न उठाए गए हैं–सृष्टि के सम्बन्ध में। क्या सृष्टि स्वयं पैदा हुर्इ? या किसी ने उसे बनाया? या कोर्इ भगवान है जिसको यह सब मालूम है? हो सकता है कि सवालों के उत्तर उन्हें भी न मालूम हो। वाल्मीकि रामायण में एक पण्डित जावाली, राम को भगवान नहीं मानते। वे कहते हैं कि हम जो देखते हैं या अनुभव करते हैं उसी को सत्य मानना चाहिए। वह यह भी कहता है कि जो अनुभव से परे है उसके बारे में चिन्ता नहीं करनी चाहिए। कोर्इ दूसरी दुनिया नहीं है और धार्मिक क्रियाकलापों से उन तक नहीं पहुँचा जा सकता है। मानना चाहिए कि भारत में नास्तिकों, अज्ञेयवादियों और संरचनावादियों के लिए भी स्थान रहा है।
भारतीय इतिहास में बुद्ध पहले विचारक थे जिन्होंने पुरोहितवाद और स्थापित मान्यताओं को चुनौती दी और एक वर्गहीन समाज की कल्पना की। साथ ही तर्क द्वारा दु:ख की व्याख्या भी की। यह खुली बहस की शुरुआत थी। सभाएँ होती थीं जो धार्मिक मतभेदों और विभिन्न विचारों को सुलझाती थीं। अशोक के जमाने में भी इसे मान्यता मिली। बाद में अकबर के समय में भी देखने को मिलती है।
विज्ञान और गणित का विकास गुप्त काल में हुआ। आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी के अनुसार गुप्त काल भारतीय इतिहास का स्वर्णकाल था। इस समय कला के सभी रूपों का जमकर विकास हुआ। यहाँ आर्यभट्ट (5वीं शताब्दी) वराहमिहिर (6वीं शताब्दी) और ब्रह्मगुप्त (7वीं शताब्दी) में विज्ञानसम्मत तर्क देखा जा सकता है। साथ ही कालिदास जैसी प्रतिभा भी इसी युग की देन है।
नेहरू ने अपनी पुस्तक द डिस्कवरी ऑफ इण्डिया (भारत की खोज) में लिखा है कि जाति व्यवस्था ने एकता पनपने नहीं दी और देश को कमज़ोर कर दिया। जिसके कारण विदेशियों ने हम पर आधिपत्य जमाया। विचारों में बदलाव न आने का यह एक बड़ा कारण था। ऐसी सामाजिक व्यवस्था में विकास सम्भव नहीं था। अमर्त्य सेन ने भी अपनी पुस्तक में बताया है कि देश वैज्ञानिक नहीं था। वे मानते हैं कि जो विकास पश्चिमी देशों में हुआ उसका कारण परिणामात्मक खोज और तार्किक विचार थे।
अम्बेडकर ने एक असीमित, धर्मनिरपेक्ष और प्रगतिशील दृष्टि से प्राचीन इतिहास को समझने की कोशिश की जो आधुनिकता को समझने में एक कड़ी का काम करती है। वे इसे धार्मिक और प्रगतिशील विचारधारा के संघर्ष के रूप में देखते हैं।
गाँधी जी तो पाश्चात्य सभ्यता को ही एक बीमारी मानते थे। टैगोर इसके कुछ हिस्सों को स्वीकार करते थे लेकिन वे भारतीय सांस्कृतिक और दार्शनिक विचारों के भी समर्थक थे। उनको यह अजीब लगता था कि इन सब के बाद भी लोगों ने समाज के एक वर्ग को मानवीय जीवन जीने से वंचित रखा और अपनी संस्कृति के नाम पर उनके साथ अन्याय किया। टैगोर भी पाश्चात्य आधुनिकता को पूरी तरह स्वीकार करने को तैयार नहीं थे। वे कहते थे कि भारत की संस्कृति इतनी कमज़ोर नहीं है। आदि संस्कृति छोड़े बिना ही भारत स्वयं आधुनिक बन सकता है। इसलिए वे पाश्चात्य साम्राज्यवाद और उसके मानवतावादी रूप में फर्क करते हैं और यहाँ गाँधी जी से उनका मतभेद था। वे पश्चिम की उपलब्धियों को स्वीकार करने को तैयार थे, पर अन्धानुकरण को तैयार न थे। आध्यात्मिक क्षेत्र में पाश्चात्य सभ्यता का कोर्इ योगदान नहीं है। इस क्षेत्र में पूर्वी सभ्यता उनसे अधिक समृद्ध है।
- आधुनिकता की विशेषताएँ
- आधुनिकता में स्वचेतना की प्रधानता होती है।
- यह अपने अतीत को वर्तमान की दृष्टि से परखती है।
- धर्म को भी विज्ञान के आलोक में परखने की प्रवृत्ति आधुनिकता का एक लक्षण है।
- आधुनिकता मनुष्य केन्द्रित चिन्तन है।
- यह तर्क को बढ़ावा देती है और उसी सत्य को स्वीकार करने की सलाह देती है जो आपका अपना हो।
- यह औद्योगिकीकरण को बढ़ावा देती है।
8. आधुनिकता और समकालीनता
समकालीन कभी-कभी आधुनिकता के पर्याय के रूप में इस्तेमाल होता है। समकालीनता किसी विचारधारा से जुड़ी हुई नहीं है। यह वर्तमान समय की गतिविधियों को बताने वाला शब्द है। पिछले काल के दो लेखक भी समकालीन कहे जा सकते हैं। इसी प्रकार आधुनिक काल के दो लेखक समकालीन कहे जा सकते हैं। समकालीन के मायने यह है कि यह उस समय की गतिविधियों, समस्याओं या चुनौतियों को सामने रखता है। उसे विद्वान अपनी विचारधारा के अनुसार परिभाषित करते हैं।
आधुनिकता का एक अर्थ समकालीनता भी होता है। यदि कहा जाए कि हम आधुनिक समय में जी रहे हैं तो इसका एक मतलब यह होगा कि हमारा वर्तमान अतीत की तुलना में बेहतर है।
समकालीनता आधुनिकता से जुड़ा हुआ पद है। पर कई बार यह आधुनिकता से भिन्न भी हो सकता है। तुलसीदास और रहीम समकालीन थे तो इसका अर्थ यह हुआ कि दोनों एक ही समय में मौजूद थे। इसका अर्थ यह नहीं हुआ कि वे दोनों आधुनिक भी थे। इसी तरह अगर कहा जाय कि भारतेन्दु और निराला आधुनिक साहित्यकार हैं तो इसका मतलब यह नहीं होगा कि दोनों एक ही समय में वर्तमान हैं।
आधुनिकता वर्तमान समय के अलावा इतिहास के एक विशेष कालखण्ड को भी कहा जा सकता है। जैसे आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी हिन्दी साहित्य में सन् 1860 से आधुनिक काल की शुरुआत मानते हैं। लेकिन समकालीन समय आधुनिक (वर्तमान) होने के साथ ही साथ उत्तर-आधुनिक भी कहा जाने लगा है।
दरअसल इतिहासकारों ने समाज के अध्ययन की सुविधा के लिए समय को तीन खण्डों में बाँट दिया है। प्राचीन, मध्य और आधुनिक। लेकिन मध्यकालीन होते हुए भी विचारों के क्षेत्र में कोई आधुनिक हो सकता है– जैसे कबीर। कोई आधुनिक समय में हमारा समकालीन होते हुए भी विचारों से पुरातन पंथी हो सकता है।
- निष्कर्ष
आधुनिकता मूलतः यूरोप से आया हुआ विचार है। भारत के सन्दर्भ में आधुनिकता का वही अर्थ नहीं है जो यूरोप के सन्दर्भ में है। हम यूरोप के समकालीन होते हुए भी उनकी तुलना में कम आधुनिक हैं क्योंकि वे तकनीक (टेक्नोलोजी) में हमसे बहुत आगे हैं। पर विचारों के क्षेत्र में हम उनके समकालीन भी हैं।
साहित्य में विचार और व्यवहार की आधुनिकता का ही महत्त्व है। कबीर मध्ययुग में होते हुए भी आधुनिक हैं।
समकालीनता और आधुनिकता पूरी तरह भिन्न न होते हुए भी एक ही नहीं हैं।
you can view video on आधुनिकता और समकालीनता का सम्बन्ध |
अतिरिक्त जानें
बीज शब्द–
- आधुनिकता– आधुनिकता एक विचारधारा या विचार-प्रणाली है।
- आधुनिकतावाद– आधुनिकतावाद आधुनिकता के सांस्कृतिक-पक्ष को द्योतित करता है।
- पुनर्जागरण – 15 वीं सदी में यूरोप में नए विचारों के उदय को पुनर्जागरण या रिनेसाँ कहते हैं।
- प्रबोधन – फ़्रांस में 17 वीं सदी के अंत और 18 वीं सदी की शुरुआत में विकसित राजनैतिक और वैचारिक आन्दोलन को प्रबोधन कहा जाता है।
- ‘प्रोटेस्टवाद’ या ‘प्रोटेस्टेण्ट सुधार’ – 16 वीं सदी में मार्टिन लूथर के नेतृत्व में धर्म की मान्यताओं और स्थापनाओं को चुनौती देने वाला आन्दोलन । यह पुनर्जागरण के अलावा दूसरा बड़ा आन्दोलन था, जिसने आधुनिक विचार प्रणाली को मज़बूती प्रदान की है।
- समकालीनता– समकालीन कभी-कभी आधुनिकता के पर्याय के रूप में इस्तेमाल होता है। समकालीनता किसी विचारधारा से जुड़ी हुई नहीं है। यह वर्तमान समय की गतिविधियों को बताने वाला शब्द है।
पुस्तकें
- मिथक से आधुनिकता तक, रमेश कुन्तल मेघ, वाणी प्रकाशन, नई दिल्ली
- उत्तर-यथार्थवाद, सुधीश पचौरी,वाणी प्रकाशन, नई दिल्ली
- The Struggle Of Modern, Stephen Spender, University of California Press
- Orientalism, Edward Said, Vintage Book, US
- The discovery of India, Jawaharlal Nehru, Penguin India
- The Age of Capital : 1848-1875, Eric Hobsbawm,Vintage Books, U.S
- Capitalism and Modernity :The Great Debate , Jack goody ,Cambridge Maldel; MA, Polity
वेब लिंक्स