7 स्वनगुणिक दृग्विषय : अक्षर, बलाघात, तान और अनुतान
प्रो. प्रमोद कुमार पाण्डेय
पाठ का प्रारूप
- पाठ का उद्देश्य
- स्वनिमविन्यासविज्ञान और सिलेबल
- संहिता
- बलाघात
- तान
- अनुतान
- निष्कर्ष
1. पाठ का उद्देश्य
इस पाठ के अध्ययन के उपरांत आप-
- स्वनिमविन्यासविज्ञान से संबद्ध इकाई सिलेबल की अवधारणा एवं अक्षर के स्वरूप को समझ सकेंगे।
- संहिता की अवधारणा और प्रकारों से अवगत हो सकेंगे।
- बलाघात की अवधारणा तथा उसकी कोटियों से परिचित होंगे।
- तान, तान के प्रकार, तानोत्पत्ति और तानक्षति की जानकारी प्राप्त करने के साथ-साथ अनुतान एवं उसके प्रकार्यों को जान सकेंगे।
- स्वनिमविन्यासविज्ञान और सिलेबल
स्वनिमविन्यासविज्ञान स्वनिमविज्ञान का वह क्षेत्र है जो सामान्यत: खंडों (खंडात्मक ध्वनियों) के शब्दों के आरंभ, मध्य और अंत में प्रयुक्त होने के आधार पर स्वनिमों के अनुक्रमों की विशेषताओं का अध्ययन करता है।
भाषाविज्ञान के सिेलेबल की अवधारणा अक्षर की अवधारणा से संबद्ध है किंतु हिंदी में अ-लोप के कारण उसके लिखित अक्षर के समरूप नहीं रह गई है। निम्नलिखित हिंदी शब्दों के अक्षर ओर सिलेबल की संरचनाओं को देखें- [उनके पूर्व देवनागरी रूप अंतरराष्ट्रीय स्वनवर्णमाला (IPA) लिप्यंकन और व्यस्व संरचनाएँ दी गई हैं।] :
देवनागरी | अंस्वव | व्यंस्व संरचना | अक्षर | सिलेबल | |
I. | नेहा | nehā | व्यंस्वव्यंस्व | व्यंस्व . व्यंस्व | व्यंस्व . व्यंस्व |
II. | चारुलता | ʧa:rulәta: | व्यंस्वव्यंस्वव्यंस्वव्यंस्व | व्यंस्व. व्यंस्व. व्यंस्व. व्यंस्व | व्यंस्व. व्यंस्व. व्यंस्व. व्यंस्व |
III. | एक | ek | स्वव्यं | स्व.व्यं | स्वव्यं |
IV. | उपकार | upka:r | स्वव्यंव्यंस्वव्यं | स्व.व्यं.व्यंस्व.व्यं | स्वव्यं.व्यंस्वव्यं |
V. | इन्दिरा | indira: | स्वव्यंव्यंस्वव्यंस्व | स्व.व्यंव्यंस्व. व्यंस्व | स्वव्यं.व्यंस्व. व्यंस्व |
VI. | अंत | әnt | स्वव्यंव्यं | स्वव्यं.व्यं | स्वव्यंव्यं. |
VII. | इन्कार | inka:r | स्वव्यंव्यंस्वव्यं | स्व.व्यंव्यंस्व.व्यं | स्वव्यं.व्यंस्वव्यं |
ध्यातव्य है कि i, ii और v उदाहरणों में अक्षर और सिलेबल का व्यंस्व संरचनाएँ समरूप हैं। किंतु एक के ‘क’ उपकार में ‘प’ और ‘र’, अंत के ‘त’ तथा इंकार ‘के’ ‘र’ में ‘अ’ के लोप के कारण अक्षर संरचनाएँ भिन्न हो गई हैं। अत: उच्चरित ‘अक्षर’ ही भाषाविज्ञान के सिलेबल का प्रतिशब्द है।
एक भाषा के अक्षरों की विहित अक्षर संरचना भी होती है। हिंदी में विहित अक्षर संरचना है: (व्यं) (व्यं) (व्यं) स्व (व्यं) (व्यं) (व्यं) शब्द के आरंभ में या अंत में तीन व्यंजनों की उपस्थिति विरल है, जैसे स्त्री और आर्द्र में। दो व्यंजनों के गुच्छ अधिक प्रचलित हैं।
अक्षर के अंतर्गत, स्वर के पूर्व आने वाले व्यंजन प्रारंभ और स्वर के बाद आने वाले व्यंजन अंत कहलाते हैं। स्वर स्वयं केंद्रक कहलाता है। जैसाकि आपने अनुमान लगाया होगा अक्षर में केवल केंद्रक अनिवार्य है आरंभ और अंत, दोनों ही वैकल्पिक हैं। अक्षर की संरचना नीचे प्रस्तुत की गई है
आरेख 1 : अक्षर की त्रिभागी संरचना
कुछ भाषाओं में जैसे कि अंग्रेजी में कुछ व्यंजन भी केंद्रक हो सकते हैं। संस्कृत में स्वर ‘ऋ’ भी शब्द में केंद्रक की स्थिति ग्रहण करता था
अक्षर की सीमाएँ निर्धारित कर लेने के बाद, हम उन्हें ‘लघु’ और ‘गुरु’ के रूप में निम्नानुसार वर्गीकृत कर सकते हैं।
(2) लघु : व्यंस्व गुरु व्यंस्व:/व्यंस्वव्यं
हिंदी में शब्द बलाघात के वर्णन के लिए एक तीसरे प्रकार के अक्षरों- अतिरिक्त गुरु या जिसे हम गुरुतर कहें, की आवश्यकता महसूस की गई है, इसका रूप है व्यंस्व:व्यं/व्यंस्वव्यंयं, जैसे कि सितार-शिकस्त।
- संहिता (Juncture)
‘संहिता’ पारिभाषिक, एक इकाई से दूसरी इकाई में सीमा के पार संक्रमण में घटित होने वाली स्वनिक प्रक्रियाओं दृग्विषयों जैसे समयानुपात (Timing), वितति (Stretching), मोचन (Release) के संदर्भ में परिभाषित किया जाता है।
(3) (क) ले खा (इसे ले, खा)
(ख) लेखा (इसका लेखा-जोखा करना है)
(4) (क) पकड़ो मत, जाने दो।
(ख) पकड़ो, मत जाने दो।
यदि संहिता उपस्थित हो, तो यह विप्रकृष्ट संहिता (Open Juncture) कहलाती है, और यदि यह अनुपस्थित हो, तो यह सन्निकृष्ट संहिता (Close Juncture) कहलाती है। अत: रूप क्रमांक (3) (क) में विप्रकृष्ट संहिता है तथा (ख) में सन्निकृष्ट संहिता है जबकि दोनों रूपों में समरूप खंडात्मक अनुक्रम है।
- बलाघात (Stress)
बलाघात एक ऐसा दृग्विषय है जिसमें निकटस्थ अक्षर की तुलना में एक अक्षर को मात्रा (Duration), तान (Pitch), अतिरिक्त श्वास-बल (Extra breath force) और स्वर-गुण (Vowel quality) जैसे एक या एकाधिक स्वनिक अभिलक्षणों के संयोग के आधार पर महत्तर प्राधान्य दिया जाता है। बलाघात के दो प्रकार हैं- शब्द बलाघात (Word stress) और वाक्य बलाघात (Sentence stress)। वाक्य बलाघात, शब्द बलाघात और वाक्यीय कारकों पर आधारित है जैसे कि शब्दभेद ओर विशेषक-शीर्ष (Modifier Head) आदि। वाक्यीय बलाघात को लय के रूप में भी जाना जाता है। हिंदी में एक बलाघातित स्वर अबलाघातित स्वर से अधिक दीर्घ होता है जैसे कि ‘सालाना’ में और वह अबताघातित स्वर से प्रबलतर होता है, साथ ही बलाघातित स्वर पर तान भी बदल जाती है।
बलाघात की कोटियाँ (Degrees of stress)
यदि एक से अधिक बलाघात हो, उनमें से एक प्राथमिक होता है और दूसरा द्वितीयक होता है, उदाहरणत: शानदार, यद्यपि, दोनों अक्षरों में से कोई प्राथमिक या द्वितीयक हो सकता है। सभी भाषाओं में ऐसा नहीं है। उदाहरण के लिए अंग्रेजी में प्राथमिक और द्वितीयक बलाघात का स्थान निश्चित है। pathological [ˌpæθəˈlɒʤikl], devastation [ˌdevəˈsteɪʃ(ə)n].
बलाघात पूर्वानुमेय या कोशीय हो सकता है। हिंदी तथा अधिकांश भाषाओं में शब्द-बलाघात पूर्वानुमेय है। हिंदी के लिए, हिंदी शब्द-बलाघात के नियम निम्नलिखित हैं:
अतिगुरु अक्षर सदैव बलाघातित होता है।
उपांत्य गुरु अक्षर बलाघातित होता है यदि उसके बाद कोई गुरु अक्षर हो (किंतु अतिगुरु अक्षर नहीं)
शब्द की आदि स्थिति में द्विअक्षरीय शब्दों में लघु अक्षर बलाघातित होता है यदि उसके बाद कोई गुरु अक्षर हो, अन्यथा, त्रि-अक्षरीय शब्द में वह आदि अक्षर पर बलाघातित होता है, यदि उसके बाद लघु अक्षर हो।
काला /ˈka:la:/ कला /ˈkəla:/ सितार /siˈta:r/,
दारोगा/da:ˈro:ɡa:/ महिला /ˈməhila:/:
अंग्रेजी में, अधिकांश शब्दों में शब्द बलाघात पूर्वानुमेय है किंतु कुछ शब्दों में निश्चित होता है- उदाहरण के लिए ese, -ee, -ette, से अंत होने वाले अक्षरों पर बलाघात होता है- – Japaˈnese, addreˈssee, etiˈquette.
भाषाओं में इस बात को लेकर अंतर होता है कि शब्द के किस अक्षर पर बलाघात हो। अत:, तमिल में शब्द का आद्यक्षर बलाघातित होता है। तिब्बती-बर्मी भाषाओं में जैसे कि आदि (Adi) में अंत्याक्षर बलाघातित होता है।
- तान (Tone)
यद्यपि किसी भाषा समुदाय के व्यक्तियों की वाचिक भाषा में F0 की रेंज जब शब्दों में अर्थगत अंतर करने के लिए व्यवस्थित रूप से बदलती है तब हम तान पाते हैं, जिन भाषाओं में तान से शब्दों के अर्थ में अंतर आता है वे तान भाषाएं कहलाती हैं-
मा ma (तान 1- उदात्त) ‘माँ’
मा ma (तान 2- उच्च उदात्त) ‘(एक तरह की घास)’
मा ma (तान 3- निम्न स्वरित) ‘घोड़ा’
मा ma (तान 4- अनुदात्त) ‘डाँट’
आप पीटर लेडेफोजेड की पुस्तक Vowels and consonants (2012, तृतीय संस्करण) के द्वितीय अध्याय में चीनी भाषा संबंधी रेकार्डिंग में इन ध्वनियों को सुन सकते हैं जो निम्न लिंक पर भी उपलब्ध हैं-
http://www.vowelsandconsonants3e.com/chapter_2.html#
तान भाषाओं के अतिरिक्त स्वराघात के उनमें प्रयोग के अनुसार दो अन्य प्रकार की भाषाएँ हैं। स्वराघात (Pitch accent) या कोशीय आघात (Lexical accent) भाषाएँ और अनुतान (Intonational) भाषाएँ।
स्वराघात या कोशीय आघात भाषाओं में तान केवल एक या दो अक्षरों पर अंकित होती है। स्वराघात प्रधान भाषाओं के सुपरिचित उदाहरणों में आधुनिक भाषाओं में जापानी और स्वीडिश भाषाएँ तथा ऐतिहासिक प्रकारों में प्राचीन ग्रीक और वैदिक संस्कृत आती है। संस्कृत में तीन विभेदक आघात हैं- उदात्त, अनुदात्त और स्वरित। अंतिम प्रथम दो के सम्मिलन से प्रतिफलित होता है। वैदिक संस्कृत में स्वराघात के स्थान निर्धारण संबंधी नियम पाणिनि की अष्टाध्यायी में सविस्तार वर्णित हैं:
वैदिक संस्कृत के पाठ को आप निम्नलिखित लिंक में एक वीडियो में देख सकते हैं
https://www.youtube.com/watch?v=qPcasmn0cRU
अनुतान भाषाएँ वे हैं जिनमें किसी शब्द पर तान एक पदबंध या वाक्य के अर्थ को संकेतित करती है जिसका वह अंग है। उदाहरण के लिए
- (क) कमला कल देरसे आई (देर से पर अवरोही तान (Falling tone) के साथ कहा गया, वाक्य एक कथन है जिसका अर्थ है ‘कमला कल ठीक समय पर नहीं, बल्कि देर से आई)
- (ख) कमला कल देरसे आई (देरसे, पर आरोही तान (Rising tone) के साथ कहा गया वाक्य एक प्रश्न है जिसका अर्थ है ‘कमला कल देरसे आई?)
तान के प्रकार
उपर्युक्त दो भाषाओं में प्रयुक्त तान एक प्रकार की तान का उदाहरण हैं समतान (Level) या रजिस्टर (Register) तान। एक और प्रकार की तान है जो कि परिरेखा (Contour tone) तान है। दोनो प्रकार की तानों में अंतर इस बात का है कि रजिस्टर तानों में वक्ता के स्वराघात की रेंज में एक निश्चित ऊँचाई होती है जबकि परिरेखा तानों में एक स्वराघात स्तर से दूसरे स्तर तक गति का समावेश होता है।
तानोत्पत्ति (Tonogenesis)
गैर-तानीय भाषाओं में तान के उद्भव की प्रक्रिया तानोत्पत्ति कहलाती है। भारत में, मध्यकालीन आर्य-भाषाओं में अधिकांशत: तान नहीं थी हालाँकि नव्य-भारतीय आर्य भाषाओं में तान पाई गई है। मुख्यत: महाप्राणत्व अथवा घोषत्व अथवा दोनों के घोष व्यंजनों में लोप के परिणामस्वरूप जैसे कि /bʱ dʱ gʱ/. बागड़ी, डोगरी और पंजाबी जैसी भाषाओं में जिनमें हिंदी और मराठी जैसी भारतीय-आर्य भाषाओं के समान सघोष महाप्राण रूपों के स्थान पर अघोष स्फोट होते हैं, तान पाई जाती है।
अत: पंजाबी में शब्दारंभ में घोषत्व और महाप्राणत्व के क्षय ने अनुगामी स्वर पर निम्न आरोही तान तथा अंत में महाप्राण घोष व्यंजनों ने उच्च अवरोही तान को उद्भूत किया है, जैसा कि नीचे दर्शाया गया है
हिंदी पंजाबी अर्थ
/ɡʱo:a:/ /ko:˨˦ɽa:/ घोड़ा
/bhai/ /pa˨˦i/ भाई
/maɟʱ/ /maɟ˦˨/ बैल
तानीय क्षति (Tonal loss)
जैसे कि तान भाषाओं में किसी पास के स्वन में स्वनिक विशेषता के क्षीण होने पर तान उद्भूत होती है कुछ भाषाओं में तान समाप्त भी हुई है जिसमें वे गैर-तानीय भाषा में परिवर्तित हो गई हैं। तान की समाप्ति या क्षय का एक उदाहरण वैदिक संस्कृत है जो एक स्वराघात प्रधान भाषा थी। लौकिक संस्कृत में स्वराघात रहित भाषा बन गई।
- अनुतान (intonation)
अनुतान स्वराघात का शब्द से बड़ी इकाइयों पर विभेदक प्रयोग है। अनुतान वाक्यीय इकाइयों की सीमाएं चिह्नित कर या वाक्य प्रकरणों जैसे कि कथन, प्रश्न, आदेश में अंतर कर भाषिक सूचना दे सकता है। अनुतान ऊब, अधैर्य या शिष्टता जैसी गैर-भाषिक सूचनाएँ भी दे सकता है। हम अपनी चर्चा को अनुतान के भाषिक प्रकार्यों तक सीमित रखेंगे।
कल हम वहाँ जा रहे हैं
यह वाक्य किसी एक शब्द पर भिन्न तानों का प्रयोग, भिन्न अर्थों को देते हुए कहा जा सकता है
कल हम वहाँ जा˦˨ रहे हैं (कथन)
कल हम वहाँ जा˨˦ रहे हैं (प्रश्न)
कल हम वहाँ जा˦˨˦ रहे हैं (निहितार्थ)
इस वाक्य में भिन्न शब्दों को एक तान में कहकर भिन्न अर्थ दिए जा सकते हैं-
कल हम वहाँ जा रहे हैं (अर्थ: और कहीं नहीं)
कल हम वहाँ जा रहे हैं (अर्थ: किसी और दिन नहीं)
कल हम वहाँ जा रहे हैं (अर्थ: और कोई नहीं)
यदि वाक्य भिन्न शब्दों पर केंद्रक के साथ कहा जाए तो वाक्य का अर्थ बदल जाता है। हम ‘नई’ और ‘प्रदत्त’ सूचनाओं में भेद करने के लिए यह हमेशा किया करते हैं।
अनुतान के प्रकार्य
अवरेाही तान
कथनों के लिए, उदा: हमारा ऑफ़िस वहाँ है I
आदेश देने के लिए उदा: अभी ऑफ़िस आओ!
क-प्रश्न पूछने के लिए उदा: आपकी ऑफ़िस कहाँ है?
आरोही तान
हाँ/नहीं प्रश्न पूछने के लिए उदा: आप कल ऑफ़िस आ रहे हैं?
कथन को जारी रखने के लिए उदा: कल जब मैं आपके यहाँ आ रहा था…
अवरोही-आरोही तान
सीमा या प्रतिबंध आदि व्यक्त करने के लिए उदा:- यह किताब अच्छी तो है (लेकिन इतनी अच्छी भी नहीं)
अंग्रेजी ओर हिंदी प्राय: समान अनुतान अभिरचनाओं का प्रयोग करती हैं। मलयालम जैसी भाषा अनुतान के थोड़े भिन्न प्रयोग करती है। उदाहरण के लिए मलयालम में हाँ/नहीं प्रश्न अवरोही तान के साथ पूछे जाते हैं वैसे ही जैसे कि ‘क-प्रश्न’
- निष्कर्ष
- वैकल्पिक प्रारंभ और अंत और अनिवार्य केंद्रक द्वारा संरचित अक्षर की इकाई, शब्द स्वनगुणिमों में निर्णायक भूमिका निभाती है।
- संहिता एक इकाई से दूसरी इकाई में संक्रमण में होने वाली स्वनिक प्रक्रियाओं के संदर्भ में परिभाषित होती है। इसके दो प्रकार हैं, सन्निकृष्ट संहिता और विप्रकृष्ट संहिता।
- बलाघात में एक अक्षर की तुलना में अन्य अक्षर को मात्रा, तान, श्वासबल और स्वरगुण जैसे एक या अधिक अभिलक्षणों के आधार पर महत्तर प्राधान्य दिया जाता है।
- वाचिक भाषा में एफ ओकी रेंज जब शब्दों में अर्थगत अंतर करने के लिए व्यवस्थित रूप से बदलती है तब हम तान पाते हैं, जिसके दो भेद हैं – समतान और परिरेखा तान।
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अतिरिक्त जानें
मुख्य स्वनगुणिमिक इकाइयाँ
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- अक्षर (Syllable)
- बलाघात (Stress)
- तान (Tone)
- अनुतान (Intonation)
आधुनिक काल के महत्वपूर्ण स्वनवैज्ञानिक
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- पॉल पैसी, फ्रांस, यूके (Paul Passy, France, U.K.)
- डेनियल जोन्स, यूके (Daniel Jones, U.K.)
- डेविड एवेरक्रोंबी, यूके (David Abercrombie, U.K.)
- पीटर लैडेफोजेड, यूएसए (Peter Ladefoged, U.S.A.)
पुस्तकें
- Ladefoged, P. (1993) A Course in Phonetics.(Third Edition) Harcourt Brace Jovanovich.
- Ashby, M and Maidment, J., 2005. Introducing phonetic science. Cambridge: CUP
वेब लिंक
स्वनगुणिमिक दृग्विषयों पर अधिक जानकारी के लिए निम्नलिखित लिंक देखें –
http://www.lel.ed.ac.uk/~mits/HandbookDevLing_prosody.pdf
http://liceu.uab.cat/publicacions/MATE_D1_1_6_Prosody/D11_6_Prosody.html