5 वाक् उत्‍पादन प्रक्रिया

प्रो. प्रमोद कुमार पाण्‍डेय

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पाठ का प्रारूप

  1. पाठ का उद्देश्‍य
  2. प्रस्‍तावना
  3. वाक् प्रक्रिया
  4. निष्‍कर्ष
  1. पाठ का उद्देश्‍य

इस पाठ के अध्ययन के उपरांत आप-

  • वाक् उत्पादन प्रक्रिया में प्रयुक्त होने वाले अवयवों से अवगत हो सकेंगे।
  • वायु प्रवाह प्रक्रिया से परिचित हो सकेंगे।
  • वाक् प्रक्रिया में स्वनन प्रक्रिया के योगदान को समझ सकेंगे।
  • वाक् प्रक्रिया में मौखिक-नासिक्य प्रक्रिया के महत्व को जान सकेंगे।
  1. प्रस्‍तावना

 

वाक् उत्पादन प्रक्रिया से तात्पर्य भाषा ध्वनियों के उच्चारण में फेफड़ों, घोषतंत्रियों, कोमल तालु ओठों और जिह्वा के कार्य व्यापार से है। इस प्रक्रिया के चार घटक हैं- प्रथम घटक का संबंध स्वनों के उच्चारण हेतु आवश्यक ऊर्जा प्रदान करने वाले अंगों के कार्य व्यापार से है, जिसे वायु प्रवाह प्रक्रिया कहा जाता है। यह कार्य मुख्यतः फेफड़ों द्वारा संपन्न होता है। इनके अतिरिक्त कभी-कभी काकल और कोमल तालु भी यह कार्य करते हैं। वायु प्रवाह प्रक्रिया में श्वास की दिशा भीतर से बाहर की ओर या बाहर से भीतर की ओर हो सकती है। वाक् उत्पादन प्रक्रिया का दूसरा घटक है स्वनन प्रक्रिया। इसका संबंध घोष तंत्रियों के कार्य व्यापार तथा उसके कारण उत्पन्न होने वाली काकल की विभिन्न आकृतियों से है जो भाषा ध्वनियों या स्वनों को विभिन्न प्रकार से प्रभावित करती हैं। इस प्रक्रिया में स्वरयंत्र की भूमिका न तो वायु प्रवाह प्रक्रिया को प्रारंभ करने की होती है न ही स्वनों के उच्चारण की। कुछ स्वन वैज्ञानिक स्वनन में घोष तंत्रियों की लंबाई, मोटापन और तनाव के विभेदों से उत्पन्न होने वाले रूप भेदों को भी समाविष्ट करते हैं, जैसे कि मिथ्या (घोष तंत्री) कंपन (Falsetto) और उच्चतम तार (Soparno) की वाक् प्रयुक्तियों में देखे जाते हैं।

 

वायु उत्पादन प्रक्रिया का तीसरा घटक है मौखिक-नासिक्य प्रक्रिया या मुख-नासा प्रक्रिया। इसका संबंध कोमल तालु के तनकर ऊपर उठने और शिथिल होकर नीचे गिरने के परिणामस्वरूप वायु के मुखविवर या नासिका विवर या दोनों विवरों से साथ-साथ निकलने से है इन स्थितियों में क्रमशः मौखिक, नासिक्य और अनुनासिक ध्वनियों का उच्चारण होता है।

 

वाक् उत्पादन प्रक्रिया का चौथा घटक है उच्चारणात्मक प्रक्रिया। इसमें भाषा ध्वनियों के उच्चारण की क्रियाविधि संपन्न होती है। इसके अंतर्गत व्यंजनों के उच्चारण में उच्चारण-स्थान और उच्चारण-प्रयत्न के कारण तत्वों का योग होता है। स्वरों के उच्चारण में जिह्वा के सक्रिय भाग, जिह्वा या जबड़े की ऊँचाई और ओठों के वर्तुलन का योग होता है।

 

वाक् उत्पादन प्रक्रिया पर चर्चा से पूर्व इसमें भाग लेने वाले अवयवों अर्थात् वाक्तंत्र से अवगत होना आवश्यक है।

 

वाक्‍तंत्र – यद्यपि भारतीय परंपरा में ऐसी मान्‍यता है कि वाक्‍तंत्र फेफड़ों से नीचे भी पाया जाता है। आधुनिक ध्‍वनि तथा भाषाविज्ञान में फेफड़ों से ऊपर और ओष्‍ठ तक को ही वाक्‍तंत्र माना जाता है। एक सरल परिचय के रूप में यह कहा जा सकता है कि मनुष्‍य की वाक्-प्रक्रिया के निम्‍न चरण होते हैं- फेफड़ों से निकली वायु, स्‍वरयंत्र और ग्रसनी से होती हुई, मुख के अवयवों से नियंत्रित होती हुई, मुख-विवर या नासिका से, या दोनों से बाहर निकलती है। इन अवयवों को निम्‍न चित्र में दिखाया गया है-

 

वाक्तंत्र में तीन मुख्‍य साधन हैं- 1. फेफड़े और श्‍वास तंत्र  से निकलती वायु 2. नाद प्रक्रिया 3. अधिस्‍वरयंत्रीय विवर – (क) ग्रसनी (ख) मुख-विवर (ग) नासिका विवर। वाक् उत्‍पादन में प्रयुक्‍त होने वाली वायु का मुख्‍य स्रोत फेफड़ा होता है। वायु प्रक्रिया को सरल रूप में हम दो भागों में देखते हैं- 1. वायु का बहिर्गमन 2. अंतर्गमन। फेफड़ों से केवल बहिर्गमित वायु से ध्‍वनि का उत्‍पादन होता है। स्‍वरयंत्र में स्‍वरतंत्रियाँ अलग-अलग आकार लेते हुए विभिन्‍न ध्‍वनियों को उत्‍पन्‍न करती हैं। ग्रसनी का मुख्‍य कार्य स्‍वरयंत्र से निकलती हुई हवा को, मुख तथा नासिका विवर में पहुँचाना है जिससे तरह-तरह की वायु लहरियाँ बनती हैं और सभी प्रकार की ध्‍वनियाँ निकलती हैं। नीचे दिए गए चित्र में वाक्तंत्र के तीनों प्रकार्य- श्‍वसन, स्‍वनन, अनुनाद तथा उससे संबंधित वाक् तंत्रों को दिखाया गया है-

http://www.thebusinessshed.co.nz/Articles/VocalAnatomy.html

 

ध्‍वनियों के उच्‍चारण में प्रयुक्‍त होने वाल अवयव निम्‍न है- स्‍वरतंत्रियाँ, ग्रसनी प्राचीर, कोमल तालु, कठोर तालु, जिह्वा, वत्‍र्स्‍य प्रदेश, दाँत, ओष्‍ठ। इन्‍हें भी नीचे के चित्र में दिखाया गया है।

 

http://assistingdiscovery-tktkal.blogspot.in/2012/10/part-2-phonology.html

 

 

  1. वाक् प्रक्रिया (Speech process)

विश्‍व की सभी वाक् ध्‍वनियों को हम देखें तो उनके उच्‍चारण के विवरण के लिए चार प्रक्रियाओं का महत्‍व है-

  1. वायु प्रवाह प्रक्रिया (Air stream process)
  2. स्‍वनन प्रक्रिया (Phonation process)
  3. मौखिक-नासिक्‍य प्रक्रिया (Oral-nosal process)
  4. उच्‍चारणात्‍मक प्रक्रिया (Articulatory process)

 

इनकी हम संक्षेप में चर्चा करेंगे।

 

  1. वायु प्रवाह प्रक्रिया – विश्‍व की तमाम वाक् ध्‍वनियों के उत्‍पादन में फेफड़ों के अलावा दो अन्‍य स्रोत भी हैं- काकल और कोमल तालु। फेफड़ा, काकल और कोमल तालु इन तीनों स्रोतों से निकलती हुई वायु या तो बाहर जाते हुए, या अंदर आते हुए अलग-अलग ध्‍वनियों को उत्‍पन्‍न करती है-

 

प्रारंभक (Initiator)        दिशा (Direction)           वाक् ध्‍वनि के प्रकार (Types of speech sound)

  1. फेफड़े(Lungs) क. बहिर्गामी (Egressive)      फफ्फुसीय बहिर्गामी (Pulmonic egressive)

ख. अंतर्गामी (Ingressive)  प्राप्‍त नहीं (Not found)

  1. काकल (Glottis)       क. बहिर्गामी (Egressive)      श्‍वासद्वारीय बहिर्मामी या हिक्कित

(Glottalic egressive or Ejective)

ख. अंतर्गामी (Ingressive)  श्‍वासद्वारीय अंतर्गामी या अंत: स्‍फोटी

(Glottalic ingressive or Implosive)

  1. कोमलतालु (Velum) क. बहिर्गामी (Egressive)      प्राप्‍त नहीं (Not found)

ख. अंतर्गामी (Ingressive)  कोमलतालव्‍य अंतर्गामी या क्लिक

(Velaric ingressive or Clicks)

 

काकल से संबंधित ध्‍वनियों का उच्‍चारण कुछ इस तरह से होता है कि स्‍वरतंत्रियाँ पूरी तरह से बंद होती हैं और मुख में किसी और स्‍थान पर करण भी पूरी तरह से बंद होते हैं। उनके बीच की हवा के दबाव को स्‍वरतंत्रियों को ऊपर या नीचे करके बढ़ाया या घटाया जा सकता है। स्‍वरतंत्रियों को जब ऊपर धकेला जाता है और करणों को छोड़ा जाता है तो इस प्रक्रिया से उत्‍पन्‍न ध्‍वनियों को हिक्कित कहते हैं। ये कुछ भारतीय और  ज्‍यादातर अफ्रीकन भाषाओं में पाई जाती हैं। स्‍वरतंत्रियों को नीचे लाने पर और वायु दबाव के कम होने से जो ध्‍वनियाँ निकलती हैं उन्‍हें अंत:स्‍फोटी कहा जाता है। अंत:स्‍फोटी ज्‍यादातर भारतीय भाषाओं में पाई जाती हैं। मुख्‍यत: सिंधी और उसकी अन्‍य बोलियों, जैसे- कच्‍छी में।

 

कोमल तालव्‍य ध्‍वनियों का उच्‍चारण वायु के अंतर्गमन के कारण इस प्रकार से होता है। जिह्वा के पृष्‍ठ भाग को कोमल तालु से लगाकर और मुख में कहीं भी करणों को बंद करके हवा जब अंदर रखी जाती है तो उससे उत्‍पन्‍न ध्‍वनियाँ कोमल तालव्‍य अंतर्गामी कही जाती हैं। इन सब ध्‍वनियों को क्लिक के रूप में जाना जाता है जो मुख्‍यत: अफ्रीकी भाषाओं में पाई जाती हैं। क्लिकों का उच्‍चारण, बिना किसी भाषा में प्रयुक्‍त हुए उच्‍चरित ध्‍वनियाँ, ज्‍यादातर विभिन्‍न समुदायों में पाई जाती हैं। जैसे- हमारे यहाँ पुचकारने की ध्‍वनि। इन ध्‍वनियों से हमारी भाषाओं में कोई भी शब्‍द नहीं बनते जबकि अफ्रीकी भाषाओं में इनसे शब्‍द बनते हैं।

 

  1. स्‍वनन प्रक्रिया – स्‍वनन प्रक्रिया में स्‍वरयंत्र का मुख्‍य महत्‍व है। ये वाक् पथ और ग्रसना से नीचे होता है। स्‍वरयंत्र की संरचना एक जोड़े माँसपेशियाँ जिन्‍हें घोषतंत्रियाँ या स्‍वरतंत्रियां कहते हैं और उनसे जुड़ी ग्रंथियों जिन्‍हें अरेटेनोइड ग्रंथियाँ कहते हैं से होती है। इन ग्रंथियों के पीछे भी माँसपेशियाँ होती हैं। स्‍वरतंत्रियों के सिकुड़ने और फैलने से उनके बीच कुछ आकार बनते हैं जिन्‍हें काकल का आकार कहा जाता है। इनसे अलग-अलग ध्‍वनियाँ निकलती हैं। स्‍वरयंत्र से निकलती हुई मुख्‍य ध्‍वनियाँ हैं- अघोष, काकल्‍य स्‍पर्श, महाप्राण, सघोष, मर्मर या श्‍वसित घोष और काकलरंजन। अघोष ध्‍वनियों में काकल खुला होता है। यही अवस्‍था साधारण रूप से साँस लेते समय भी होती है। उदाहरण- प्, त्, क्, च्, स्, ट्। काकल्‍य स्‍पर्शों के उच्‍चारण में स्‍वरतंत्रियाँ कसकर बंद होती हैं और बोलते समय, एकदम से खुलकर उनका उच्‍चारण होता है।

 

महाप्राण के उच्‍चारण के समय स्‍वरयंत्र अघोष की स्थिति से ज्‍यादा खुली होती हैं जिससे फेफड़ों से ज्‍यादा हवा निकल सके। जैसे- ख्, छ्, ठ्, थ्, फ्। भारतीय पंरपरा में सघोष ध्‍वनियाँ घ्, झ्, ढ्, ध्, भ् को भी महाप्राण ही कहा गया है। लेकिन आधुनिक ध्‍वनिविज्ञान में यह विवादास्‍पद विषय है जिसकी चर्चा हम नीचे करेंगे।

 

सघोष ध्‍वनियों के उच्‍चारण में स्‍वरतंत्रियाँ एक दूसरे के करीब होती हैं लेकिन बंद नहीं होती। फेफड़े से जब हवा बाहर निकलती है तो स्‍वरतंत्रियां खुलती और बंद होती हैं। भौतिकशास्‍त्र में इसे बरनाउल सिद्धांत कहते हैं। सघोष ध्‍वनियों के उदाहरण ग, ज, ड, द, ब हैं। सारे स्‍वर भी सघोष होते हैं।

 

मर्मर या श्‍वसित ध्‍वनियाँ – इन ध्‍वनियों के उच्‍चारण में स्‍वरतंत्रियाँ एक दूसरे के करीब होती हैं तथा फेफड़ों से वायु ज्‍यादा निकलती है। ये ध्‍वनियाँ व्‍यंजन और स्‍वर दोनों में पाई जाती हैं। यह ध्‍वनि हिंदी में केवल व्‍यंजन में पाई जाती है जबकि गुजराती में स्‍वर और व्‍यंजन दोनों में पाई जाती है। व्‍यंजनों में इन्‍हें दो तरीके से चिह्नित किया जाता है। जैसे [bʱ] या [b̤]  लेकिन स्‍वरों में इन्‍हें नीचे बिंदु के रूप में दर्शाया जाता है- [a̤]  [b̤a̤rət] भारत।

 

काकलरंजन ध्‍वनियाँ – काकलरंजन ध्‍वनियों में स्‍वरतंत्रियों का आगे का आधा हिस्‍सा खुला होता है और पीछे का आधा बंद।

 

फुसफुसाहट की ध्‍वनियों में स्‍वरतंत्रियों के आगे का आधा हिस्‍सा बंद होता है और पीछे का आधा खुला। काकलरंजन ध्‍वनियाँ कुछ भाषाओं में शब्‍द-भेदक होती हैं लेकिन फुसफुसाहट ध्‍वनियाँ शब्‍द-भेदक नहीं होतीं।

 

अघोष, सघोष, महाप्राण ध्‍वनियों के उच्‍चारण में अंतर-अघोष ध्‍वनियों में स्‍वरतंत्रियाँ पूरी तरह से खुली होती हैं और स्‍वर के साथ ही उनमें कंपन होता है। महाप्राण ध्‍वनियों में स्‍वर के उच्‍चारण के बाद भी स्‍वरतंत्रियों में कंपन विलंबित होता है। सघोष ध्‍वनियों में स्‍वरतंत्रियों में कंपन आरंभ से ही होता है। इन्‍हें हम चित्र में दिखा रहे हैं-

  1. मौखिकनासिक्‍य प्रक्रिया – वाक् उत्‍पादन की यह तीसरी प्रक्रिया है। इसमें तीन भाग मुख्‍य हैं- 1. मुखविवर, 2. नासिका विवर, 3. कोमलतालु। कोमलतालु के उठने और गिरने से निम्‍न तीन प्रकार की ध्‍वनियाँ उत्‍पन्‍न होती हैं –

 

(i) मौखिक ध्‍वनियाँ – इनके उच्‍चारण में कोमल तालु ऊपर उठकर नासिका विवर को बंद कर देता है जिससे सारी वायु मुँह से निकलती है। जैसे- ब, ड, ग, अ, आ इत्‍यादि।

 

(ii) नासिक्‍य व्‍यंजन – नासिक्‍य व्‍यंजन या अनुस्‍वार के उच्‍चारण में कोमलतालु नीचे गिरकर मुख विवर को पूरी तरह से बंद कर देता है जिससे वायु नाक से निकलती है। जैसे- म, ण, न, ञ, ड.।

 

(iii) अनुनासिक ध्‍वनियाँ – अनुनासिक ध्‍वनियाँ या अनुनासिक के उच्‍चारण में कोमलतालु बीच की अवस्‍था में होता है जिससे वायु मुख और नासिका दोनों विवरों से निकलती है। जैसे- आँ, ऊँ इत्‍यादि।

 

वाक् उत्‍पादन प्रक्रिया के अंतिम प्रकार उच्‍चारणात्‍मक प्रक्रिया की चर्चा हम अगले पाठ में करेंगे।

 

  1. निष्‍कर्ष

 

अंत में पाठ के निष्कर्ष के रूप में हम कह सकते हैं कि-

  • वाक्तंत्र के तीन मुख्य साधन हैं- फेफड़े और श्वास तंत्र से निकलती वायु, 2. नाद/स्वनन प्रक्रिया और 3. अधिस्वरयंत्रीय विवर।
  • वायु प्रवाह प्रक्रिया में फेफड़ा, काकल या कोमल तालु से निकलती हुई वायु बाहर जाते हुए या अंदर आते हुए अलग-अलग ध्वनियाँ उत्पन्न करती है।
  • स्वनन प्रक्रिया में स्वरयंत्र से निकलती हुई मुख्य ध्वनियाँ हैं- अघोष, काकल्य स्पर्श, महाप्राण, सघोष, मर्मर और काकलरंजन।
  • मौखिक नासिक्य प्रक्रिया में कोमल तालु के उठने और गिरने से मौखिक ध्वनियाँ, नासिक्य व्यंजन और अनुनासिक ध्वनियाँ उत्पन्न होती हैं।
you can view video on वाक् उत्‍पादन प्रक्रिया

अतिरिक्‍त जानें

पुस्‍तकें

  1. Ashby, Michael, and John A. Maidment. 2005. Introducing phonetic science. Cambridge, UK: Cambridge Univ. Press.
  2. Ladefoged, Peter, and Keith Johnson. 2011. A course in phonetics. 6th ed. Boston: Wadsworth.

 

वेब लिंक

  1. ध्‍वनियों के उत्‍पादन के लिए : http://www.phonetics.ucla.edu/index/sounds.html
  2. वाक् उत्‍पादन पर निम्‍नलिखित वीडियो देखें : https://www.youtube.com/watch?v=uTOhDqhCKQs
  3. https://www.youtube.com/watch?v=-m-gudHhLxc
  4. वाक् उच्‍चारण पर अतिरिक्‍त विवरण के लिए निम्‍नलिखित लिंक पर जाएँ : http://www.ikonet.com/en/visualdictionary/static/us/speech
  5. www.ugr.es/~ftsaez/fonetica/production_speech.pdf