8 अंतरराष्‍ट्रीय स्‍वन वर्णमाला (आई.पी.ए.)

प्रो. प्रमोद कुमार पाण्‍डेय

 

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पाठ का प्रारूप

  1. पाठ का उद्देश्य
  2. प्रस्तावना
  3. अंतरराष्ट्री य स्ववन वर्णमाला चार्ट
  4. व्यंरजन
  5. स्वंर
  6. अधिखंडात्म क अभिलक्षण (Suprasegmental features)
  7. स्वनिक लिप्यंरकन
  8. निष्कर्ष

 

पाठ का उद्देश्य

इस पाठ के अध्‍ययन के उपरांत आप-

  • अंतरराष्‍ट्रीय स्‍वन वर्णमाला की सामान्‍य विशेषताओं को जान सकेंगे।
  • उक्‍त वर्णमाला के व्‍यंजन संबंधी तीन संचित्रों तथा स्‍वर संबंधी संचित्र को समझ सकेंगे।
  • उक्‍त वर्णमाला के अधिखंडात्‍मक अभिलक्षणों संबंधी संकेतों से अवगत हो सकेंगे।
  • स्‍वनिक लिप्‍यंकन तथा स्‍वनिमिक लिप्‍यंकन के अंतर को समझ सकेंगे।
  1. प्रस्तावना

 

पिछले पाठ में हमने देखा कि लिपि और ध्‍वनि के बीच का संबंध बहुत सुनियोजित नहीं है। हर शब्‍द का उच्‍चारण तो सुनिश्‍चित होता है लेकिन अक्षर और ध्‍वनि के बीच एकात्‍मकता नहीं पाई जाती है। कुछ उदाहरण नीचे दिए जा रहे है-

कमल

कमला

सिंचाई

सिंचन

ऊपर के शब्दों में, ‘कमल’ में ‘म’ का उच्चाझरण स्वयर ‘अ’ के साथ होता है लेकिन ‘कमला’ में स्वर के बिना होता है। ‘सिंचाई’ में बिंदु का उच्चारण अनुनासिक के रूप में होता है जबकि ‘सिंचन’ में बिंदु का उच्चारण अनुस्वार के रूप में होता है। लिपि और ध्वनि के बीच का यह अनेकात्मबक संबंध भाषा के वैज्ञानिक अध्ययन के लिए उपयुक्त नहीं है। वैज्ञानिक अध्ययन के लिए संकेत और उसके अर्थ के बीच एकैक (१-१) संबंध होना चाहिए। लिपियों की इस कमी को IPA पूरा करता है। पाठ में IPA के बारे में विस्ताार से समझेगें।

 

  1. अंतरराष्ट्रीय स्वन वर्णमाला

अंतरराष्ट्रीय स्वन वर्णमाला के अध्ययन से पूर्व उसके सृजन और ऐतिहासिक विकासक्रम की चर्चा करना रोचक होगा। फ्रेंच भाषाविद पॉल पासी के नेतृत्व में फ्रेंच और ब्रिटिश शिक्षकों द्वारा 1886 ई. में पेरिस में एक संस्था की स्थापना की गई जो 1897 के बाद से अंतरराष्ट्रीय स्वनिक संघ (International Phonetic Association) के नाम से जानी जाती है। अंतरराष्ट्रीय स्वन वर्णमाला के निर्माण का सुझाव ओटो जेस्पर्सन ने एक पत्र द्वारा पॉल पासी को दिया। जिसका उद्देश्य भाषाओं के वाचिक रूप के शिक्षण हेतु लिप्यंकन की एक अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था प्रदान करना था। इसका विकास अलैक्जैंडर जॉन एलिस, हैनरी स्वीट, डैनियल जोन्स और पॉल पासी द्वारा किया गया। इस वर्णमाला का पहला प्रकाशित रूप पॉल पासी के ‘Our revised alphabet’ (1888) में देखा जा सकता है। संघ ने अपनी वर्णमाला हेनरी स्वीट की रोमिक वर्णमाला के आधार पर बनाई।

 

सितंबर 1888 में संघ द्वारा छह नीतिगत वक्तव्य प्रस्तुत किए गए जो इस वर्णमाला के समग्र भावी विकास को परिचालित करते हैं –

  1. हर संकेत/प्रतीक की अपनी विभेदक ध्वनि होनी चाहिए।
  2. सभी भाषाओं के लिए समान ध्वनि के लिए समान संकेत का प्रयोग होना चाहिए।
  3. यथासंभव सामान्य रोमन वर्णों का प्रयोग किया जाना चाहिए और नए वर्णों का प्रयोग न्यूनतम होना चाहिए।
  4. हर संकेत की ध्वनि का निर्धारण अंतरराष्ट्रीय प्रयोग के आधार पर होना चाहिए।
  5. नए वर्णों का रूप उनके द्वारा प्रस्तुत ध्वनि को संकेतित करे।
  6. यथासंभव विशेषकों के प्रयोग से बचना चाहिए क्योंकि वे लिखने में और देखने में कठिन होते हैं।

 

ध्वनि भेदों की अधिकता को देखते हुए सामान्य रोमन वर्णों को उलटकर नए वर्ण बनाए गए (ʎ, ʮ, ə, ɔ) यह एक नए संकेत बनाने का एक सुविधाजनक तरीका था। अन्यथा आईपीए के लिए नए टाइप बनाने पड़ते जो छोटे मुद्रकों के लिए खर्चीला उपक्रम होता।

 

ऐतिहासिक रूप से वर्णमाला में कई बार संशोधन किया गया। सन् 1900, 1908, 1932, 1938, 1947, 1951, 1976, 1979, 1989, 1993 (1996 का अद्यतनीकरण) और 2004 और 2015 का संशोधन इस वर्णमाला के विकासक्रम के विभिन्न पड़ाव हैं। यद्यपि, मुख्य संशोधन और परिवर्धन 1900, 1932, 1989 और 1993 में ही हुए।

 

2005 में केवल एक परिवर्तन किया गया और दंतोष्ठ्य उत्क्षिप्त व्यंजन के लिए V के दाहिनी ओर हुक युक्त V’ वर्ण को जोड़ा गया। 2015 के संस्करण में कोई नया वर्ण जोड़ा या घटाया नहीं गया किंतु कुछ वर्णों के रूप में बहुत सूक्ष्म परिवर्तन किया गया है। संप्रति आईपीए में व्यंजनों और स्वरों के लिए 107 वर्ण, 31 विशेषक चिह्न और अधिखंडात्मक अभिलक्षणों के लिए 19 अतिरिक्त संकेत हैं जो दीर्घता, तान, बलाघात और अनुतान को व्यक्त करते हैं।

 

अंतरराष्‍ट्रीय स्‍वन वर्णमाला चार्ट

अंतरराष्‍ट्रीय स्‍वन वर्णमाला के विस्‍तार से अध्‍ययन के लिए निम्‍न लिंक पर जाएँ –

http: https://www.internationalphoneticassociation.org/content/ipa-handbook-downloads

 

अंतरराष्‍ट्रीय स्‍वन वर्णमाला चार्ट आगे दिया जा रहा है-

 

 

अंतरराष्‍ट्रीय स्‍वन वर्णमाला चार्ट : अभिलक्षण

 

सामान्य विशेषताएँ     अंतरराष्ट्रीय स्वन वर्णमाला का मुख्य ध्येय ध्वतनियों के उन गुणों को प्रस्तुत करना है जो भाषा में महत्त्वपूर्ण होते हैं।  ध्वनि की प्रस्तुति के लिये अक्षर (Letter) उदाहरण- a.i.p.k और विशेषक चिह्नों (Diacritic Marks) का उपयोग होता है। ये विशेषक चिह्न उसी तरह हैं जैसे देवनागरी लिपि में बिंदु, चंद्रबिंदु और हलंत इत्यादि हैं। चिह्न तीन प्रकार के होते हैं- (१) Super Script (2) Subscript और (3) Inscript। इनको उदाहरण के रूप में नीचे दिया जा रहा हैं-

 

अधिलेख (Superscript)            :  ( ~ ) अनुनासिक ‘ã’

अधोलेख (Subscript)               :  ( o ) अधोष ‘a’

अंत:लेख (Inscript )            :  ( – ) कंठोच्चारित ᵼ

 

किसी भी छात्र के लिये जो IPA में सक्षम होना चाहता है अक्षर और विशेषक चिह्नों (Diacritic Marks) के महत्व को जानना आवश्यक है क्योंकि इन अक्षरों और चिह्नों (Marks) का उपयोग सटीक होता है, हालाँकि उसमें अंतर बहुत कम दिखाई दे सकता है। जैसे अक्षर ‘A’ के विभिन्न रूपों में ‘a’ भी आता है। इस ‘a’ का हम मुद्रण (प्रिंट) के लिये उपयोग करते हैं ‘a’ को हस्तलेखन में। फिर भी दोनों का उपयोग IPA में भिन्न ध्वनि के लिए होता है। ɐ एक अवर्तुलित निम्न  केंद्रीय स्वर (Unrounded low central vowel) है जबकि a अवतुर्लित निम्न पश्च स्वर (Unrounded low back vowel है) जब हम IPA chart  को ध्यान से देखेंगे तो पाएँगे कि ‘a’ अक्षर से संबंधित दूसरे ध्वन्यात्मक अक्षर भी है- ‘ɐ और ‘ə’ जो ‘a’ और ‘e’ के उल्टे  आकार हैं। गिने-चुने अक्षरों को लेने की व्यवस्था रखने का कारण यह है कि IPA  में रोमन अक्षरों का ही प्रयोग हो। कभी-कभी ग्रीक प्रतीकों/अक्षरों का भी प्रयोग होता है। जैसे – [ß] घोष द्वयोष्ठ्य संघर्षी (Voiced bilabial fricative) और [o] अघोष दंत्य संघर्षी (Voiceless dental fricative) इनके अलावा IPA Symbols में विस्तारित (Extended) IPA Symbols भी हैं जिनका मुख्य उद्देश्य भाषा संप्राप्ति (Language acquisition) और वाग्दोष विज्ञान (Speech Pathology) के लिए विशिष्ट चिह्नों का उपयोग करना है। जैसे सबल उच्चारण Strong articulation और मूक उच्चारण (Silent articulation)

 

  1. व्यंजन

व्यंजन के लिए तीन संचित्र chart मिलते है।

  1. फुप्फुजसीय (Pulmonic)
  2. अफुफ्फुसीय (non- pulmoric)
  3. सहउच्चरित व्यंजन (Co-articulated consonants)

 

फुफ्फुसीय और अफुफ्फुसीय व्यंजनों के बीच में अंतर यह है कि फुफ्फुसीय व्यंजनों के उच्चारण का स्रोत फेफडे से निकलती हुई हवा है। जैसे- ‘P’  ‘a’  इत्यादि में। अफुफ्फुसीय व्यंजन मुख-पथ (Oral tract)  में हवा के परिचालन Manipulation से उत्पन्न होते हैं। इनके दो क्षेत्र हैं। स्वरयंत्र (Larynx)  और कोमलतालु (Velum)इस चार्ट में मुख्य बातें निम्नवलिखित हैं –

  1. उच्चारण प्रयत्न (Manners of articulation) को पंक्तियों (rows) में दिखाया जाता है और उच्‍चारण स्थानों (Places of articulation) को स्तंभों (Columns) में।
  2. उच्चारण प्रयत्नों को संकृष्ट (Constricted) से विस्तृत उच्चारण के अनुसार रखा गया है।
  3. स्तंभों में उच्चारण स्थानों का निर्धारण ओष्ठ से लेकर कंठ तक विविध स्थानों पर उच्चारित व्यंजनों के लिए होता है।
  4. हर उच्चारण स्थान को सघन रेखाओं (Solid lines) के द्वारा अलग किया गया है। केवल तीन स्थानों Places को एक साथ रखा गया है- दंत्य, वत्स्र्य और तालु- वत्स्र्य (Dental, Alveolar और Palato-alveolar) इसका कारण यह है कि ज्यादातर भाषाओं में इनमें से किसी एक की ध्वनियाँ पाई जाती हैं।
  5. हर खाने में अघोष प्रतीक (Symbol) को बायीं तरफ रखा गया है और सघोष प्रतीक (Symbol) बायी तरफ। जैसे- p और b, s और z, इत्यादि।
  6. हर खाने में खाली छायादार क्षेत्र असंभव ध्वनियों को इंगित करता है। जैसे द्वयोष्ठ्य या दंतोष्ठ्य पार्श्विक संघर्षी ध्वनियाँ।
  7. हर खाने में खाली सफेद क्षेत्र संभव लेकिन विरल ध्वंनियों (Rare sounds) को इंगित करता है। जैसे- दंतोष्ठकंपित labiodental trill ध्वनि|

 

  1. स्वर

स्वरों के लिए केवल एक चार्ट है। यह चार्ट एकस्वरक (Monophthong)  स्वरों के लिए प्रयुक्त होता है। इनके उच्चारण में जिह्वा और जबडा एक ही स्थिति में होते हैं। जैसे दिन, काम, वेश इत्यादि में। इनसे अलग द्विस्वरक (Diphthong) स्वर होते है जिनके गुण उच्चारण में बदलते हैं। जैसे- गैया के ‘गै’ में, कौवा के ‘कौ’ में। द्विस्वरक (Diphthong) स्वरों में चिह्नों को, दो एकस्वरक स्वरों का मिश्रण माना जाता है। जैसे – गैया [gija:], कौवा [kauva:]

 

इस चार्ट की दो धुरियाँ है – ऊर्ध्वाधर स्तरीय (Vertical) और समस्तरीय (Horizontal) उर्ध्वाधर अक्ष (Vertical axis) पर स्वर की ऊँचाई को दिखाया जाता है और समस्ततरीय अक्ष (Horizontal axis) पर स्वर की पश्चता (Backness) को। स्वरों को उर्ध्वाधर अक्ष (Vertical axis) पर ऊँचाई के चार स्तरों में बांटा गया है – संवृत (Close), संवृतमध्य (Close–mid) विवृत मध्य  (Open-mid, विवृत (Open) जैसा इनके नाम से पता चलता है संवृत (Close) स्वर के उच्चारण में, जिह्वा को तालु के उस निकटतम बिंदु (Point) तक रखा जाता है जिसमें से वायु स्वच्छंद रूप से निकल सकें। जैसे ‘इस’, ‘उस’ में प्रयुक्त स्वर [ i ] और [ u ] इस स्थान से जिह्वा के थोड़ा-सा भी ऊपर जाने पर निकलने वाली ध्वनि, स्वर के बदले, व्यंजन हो जाएगी। जैसे – ज़। विवृत (Open) स्वर के उच्चारण में जबड़े को तालु से अधिकतम दूरी पर रखा जाता है। जैसे – ‘हाट’ में ‘आ’ स्वर। बीच की ऊँचाई के स्वर एक दूसरे से बराबर दूरी पर रखे गए है।

 

ऊँचाई के हर स्थान पर जिह्वा के अग्र, मध्य या पश्चभाग को उठाकर उच्चारण किया जा सकता है जिसमें हर सम स्तरीय अक्ष पर तीन स्वर निकलते हैं – अग्र (Front), मध्य  (Central) और पश्च (Back).

 

http://en.wikipedia.org/wiki/International_Phonetic_Alphabet

 

स्वरों को जिह्वा ऊँचाई (Height) और पश्चता (Backness) के अलावा ओष्ठ के आकार से भी भिन्न किया जाता है। जैसे – ‘ए’  स्वर को, ओष्ठ‍ को सपाट (Flat)  रखने पर जो स्वर निकलता है, वह अधिकांश भाषाओं में पाया जाता है। उसी स्थान पर अगर होठों को गोल कर दें तो दूसरा ही स्वर निकलता है। जैसे – जर्मन के प्रसिद्ध कवि और नाटककार, Goethe के नाम में पहला स्वर ऐसा होता है । अंग्रेजी में उन्हें  दो Letters o, e से दिखाते है – Goethe। लेकिन हिंदी में इस स्वर के अभाव में इसे साधारण ‘ए’ के रूप में लिखा जाता है। जैसे- गेटे। स्वर चार्ट की प्रस्तुति में नियमत: हर ऊर्ध्वाधर (Vertical) रेखा पर बायीं तरफ का स्व‍र अवर्तुलित (Unrounded) तथा दायीं तरफ का वतुलित (Rounded) होता है।

 

IPA के स्वर चार्ट के स्वरों को मानस्वर (Cardinal Vowels)  कहा गया है। ये मानस्वर हमारे वाक्–पथ (Vocal tract) से आदर्श और मुख्य स्वरों के रूप में निकलते हैं और इनका उपयोग भाषाओं के वास्तविक ध्वनि विवरण के लिये किया जाता है। जो ध्वनियाँ मुख्य‍ स्वर से मेल खाती हैं उन्हें उसी रूप में बताया जाता है। लेकिन जो वास्तविक ध्वनियाँ, मुख्य स्वरों से ऊँचाई या पश्चता (Backness) में थोडा भिन्न होती है। उन्हें मुख्य स्वरों से संबंध दिखाकर बताया जाता है।

 

  1. अधिखंडात्मक अभिलक्षण (Suprasegmental feature)

 

अंत में शब्दों और वाक्यों के स्वनगुणिमिक अभिलक्षणों (Prosodic features) को दर्शाने के लिये भी प्रतीकों का उपयोग होता है। शब्द के स्तर पर मुख्‍यत: चार अभिलक्षण पाए जाते हैं – (i)  अक्षर विभाजन (.) ;  (ii) लंबाई (४ कोटियाँ – ह्रस्व, अतिह्रस्व, दीर्घ, अर्धदीर्घ, (iii) बलाघात (२ कोटियाँ – प्राथमिक और द्वितीयक); (iv) तान (Tonel) के दो प्रकार हैं –  समतान (Level tone), और परिरेखातान (Contour tone)| प्रथम तीन अभिलक्षण सभी भाषाओं में पाए जाते हैं और भारतीय आर्य समूह की ज्यादातर भाषाओं में (जैसे – पंजाबी और डोगरी में) तान भी पाई जाती है, जिनके आधार पर शब्दों  के अर्थ में अंतर होता है। उदाहरण स्वरूप पंजाबी का – [kaY] ‘कर’ और [Kar] घर। तिब्बती – वर्ग समूह की बहुत सी भाषाओं में तान पाई जाती हैं। जैसे – मणिपुरी, मिजो, और नागा भाषाएं। वाक्य के स्तर पर अनुतान प्रक्रियाओं के लिये भी IPA चार्ट में चिह्न दिए जाते हैं।

 

  1. स्वनिक लिप्यंऔकन और स्वओनिमिक लिप्यंPकन

 

स्वनिक लिप्यंकन दो प्रकार का होता है – (i) स्वनिक या सूक्ष्म लिप्यंकन (ii) स्वनिमिक लिप्यंकन या स्थूल लिप्यंकन। स्वनिमिक लिप्यंकन में उन मुख्य‍ ध्वनियों को लिया जाता है जो अर्थो में भेद करती हैं। जैसे- हिंदी में, ड [ץ] और ड़ [ए] एक मुख्य ध्वनि के दो रूप हैं। स्वनिमिक लिप्यंकन में इन दोनों को एक ही तरह से चिह्नित किया जाता है – स्वनिक लिप्यंकन में शब्दों के उच्चारण के अनुसार दोनों को चिह्नित किया जाता है। जैसे – ‘डमरू’  में [d] होगा- [damru:] और ‘घडी’ में [ץ] होगा- [ghaץi:] । विभिन्न भाषाओं के शब्दकोशों में उच्चारण दर्शाने के लिए स्वनिमिक लिप्यंकन का ही उपयोग किया जाता है। स्वनिमिक लिप्यंकन ध्वानियों के उच्चारण के सूक्ष्म अंतर को दर्शाता है। जैसे ‘घडी’, इस शब्द का ही विभिन्न क्षेत्रों के लोग अलग-अलग उच्चारण करते पाए जाते है। जैसे- बंगाली में [ghodi:]; बिहार (छपरा) क्षेत्र में [ghari:]; पंजाबी में [ghadi:]; इन शब्दों को देवनागरी में लिखें तो कुछ इस तरह होंगे – ‘घोडी़’ , ‘घरी’, और ‘घडी’ ।

 

ध्यारन देने की बात यह है कि किसी भी भाषा के स्वनिक लिप्यंकन में ध्वनियों के उन सूक्ष्म अंतरों को लिया जाता है जो उन भाषाओं या बोली में साधारणत: किसी व्यक्ति विशेष के उच्चारण का प्रतिलेखन करना हो तो उसमें सूक्ष्मता हो सकती है। जैसे – बच्चों की भाषा या वाक् न्यूनता (Speech deficit) वाले व्यक्ति की भाषा के विवरण में ।

 

  1. निष्कर्ष
  • अंतरराष्‍ट्रीय स्‍वन वर्णमाला के मुख्‍य ध्‍येय, भाषा में महत्‍वपूर्ण ध्‍वनियों के गुणों की प्रस्‍तुति के लिए अक्षरों और विशेषक चिह्नों का प्रयोग होता है।
  • इसमें फुफ्फुसीय, अफुफ्फुसीय और सह-उच्‍चरित व्‍यंजनों हेतु तीन संचित्रों तथा एकस्‍वरक स्‍वरों हेतु एक संचित्र का समावेश है।
  • अधिखंडात्‍मक, अभिलक्षणों के संचित्र में शब्‍दस्‍तर पर अक्षर-विभाजन लंबाई, बलाघात और तान तथा वाक्‍य स्‍तर पर अनुतान प्रक्रियाओं हेतु चिह्न हैं।
  • स्‍वनिमिक लिप्‍यंकन में ध्‍वनियों के सूक्ष्‍म अंतरों को लिया जाता है जबकि स्‍वनिमिक लिप्‍यंकन में उन मुख्‍य ध्‍वनियों को दर्शाया जाता है जो अर्थभेद करती हैं।

 

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अतिरिक्‍त जानें

पुस्‍तकें

  1. (1999). The Handbook of the International Phonetic Association: A Guide to the Use of the International Phonetic Alphabet. Cambridge University Press.
  2. Pullum, Geoffrey and Ladusaw, William. (1996) Phonetic Symbol Guide. (2nd edition). University of Chicago Press.

 

वेबलिंक

  1. http://en.wikipedia.org/wiki/International_Phonetic_Alphabet
  2. http://web.uvic.ca/ling/resources/ipa/handbook.htm