6 स्वरों एवं व्यंजनों का वर्गीकरण
प्रो. प्रमोद कुमार पाण्डेय
पाठ का प्रारूप
- पाठ का उद्देश्य
- प्रस्तावना
- व्यंजनों का वर्गीकरण
- उच्चारण–स्थान
- स्वर
- पाठ का उद्देश्य
इस पाठ के अध्ययन के उपरांत आप-
- स्वर के स्वरूप और प्रकार से परिचित हो सकेंगे।
- व्यंजन के स्वरूप और प्रकार से परिचित हो सकेंगे।
- उच्चारण स्थान से परिचित हो सकेंगे।
- उच्चारण स्थान से परिचित हो सकेंगे।
- प्रस्तावना
स्वरों एवं व्यंजनों के वर्गीकरण में वाक् प्रक्रिया (Speech Process) के चौथे चरण उच्चारणात्मक प्रक्रिया (articulatory process) का योगदान होता है। स्वर और व्यंजन दोनों ध्वनियां वाक् पथ (Vocal tract) से निकली वायु के प्रभाव से उत्पन्न उच्चारण के बदलाव से संबंध रखती हैं। वाक पथ से निकली वायु को दो प्रकार के संकुचन या Constriction मिलते हैं। पहला है संकुचन की मात्रा डिग्री और दूसरा है संकुचन का स्थान। स्वर और व्यंजन दोनों के विवरण के लिये इन दोनों प्रकार के संकुचन का महत्व होता है। लेकिन उनका उच्चारणात्मक वर्गीकरण (Articulatory classification) भिन्न प्रकार से किया जाता है। नीचे संकुचन की मात्रा के प्रकार दिए गए हैं –
उच्चारण के संकीर्णन की मात्रा
(Degree of Constriction of Articulation) हिंदी की ध्वनियाँ
- (i) पूर्ण रूप से संवारित ( बंद) (Complete Closure) कमल में ‘ क् ’ [k]पान में ‘ प् ’ [p] और ‘ न् ’ [n]
- अत्यधिक सन्निकटन (Close approximation) फर्ज में फ् [f] और ज् [z] समय में ‘ स् ’ [s]
- (iii) आंशिक संवार (Partial Closure) लाल में ‘ ल् ’ [I]
- (iv) अनिरंतर संवार (Intermittent Closure) राग में ‘ र् ’ [r]
- (v) विवृत सन्निकटन (Open approximation) वाक् में ‘ व् ’ [w]
- (vi) विवृत संक्रमण ( Open transition) आम में ‘ आ ’ [a;]
ऊपर दी गई सभी 6 मात्राओं में अंतिम मात्रा से स्वर उत्पन्न होते हैं। स्वर के उच्चारण में, मुख में करण (Articulators) जिस तरह का संकुचन उत्पन्न करते हैं, वे अति सूक्ष्म होते हैं। इनका विवरण हम अगले अनुभाग में देंगे। नीचे दिए गए वेबलिंकweblinkमें आप देख सकते हैं कि करण किस प्रकार से अति सूक्ष्म रूप से मुख में संकुचन उत्पन्न करते हैं-
https://www.youtube.com/watch?v=mJedwz_r2Pc
- व्यंजनों का वर्गीकरण
अवरोध की मात्रा या उच्चारण प्रयत्न के आधार पर व्यंजनों का निम्न वर्गीकरण होता है –
(1) स्फोट (Plosive) (2) नासिक्य (Nasal) (3) संघर्षी (Fricative) (4) स्पर्श संघर्षी (Affricate) (5) कंपित (Trill) / ताडित (Tap) उत्क्षिप्त (Flap) (6) पार्श्विक (Lateral) (7) अभिगामी (Approximant)
(1) स्फोट (Plosive) – स्फोट के उच्चारण में तीन चरण होते हैं – (i) संस्पर्श (Contact) (2) धारण (Hold) (3) मोचन (Release)। दो करण पहले एक दूसरे के संस्पर्श में आते हैं जिससे फेफडों से निकलती हवा रुक जाती है, थोडी देर तक धारणा की स्थिति में रहते हैं जिससे मुँह के अंदर हवा का दबाव बढता हैं और जब दोनों करण अलग होते है तो हवा के दबाव के कारण उनके अलगाव से स्फोटन (Plosion) सुनाई देता है जिस कारण से इन ध्वनियों को स्फोट कहते हैं। जैसे – व्यंजनों में क्, च्, ट्, त्, प् वर्गो की प्रथम चार ध्वनियाँ। नीचे उदाहरणरूवरूप अघोष स्फोट उच्चारण का चित्र दिया गया है :
चित्र: अघोष स्फोट ध्वनियों का उच्चारण
स्फोट के उच्चारण में मध्य चरण आवश्यक होता है। स्फोटों की काकलीय अवस्था के आधार पर, चार प्रकार होते हैं- अघोष अल्पप्राण (क्, च्, ट्, त्, प्); सघोष अल्पप्राण (ग्, ज्, ड्, द्, ब्); अघोष महाप्राण (ख्, छ्, ठ्, थ्, फ्); सघोष महाप्राण (घ्, झ्, ढ्, ध्, भ्,) इनको IPA (के क्रम) में नीचे दिखाया जा रहा है –
विभिन्न भाषाओं में स्फोटों की अलग-अलग अभिरचना (Pattern) होती है। जैसे- हिंदी में – प्, फ्, ब्, बोडो में – प्, ब्, तामाँग में प् फ्, आओ – नागा में – प् ।
नासिक्य – नासिक्य, स्फोटो की तरह से उच्चरित होता है। दोनों में अंतर यह है कि नासिक्य के उच्चारण में कोमल तालु नीचे रहता है जिससे कि वायु नासिका से निकलती है। स्फोट के उच्चारण में कोमल तालु ऊपर रहता है जिससे वायु मुखविवर से निकलती हैं। हिंदी में पाँच नासिक्य ध्वनियाँ पाई जाती हैं – म् [m], न् [n], ण् [ɳ], ञ् [ɲ] और ङ् [ŋ].
ज्यादातर भाषाओं में नासिक्य व्यंजन सघोष होते हैं। कुछ भाषाओं में महाप्राण नासिक्य भी पाए जाते हैं। जैसे राजस्थानी में ‘म्हारों’ में ‘म्ह’ (mʱ) और कान्हा में न्ह् [nʱ]
संघर्षी – संघर्षिर्यो के उच्चारण में दो करण इतने नजदीक आ जाते हैं कि उनके बीच से वायु के निकलते समय घर्षण सुनाई देता है। हिंदी में मुख्य संघर्षी हैं – फ्, स्, ज्, श्, और ह् ।
उदाहरण – हिंदी में उच्चरित निम्न ध्वनियों में भेद क्या है –(a) फ फ़ (b) ख ख़ और (c) ज और ज़ इन ध्वनियों में पहले व्यंजन स्फोट हैं और दूसरे संघर्षी। भाषाओं में अघोष दोनों तरह के संघर्षी होते हैं और ये उच्चारण के सभी स्थानों पर पाए जाते हैं।
स्पर्श–संघर्षी – स्पर्श-संघर्षी का उच्चारण दो उच्चारण प्रयत्नों से होता है – (1) स्फोट स्पर्श और (2) संघर्षी। इसका प्रथम भाग स्फोट स्पर्श की तरह उच्चारित होता है जिसमें दो करण पूरी तरह से जुड़ जाते हैं लेकिन उच्चारण के दौरान, करणों के धीरे – धीरे अलग होते समय वायु धीरे – धीरे घर्षण के साथ निकलती है। दो मुख्य स्पर्श – संघर्षी ‘च ’ और ‘ ज ’ हैं। कुछ भारतीय भाषाओं में जैसे मराठी, और ओडिया में अन्य स्पर्श संघर्षी भी पाए जाते हैं। जैसे – ‘ त्स ’ और द़्ज।
ताडन (Tap), कंपन (Trill), उत्क्षेप (Flap) – ये तीनों उच्चारण प्रयत्न मिलते जुलते हैं। ताड़न का उच्चारण जिहृवा के अग्रभाग और वत्र्स्य सेतु (Alveolar ridge) के क्षणिक संस्पर्श (Contact) से होता है। हिंदी का ‘ र ’ ज्यादातर ताडित की तरह उच्चरित होता है, एक साथ कई ताडन मिलकर कंपन बनाते हैं । ‘ र ’ का उच्चारण बहुत सी भाषाओं में, जैसे – मराठी और तेलगु में, कंपित की तरह होता है। ताडन और कंपन के प्रतीक हैं – [J] ताडित और [r] कंपित। उत्क्षेप में करण मुख्य उच्चारण स्थान की और बढ़कर एक झटके में ताडन करता है और लौट आता हैं। जैसे, मूर्धन्य उत्क्षिप्त व्यंजन के इ उच्चारण में होता है।
अभिगामी – व्यंजन संघर्षियों से ज्यादा खुले उच्चरित होते हैं। इनके उच्चारण में वायु, मुखविवर से, बिना किसी घर्षण के बाहर निकलती है। अभिगामी व्यंजन दो प्रकार के होते हैं –
(अ) केंद्रीय अभिगामी (Central approximant) और (ब) पार्श्विक अभिगामी (Lateral approximant) केंद्रीय अभिगामी जैसे – ‘ व ’ और ‘य’। पार्श्विक अभिगामी जैसे,‘ ल ’। इन दोनों के बीच का अंतर यह है कि केंद्रीय अभिगामियों के उच्चारण में वायु मुखविवर के मध्य से निकलती है और पार्श्विक अभिगामी के उच्चारण में वायु मुखविवर के किनारों (sides) से निकलती हैं
- उच्चारण स्थान
(Places of articulation) – बहुत से व्यंजन अलग उच्चारण प्रयत्नों के होते हैं लेकिन एक ही स्थान पर उच्चारित होते हैं। जैसे- स, न, ल। ये तीनों ध्वनियाँ क्रमश: संधर्षी, नासिक्य और पार्श्विक हैं। लेकिन मुखविवर में इन तीनों का उच्चारण स्थान एक ही है – वत्र्स्य।
इस अनुभाग में हम उच्चारण स्थानों की संक्षिप्त चर्चा करेंगे। प्रत्येक उच्चारण के स्थान के नाम और उदाहरण रूप में ध्वनियों की सूची देगें। उसके बाद उनके पाँच मुख्य समूहों की चर्चा करेगें। IPA चार्ट में व्यंजन के स्थान और चित्र नीचे दिए गए हैं। – IPA सारणी –
स्वर और व्यंजन दोनों के उच्चारण में जिह्वा का विशेष स्थान है। जिह्वा के मुख्य भाग निम्न छवि में दिए गए हैं।
चित्र: जिह्वा के भाग
http://www.as-sidq.org/durusulQuran/images/tongue.gif
व्यंजन के स्थानों के मुख्य समूह –
- (1) ओष्ठ्य (Labial) _ इनके दो मुख्य स्थान हैं –
- (क) द्वयोष्ठ्य (Bilabial)
- (ख) दंतोष्ठ्य (Labiodental)
हिंदी भाषी अक्सर दंतोष्ठ्य संघर्षी (Labioental fricative) ‘ फ् ’ को द्वयोष्ठ्य स्फोट (bilabial plosive) ‘ फ् ’ की तरह उच्चारित करते हैं। मानक हिंदी में ये ध्वनियाँ भिन्न हैं।
- (2) जिह्वाफलकीय (Coronal) – इसमें 5 स्थान आते हैं – क दंत्य (Dental) ख वत्र्स्य (Alveolar) ग पश्च वत्र्स्य (Postalveolar) घ प्रतिवेष्ठित (Retroflex) ड़ तालु वत्स्र्य (Paletoalveolar) इनके उच्चारण के लिए IPA चार्ट देखें।
- (3) पश्चजिहृवीय (Dorsal) – इसमें दो मुख्य स्थान हैं –
- (क) कोमल तालव्य (Velar)
- (ख) अलिजिह्वीय (Uvular) उदाहरणरूवरूप मानक हिंदी में क़ और क/ क़लम और कल/
- (4) कंठ्य (Gutteral) –इसमें 2 स्थान मुख्य है –
- (क) ग्रसन्य (pharyngeal) (ख्) काकल्य (glottal) ।
ग्रसन्य (Pharyngeal) स्थान पर अरबी और असमिया भाषा में संघर्षी ध्वनियाँ मिलती हैं जिनका चिह्न हैं- [h] जैसे ‘ अहमद ’ का ‘ ह ’ और असमिया का ‘ स ’। ये भाषा बोलने वाले इन ध्वनियों को [h] उच्चारित करते हैं।
काकल्य (Glottal) स्थान पर हिंदी का संधर्षी ‘ ह ’ और संथाली का काकल्य स्पर्श (glottal stop) (?) उच्चारित होते हैं। जैसे हिंदी का ‘ हम ’ और संथाली में ?।
- स्वर –
इस खंड में स्वर के प्रकार और विवरण की चर्चा करेंगे। स्वर के प्रकार और विवरण को समझने के लिए मानक स्वरों (Cardinal vowels) को समझना जरूरी हैं।
मानस्वर (Cardinal Vowel ( CV) – मानस्वर क्या हैं ? यह मनुष्य के मुखविवार में उच्चरित होने वाले मुख्य स्वर हैं जिनके संदर्भ में हम किसी भी भाषा के स्वरों का विवरण देते हैं। IPA चार्ट में मानस्वर दिए गए हैं। इन्हें फिर से प्रस्तुत किया जा रहा है –
स्रोत: http://en.wikipedia.org/wiki/International_Phonetic_Alphabet
इस चार्ट में मानस्वर को बिंदु (०) के रूप में दिखाया गया है। मानस्वर की अवधारणा अंग्रेजी के प्रख्यात ध्वनि वैज्ञानिक, डेनियल जोन्स, ने 1917 में दी। उन्होनें दिखाया कि किस – किस प्रकार से मुखनिवर में उच्चारण के समय में जिहृवा के अलग आकार और मानस्वरों के बीच संबंध हैं जिन्हें नीचे दिखाया गया है –
Source:https://www.academia.edu/4175679/Historical_Development_of_Phonetic_Vowel_Systems
मानस्वरों के बारे में मुख्य बातें निम्नलिखित हैं –
- (1) मानस्वरों की संख्या सर्वप्रथम 8 है, जिन्हें प्राथमिक स्वर (Primary vowel) कहा जाता है। इन स्वरों के लिए दो मापदंड प्रयुक्त हुए हैं – (i) जबडे की ऊँचाई (ii) जिह्वा के तीन भाग- अग्र, मध्य, पश्च। चार्ट में लंबाई की रेखा के बायी तरफ अवर्तुलित (Unrounded) और दायी तरफ वर्तुलित स्वर (Rourded vowels) हैं। यह तीसरा मापदंड है।
- (2) स्वर का हर चिह्न गुणों के अनुसार अलग – अलग स्वरों को दिखाता है। मात्रा के अनुसार स्वरों के चार प्रकारों की मान्यता है – (i) दीर्घ (Long) [e.]; (ii) या ह्रस्व (Short) [e]; (iii) अर्धदीर्घ या (Half long) [e.]; (iv) अतिहृस्व (Very Short) [e].
- (3) मानस्वरों की संख्या 8 से शुरू होकर 18, 22, और अंत में 28 पर स्थिर हुई।
- (4) मानस्वरों के विवरण के लिये मुख्य पद (Term), – गुणों और मात्रा पर आधारित हैं। जैसे – [i], [u], [a] का विवरण इस प्रकार होगा –
- [i] ह्रस्व (short), अवतुर्लित (unrounded), संवृत (closed), अग्र स्वर (front vowel)
- [u] ह्रस्व (short), वर्तुलित (rounded ), संवृत (closed), पश्च स्वर (back vowel)
- [a] दीर्घ (long) अवर्तुलित (unrounded), विवृत (open), केंद्रीय स्वर (central vowel)
स्वन वैज्ञानिकों द्वारा किसी भी भाषा में स्वरों को मानस्वरों के संदर्भ में स्वर चार्ट (Vowel chart) पर दिखाया जाता है जिसमे उस भाषा में स्वरों का विवरण दिया जा सकता हैं। हिंदी के स्वरों को स्वर चार्ट पर इस प्रकार दिखाया गया है। (देखें – Ohala – 1999)
चित्र: हिंदी के स्वरों का चार्ट
स्वरों के प्रकार
स्वरों के प्रकार दो तरह के होते हैं – (i) एकस्वरक (monophthong) (2) द्विस्वरक (Dipthong) (3) त्रिस्वरक (Triphthong), एकस्वरक स्वरों Monophthong Vowels को शुद्ध स्वर Pure Vowels कहा जाता है। इनके उच्चारण में जिह्वा का स्थान बदलता नहीं हैं। द्विस्वरक संयुक्त स्वर (Dipthong) के उच्चारण में जिह्वा दो स्थानों में होती है। त्रिस्वरक (Triphthong), के उच्चारण में जिह्वा तीन स्थानों पर होती है। त्रिस्वरक का वितरण भाषाओं में बहुत सीमित पाया जाता है। ऊपर दिए गए स्वर चार्ट में सभी स्वर एकस्वरक हैं। द्विस्वरक (Diphthongs) के उदाहरण अंग्रेजी में [ai] , [au], [ia] होते हैं। जैसे – High, how और here में) यह ध्यान दें कि द्विस्वरक संयुक्त स्वर (Diphthong) को एक स्वर ही माना जाता है। जैसे हिंदी में ‘ गैया ’ और ‘ कौवा ’ । द्विस्वरक संयुक्त स्वरों और दो भिन्न स्वर जो एक साथ आ रहे हों तो, उनमें अंतर करना कठिन होता है। इसमें मुख्य मानदंड है कि भाषा के बोलने वाले दो भिन्न स्वरों को अलग करते हैं जबकि द्विस्वरक संयुक्त स्वरों को एक साथ उच्चारित करते हैं। द्विस्वरकों को स्वर चार्ट पर इस तरह दिखाया जाता है
–
चित्र: अंग्रेजी के द्विस्वरकों का स्वर चार्ट
http://upload.wikimedia.org/wikipedia/commons/b/b0/RP_vowel_chart_(diphthongs).gif
मौखिक स्वर और अनुनासिक स्वर (Oral Vowels and Nasal Vowels) – बहुत सी भाषाओं में मौखिक स्वर और अनुनासिक स्वरों में अंतर करते हैं। जैसे – हिंदी में ‘ गोद ’ और ‘ गोंद ’। हिंदी के प्रमुख अनुनासिक स्वर (Nasal Vowels) हैं – / ĩ ĩ : ũ ũ: ə̃ ã: ẽ: õ: ɛ̃: ᴂ̃: ᴔ̃: / । /ᴂ̃: ᴔ̃:/ के दो भिन्न उच्चारण हैं- [ᴂ̃: əɪ̃] और [ᴔ̃: əʊ̃].
- निष्कर्ष
- व्यंजनों का वर्गीकरण मुखविवर में अवरोध की मात्रा के आधार पर किया जाता है।
- व्यंजनों के वर्गीकरण का अन्य प्रमुख आधार उनका उच्चारण स्थान है।
- स्वरों के वर्गीकरण के तीन प्रमुख मानदंड हैं – जबड़े की ऊँचाई, जिह्वा की स्थिति तथा ओठों का वर्तुलन।
- स्वरों को उनकी मात्रा, मौखिकता-अनुनासिकता और जिह्वा की स्थिरता-अस्थिरता के आधार पर भी वर्गीकृत किया जाता है।
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अतिरिक्त जानें
क्या आप जानते हैं?
संस्कृत का ‘ऋ‘ एक अभिगामी approximant की तरह उच्चरित होता था।
यह अपने आप से एक पूर्ण अक्षर होता था, यानी इसके उच्चारण में ‘इ‘ या ‘उ‘ स्वर नहीं होते थे। आईपीए में इसका चिह्न है – [ ɻ ]’, बाद में यह ध्वनि ‘रि’ या ‘रु’ की तरह उच्चरित होने लगी।
पुस्तकें
- Ladefoged, Peter. (1975). A course in phonetics. Orlando: Harcourt Brace
- Lieberman, P. and Crelin, E. S. (1971) On the speech of Neanderthal man. Linguistic Inquiry, 2:203–222.
- Studdert-Kennedy, M. (1998) The particulate origins of language generativity: From syllable to gesture. In Hurford, J. R. and Studdert-Kennedy, M. and Knight C., editors, Approaches to the Evolution of Language: Social and Cognitive Bases. Cambridge: Cambridge University Press.
वेब लिंक
- तीन प्रकार की वायु प्रवाह प्रक्रियाओं – फुफ्फुसीय बहिर्गामी, हिक्कित, अंतःस्फोटी और क्लिक द्वारा उत्पादित ध्वनि प्रकारों के उत्पादन के
- अभ्यास के लिए निम्नलिखित लिंक पर जाएं –
- http://www.phon.ox.ac.uk/jcoleman/airstream_exercises.htm
- मानस्वरों पर और अधिक चर्चा के लिए निम्नलिखित लिंक देखें –
- http://www.phon.ox.ac.uk/jcoleman/CardinalVowels.htm
- https://en.wikipedia.org/wiki/Cardinal_vowels