22 आशय संबंध : पर्यायता, समनामता, विलोमता आदि

विजय कुमार कौल

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पाठ का प्रारूप

  1. पाठ का उद्देश्य
  2. प्रस्तावना
  3. पर्यायवाची (Synonyms)
  4. विलोमार्थी (Antonyms)
  5. अंग-अंगी संबंध (Hyponymy)
  6. प्रतिमान (Prototypes)
  7. समध्वनिकता (Homophony)
  8. समनामिता (Homonymy)
  9. अनेकार्थकता (Polysemy)
  10. लाक्षणिकता (Metonymy)
  11. सह-प्रयोग शब्द (Collocation)
  12. निष्कर्ष 
  1. पाठ का उद्देश्य

    इस पाठ के अध्ययनोपरांत आप –

  • भाषाविज्ञान की एक महत्वपूर्ण शाखा अर्थविज्ञान के अंतर्गत पर्यायवाची (synonyms), विलोमार्थी (antonyms), अंग-अंगी संबंध (hyponymy), प्रतिमान (prototypes), समध्वनिकता (homophony), अनेकार्थकता (polysemy), लाक्षणिकता (metonymy), सह-प्रयोग शब्द (collocation) के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे।
  • समझ सकेंगे कि किस तरह ये आर्थी संकल्पनाएँ भाषा में निहित अर्थ को समझने में सहायक सिद्ध हो होती हैं।
  1. प्रस्तावना

    भाषाविज्ञान के संदर्भ में  ‘अर्थ का प्रयोग ‘अभिप्राय के लिए होता है। अत: शब्द अर्थों के वाहक मात्रा नहीं होते, उनमें पारस्परिक संबंध भी होता है। इस शाबिदक संबंध से ही सही अर्थ-प्राप्ति संभव है। शाब्दिक संबंधें के कुछ रूपों की व्याख्या ही इस पाठ का विवेच्य विषय है। जैसे-

 

भाषा में एक ही अर्थ के लिए एकाधिक शब्द भी प्रयुक्त किए जाते हैं, जिन्हें पर्याय (Synonym)  शब्द कहा जाता है। जैसे – आसमान के लिए – नभ, व्योम, अंबर, अंतरिक्ष, शून्य, आसमान आदि अनेक शब्द प्रयोग में लाए जातेहैं। लेकिन इन पर्यायवाची शब्दों में भी अर्थ की छाया में बारीक अंतर रहता है। इन विभिन आर्थी धरातलों के कारण पर्याय शब्दों का चुनाव विषय और प्रसंग के अनुसार सावधानी से करना जरूरी है। अत: पर्याय शब्द दो प्रकार के माने गए हैं -पूर्ण पर्याय और अपूर्ण पर्याय।

 

ऐसे पद, जिनके मौखिक-लिखित रूप तो एक से या समान लगें लेकिन अर्थ भिन-भिन हों-समनामी (Homonym) कहलाते हैं। इसके अतिरिक्त विलोमार्थी (Antonyms), अंग-अंगी संबंध (Hyponymy), प्रतिमान (Prototypes), समध्वनिकता (Homophony), अनेकार्थकता (Polysemy), लाक्षणिकता (Metonymy), सह-प्रयोग (Collocation) आदि पर भी विस्तार से चर्चा की जाएगी। 

  1. पर्यायवाची (Synonyms)-

    किसी भाषाविशेष में ‘शब्द’ और ‘मूर्त सत्ता/वस्तु’ के मध्य विद्यमान वह संबंध जहाँ एक ‘मूर्त सत्ता/वस्तु’ के लिए एकाधिक ‘शब्द’ प्रचलित हों, पर्यायता/पर्यायवाची कहलाता है। यद्यपि सभी शब्द शत-प्रतिशत एक ही अर्थ को व्यक्त नहीं करते, उनमें कुछ-न-कुछ अंतर अवश्य होता है। यदि उनके अभिधेय एक समान हों, तब भी प्रयोगात्मक, प्रभावात्मक या संदर्भीय स्तर पर उनमें कुछ-न-कुछ भेद अवश्य मिलता है। यदि किसी वस्तु या व्यक्ति के लिए एकाधिक शब्दों का प्रयोग किया जाता है, तो प्रत्येक शब्द उस वस्तु या व्यक्ति की अलग-अलग विशेषता को दर्शाते हैं, किंतु वह सभी विशेषताएँ चूकि एक ही व्यक्ति या वस्तु में विद्यमान होती हैं। अतएव ये सभी शब्द पर्यायवाची माने जाते हैं। अर्थात् पर्यायवाची परस्पर संबंधित दो या दो से अधिक अर्थों को दर्शाता है, जो प्रायः (सदैव नहीं) एक-दूसरे की जगह पर प्रयुक्त होते हैं। निम्नलिखित शब्दों के जोड़ों से यह बात स्पष्ट हो जाती है- ढकना-छुपाना।

 

अर्थ की समानता का मतलब यह है कि ये शब्द एक-दूसरे के स्थान पर प्रायः प्रयोग किए जा सकें, सदैव नहीं। कई अवसरों पर किसी वाक्य में एक शब्द सही या सटीक बैठता है न कि इसका पर्यायवाची शब्द, जैसे- राधा ने बात छुपाई की जगह पर राधा ने बात ढँक ली  अटपटा लगेगा।

 

पर्यायवाची शब्द कभी-कभी औपचारिकता दर्शाने के लिए भी प्रयोग में लाए जाते हैं, जैसे- मेरे बाप ने एक बड़ा घर खरीदा के स्थान पर मेरे पिता ने एक कोठी खरीदी

 

अर्थात पर्यायवाची शब्दों का परीक्षण उनका वाक्यों में प्रयोग करके किया जाता है। इस हेतु निम्नलिखित आधार संभव हैं-

 

1) यदि ये शब्द किसी वाक्य में एक-दूसरे के स्थान पर प्रयुक्त हो सकें और वाक्य के अर्थ में कोई परिवर्तन न आए तो ये शब्द पर्यायवाची कहलाएँगे। उदाहरणार्थ-

       (a) मेरे पास एक सुंदर गुड़िया है।

       (b) मेरे पास एक खूबसूरत गुड़िया है।

 

2) पर्यायवाची माने जाने वाले शब्दों के अंशों में कितनी समानता है, यह भी परीक्षण का एक आधार होता है। उदाहरणार्थ- ‘सौंदर्य’ और ‘सुंदरता’ शब्द पर्यायवाची हैं क्योंकि दोनों में ‘सुंदर’ शब्द उभयनिष्ठ है।

 

3) पर्यायवाची माने जाने वाले शब्दों के परीक्षण का एक आधार यह भी होता है कि उनके विलोम शब्द समान हैं या नहीं, इसका परीक्षण किया जाए। उदाहरणार्थ- ‘आदर’ और ‘सम्मान’ के विलोम रूप क्रमशः ‘अनादर’ और ‘अपमान’ हैं। चूकि ये विलोम रूप भी परस्पर पर्यायवाची हैं अतः आदर’ और ‘सम्मान’ भी पर्यायवाची हैं।

 

4) इसी प्रकार समान अर्थ की प्रतीति कराने वाले शब्द भी पर्यायवाची होते है। उदाहरणार्थ- ‘भानु’ एवं ‘भास्कर’, ‘धरा’ एवं ‘भू’ आदि।

 

अंग्रेजी में  पर्यायता को हम इस प्रकार से समझ सकते हैं-Synonymy is the state or phenomenon in which the words that sound different(different in pronunciation) but have the same or identical meaning as another word or phrase. The concrete form of synonymy is called “synonym.” अर्थात पर्यायता एक अवस्था अथवा सिद्धांत हैं जिसमें उच्चारण की दृष्टि से शब्द भिन्न होते हैं परन्तु अर्थ की दृष्टि से उनमें आंशिक अथवा पूर्ण समानता होती है। यथार्थरूप में इस प्रक्रिया को पर्यायता तथा उसके व्‍यक्‍त रूप में पर्याय कहते हैं।

  1. विलोमार्थी (Antonyms)

    शब्द में विलोमता या विपरीतार्थता को भी संदर्भ और अर्थीय घटकों की दृष्टि से देखा जा सकता है। जैसे ‘गुण के संदर्भ में ‘दोष विपरीत अर्थ देता है। अत: ‘गुण-दोष विलोम है। इसी प्रकार ‘आदमी और ‘औरत के घटक विषम हैं-

 

आदमी (+ मानवीय + पुरुष + वयस्क)

औरत (+ मानवीय – पुरुष + वयस्क)

 

विलोमता उपसर्ग-प्रत्यय के स्तर पर भी मिलती है। जैसे – सभ्य-असभ्य, पूर्ण-अपूर्ण, स्वार्थ-नि:स्वार्थ आदि। विषय और प्रसंग के अंतर से एक ही शब्द के अनेक विलोम शब्द हो सकते हैं। जैसे –

 

काला – सफेद (वस्तु), काला -गोरा (व्यकित);  सूखा –  गीला (द्रव), सूखा – हरा-भरा (बाग)

 

अर्थात ऐसे शब्द जो परस्पर विपरीत अर्थ रखते हों, विलोम कहलाते हैं, जैसे- जल्दी-धीरे, अमीर-गरीब, प्रसन्न-उदास, पुरुष-स्त्री, सच-झूठ, जिंदा-मुर्दा आदि।

 

सामान्यतः विलोम शब्द दो प्रकार के होते हैं-

  1. ऐसे विलोम शब्दों का युग्म जिनकों श्रेणीबद्ध किया जा सकता है। इसके अंतर्गत निम्नलिखित प्रकार के विलोम शब्द आते हैं-

i. क्रमिकीय विलोम (Graded antonyms)

ii.परस्पर विरोधी शब्द (Conversive antonyms/ binary antonyms)

 

i. क्रमिकीय विलोमता (Graded Antonymy)

क्रमिकीय विलोमता के अंतर्गत ऐसे शब्द-युग्म आते हैं जिनमें तुलना की जा सकती है। उदाहरणार्थ- बड़ा-छोटा का प्रयोग तुलना के संदर्भ में किया जाता है, जैसे- इससे बड़ा, इससे छोटा। इसी प्रकार अन्य शब्द-युग्म हैं- सरल-कठिन, खट्टा-मीठा, ऊँचा-नीचा इत्यादि।

 

ii. परस्पर विरोधी शब्द (Conversive Antonyms/ Binary Antonyms)

इन शब्द-युग्मों की विशेषता होती है कि एक के सत्य होने में दूसरे का असत्य होना निहित है। किंतु एक के असत्य होने पर दूसरे का सत्य होना निश्चित नहीं होता। अर्थात इसमें एक शब्द का अर्थ अपने जोड़े से बिल्कुल विपरीत नहीं होता। उदाहरणार्थ- वह कुत्ता बुड्ढ़ा नहीं हुआ का यह अर्थ नहीं हो सकता कि कुत्ता जवान है। इसी प्रकार यदि यह कहा जाए कि पानी गरम है तो उसी पानी के लिए यह कहना कि पानी ठंडा है असत्य होगा। इसके कुछ अन्य उदाहरण हैं- चौड़ा-सकरा, ठोस-तरल, अच्छा-बुरा इत्यादि।

  1. ऐसे विलोम शब्दों का युग्म जिनकों श्रेणीबद्ध नहीं किया जा सकता है। इसके अंतर्गत निम्नलिखित प्रकार के विलोम शब्द आते हैं-

    a) परिपूरक विलोमता (Complementary Antonyms)

b) संबंधात्‍मक विलोमता (Relational Antonyms)

c) ध्रुवीय विलोमता (Polar Antonyms)

 

a) परिपूरक विलोमता (Complementary Antonymy)

कुछ क्रियाओं का आपसी संबंध ऐसा होता है कि एक क्रिया दूसरे की अनुवर्ती होती है अर्थात अपेक्षा रखती है। उदाहरणार्थ- बाँधना-खोलना, उठना-गिरना, बड़ा करना-छोटा करना, पहनना-उतारना, उँचा करना-नीचा करना इत्यादि। इन प्रत्येक युग्मों में से प्रथम अंश तभी संभव है जब द्वितीय अंश विद्यमान हो। अर्थात बाँधने के लिए कुछ खुला होना चाहिए और खोलने के लिए कुछ बधा होना चाहिए। ऐसा ही अन्य युग्मों के विषय में भी संभव है। ऐसे विलोम शब्दों के जोड़ों को Reversive कहा जाता है।

 

b) संबंधात्‍मक विलोमता (Relational Antonymy)

यह विलोमता तब आती है जब संज्ञाएँ परस्पर किसी संबंध से बँधी हों। उदाहरणार्थ- पति-पत्नी, माँ-संतान, मालिक-नौकर, दुकानदार-ग्राहक, गुरु-शिष्य इत्यादि।

 

c) ध्रुवीय विलोमता (Polar Antonymy)

इस स्थिति में दोनों शब्द परस्पर विपरीत छोर पर होते हैं तथा ये परस्पर एक-दूसरे के सत्य को झुठलाते हैं। उदाहरणार्थ- यदि यह कहा जाए कि ‘वह मर गया’ तो इसका तात्पर्य यह होता है कि ‘वह जीवित नहीं है’। इस संदर्भ में थोड़ा मुर्दा या ज्यादा मुर्दा नहीं कहा जाता, क्योंकि विलोंम का तात्पर्य एक का दूसरे में अभाव होता है। इसी प्रकार स्त्री-पुरुष, झूठ-सच, विवाहित-कुँवारा आदि ध्रुवीय विलोमता के उदाहरण हैं। 

  1. अंग-अंगी संबंध (Hyponymy)-

   जब एक शब्द का अर्थ दूसरे शब्द में समाहित हो, तो इस संबंध को अवनामिता अथवा अंग-अंगी संबंध (Hyponymy) कहते हैं। इससे विशिष्ट और सामान्य शाब्दिक इकाइयों का बोध होता है। जैसे – ‘गोभी एक सब्जी है – वाक्य में गोभी और सब्जी के बीच आर्थी स्तर पर अवनामिता है। गोभी ‘सब्जी का अवनाम है। गेहूँ – अनाज पीपल-वृक्ष, गोरैया-चिडि़या आदि में पूर्ववर्ती शब्द का अर्थ – उत्तरवर्ती शब्द में समाहित है।

 

इस प्रकार एक शब्द का पूर्ण अर्थ किसी दूसरे शब्द में समाहित हो जाए तो ऐसे शब्द-संबंध को अंग-अंगी या अंतर्भाव संबंध कहते हैं। उदाहरणार्थ- गुलाब और पुष्प, गाजर और सब्जी, कुत्ता और पशु। इस प्रकार जब एक अर्थ दूसरे में सम्मिलित हो तो वह अर्थ का एक वर्ग बनाता है और इस आधार पर अर्थ का वर्गीकरण होता है। जो शब्द अन्य शब्दों का अर्थ अपने अंदर समाहित करता है, उसे अंगी शब्द (Super-ordinate) कहा जाता है और जो शब्द अंगी शब्द के अधीन होता है उसे अंग शब्द (Hyponym) कहा जाता है। यदि किसी अंगी शब्द के अंतर्गत एकाधिक अंग शब्द हों तो वे परस्पर सह-अंग शब्द (Co-hyponyms) कहलाते हैं। जैसे- कमल हो या गुलाब दोनों को पुष्प शब्द दर्शाता है। इसमें गुलाब और कमल दोनों पुष्प (अंगी) के अंग हैं।

 

अंग-अंगी संबंध की विवेचना में शब्दों का एक आनुक्रमिक (Hierarchical) संबंध नजर आता है। इस प्रकार शब्दों के मध्य एक विशिष्ट प्रकार का आपसी संबंध दिखाई देता है, जैसे- पशु शब्द के अंतर्गत कुत्ता, बिल्ली, घोड़ा, गाय, नेवला आदि आते हैं। ये संबंध इस आरेख द्वारा इस प्रकार दिखाया जा सकता है-

 

 

इस आरेख के अनुसार जीव अंगी है तथा मनुष्य, पशु एवं कीट उसके अंग हैं। पुनः स्त्री एवं पुरुष अंग हैं तथा मनुष्य अंगी है; घोड़ा, बिल्ली, कुत्ता अंग हैं एवं पशु अंगी है; चींटी, दीमक अंग हैं और कीट अंगी है। इसी प्रकार मनुष्य अंगी के अंतर्गत स्त्री एवं पुरुष सह-अंग हैं, पशु अंगी के अंतर्गत घोड़ा, बिल्ली, कुत्ता सह-अंग हैं तथा कीट अंगी के अंतर्गत चींटी, दीमक अंग हैं।

 

ऐसा प्रायः दिखता है कि एक शब्द का अर्थ दूसरे शब्द के अर्थ से हाइपोनिमी द्वारा जोड़ा जाता है जैसे कि ‘एक प्रकार का’। कमल एक प्रकार का पुष्प है। अर्थात यदि कोई शब्द के अर्थ का संबंध केवल उसके प्रकार (वर्ग) के द्वारा जानता है तो वह भी भाषा के प्रयोग में पर्याप्त रहता है। यहाँ इस बात का ध्यान रखना आवश्यक है कि न केवल संज्ञा बल्कि क्रिया को भी सह-अंग द्वारा पहचाना जा सकता है। 

  1. प्राक् रूप/प्रतिमान (Prototypes)-

   इसके अंतर्गत किसी शब्द को किसी श्रेणी में रखने के लिए आवश्यक आधार का विश्लेषण किया जाता है। कोयल, तोता, कौआ आदि सभी चिड़िया अलग-अलग ‘अंग’ (Hyponyms) हैं जो अपने से बड़े वर्ग ‘पक्षी’ ‘अंगी’ (super-ordinate) के अंतर्गत आते हैं। इन सभी ‘अंगों’ (Hyponyms) को ‘पक्षी’ ‘अंगी’ (Super-ordinate) के अंतर्गत रखने का मूल आधार है उनके लक्षण। जैसे पक्षी के लक्षण होते हैं- वह प्राणी जिसकी विशिष्ट प्रकार की शारीरिक संरचना हो, जिनके पंख हो और उड़ने में सक्षम हो, स्तनपायी न हो आदि। इन्हीं लक्षणों के कारण ये परस्पर सह-अंग शब्द (Co-hyponyms) कहलाते हैं। इसी कारण ऐसे प्राणी जिनके पास ये मूलभूत लक्षण नहीं हैं, ‘पक्षी’ ‘अंगी’ (Super-ordinate) के अंतर्गत नहीं रखे जा सकते। अतः स्पष्ट है कि कुछ विशिष्ट लक्षणों या गुणों अर्थात अर्थों के आधार पर शब्दों का अनुक्रम बन पाता है।

 

इसी प्रकार शब्दों के वर्गीकरण का एक अन्य आधार होता है उनके प्रयोग या व्यवहार का क्षेत्र। चूकि एक क्षेत्र विशेष से संबंधित शब्दों की अपनी एक विशिष्टता होती है और इसी आधार पर उनको वर्गीकृत करते हुए एक वर्ग के अंतर्गत रखा जाता है, जबकि इनसे भिन्न लक्षण रखने वाले शब्दों को अन्य संबंधित वर्ग में रखा जाता है। उदाहरणार्थ- ‘कपड़ा’ श्रेणी के अंतर्गत कमीज, कुर्ता, पाजामा, दस्ताना आदि को रखने में आसानी होती है, जबकि जूतों को कपड़े की श्रेणी में रखने में हिचकिचाहट होगी। इस प्रकार शब्दों को अर्थ प्रदान करने में प्रोटोटाइप का सहारा लेने में आसानी होती है। 

  1. समध्वनिकता (Homophony)-

ऐसे शब्द-युग्म जिनकी वर्तनी में भिन्नता हो किंतु उच्चारण में साम्य हो तो उनके मध्य विद्यमान संबंध को समध्वनिकता कहते हैं। स्वन का अर्थ ध्वनि है। समस्वन शब्दों के लिखित रूप और अर्थ भिन्न होते हैं लेकिन ध्वन्यात्मक उच्चारण समान होता है। जैसे – कर्ता (उद्देश्य) – करता (करना, क्रिया का वर्तमानकालिक कृदंत रूप)।

 

Bear (आचरण करना) – Bear (भालू)- Beer- (पेय पदार्थ)

Principal (प्रधान) – Principle (सिद्धांत आदि।

  1. समनामिता (Homonymy)-

   यह एक विशेष प्रकार के संबंध को दर्शाता है जिसमें शब्द लिखित या मौखिक रूप में तो समान होते हैं किंतु दो या दो से अधिक असंबंधित अर्थों को दर्शाते हैं अर्थात् समनाम वे शब्द होते हैं जिनके अर्थ अलग-अलग हों किंतु उच्चारण तथा/अथवा वर्तनी में कोई भेद न हो। समनाम शब्द तीन प्रकार के होते हैं- उदाहरण- Bank-Bank, Race-Race, Bat-Bat, आम-आम, कल-कल।

  1. वैसे शब्द जिनके उच्चारण और वर्तनी में साम्य हो किंतु अर्थ में भिन्नता हो। उदाहरण-

     हार         –      माला

 हार         –      पराजय

आम        –      एक फल

आम        –      सामान्य

इसी प्रकार Bank-Bank, Race-Race, Bat-Bat, कल-कल इत्यादि इसके उदाहरण हैं।

  1. वैसे शब्द जिनके उच्चारण और अर्थ में भिन्नता हो किंतु वर्तनी में साम्य हो। उदाहरण-

     Lead      –      लीड     –      नेतृत्व करना

 Lead      –      लेड      –      सीसा

Wind      –      विण्ड    –      वायु

Wind      –      वाइण्ड  –      घुमाना

  1. वैसे शब्द जिनके अर्थ और वर्तनी में भिन्नता हो किंतु उच्चारण में साम्य हो। उदाहरण-

    Feet      –      पाँव

Feat      –      साहसिक कार्य

Meet     –      मिलना

Meat     –      मांस

  1. अनेकार्थकता (Polysemy)-

    एक कोशगत इकार्इ के एक से अधिक अर्थों का होना – अनेकार्थता या बहुअर्थकता (Polysemy) कहलाता है। उदाहरणार्थ – ‘कर शब्द के हिंदी में कर्इ अर्थ हैं- हाथ, किरण, टैक्स। अलग-अलग संदर्भों या प्रसंगों में प्रयुक्त होने पर ‘कर के अलग –अलग अर्थ स्वतः ही स्पष्ट हो जाते हैं। भर्तृहरि के अनुसार इस प्रकार के शब्दों का कहाँ पर क्या अर्थ लिया जाये, यह प्रयोक्ता पर निर्भर है। प्रयोक्ता जहाँ जिस अर्थ में उस शब्द का प्रयोग करता है, वही अर्थ उसका अभिधेय है। श्रृंग- सींग, चोटी,  पानी- जल, कांति- सम्मान इसी प्रकार के शब्द है।

 

इस प्रकार एक शब्द एकाधिक संदर्भों में प्रयुक्त होकर भिन्न-भिन्न अर्थ देता हो तो इन अर्थों के एक-दूसरे के साथ संबंध को तकनीकी तौर पर अनेकार्थक (Polysemy) कहा जाता है। हिंदी भाषा में ऐसे अनेक शब्द हैं जिनके एक से अधिक संबंधित अर्थ प्राप्त होते हैं। उदाहरणार्थ-

 

i चोटी        –      पहाड़ की चोटी, बाल की चोटी, चोटी का कलाकार इत्यादि।

ii पैर     –      व्यक्ति का पैर, कुरसी का पैर इत्यादि।

iii बहना     –      पानी का बहना, हवा का बहना, रक्त का बहना, भावना में बहना आदि।

 

समनामिता और अनेकार्थकता का अंतर समझना थोड़ा कठिन है, किंतु यह अंतर शब्दकोश देखने पर स्पष्ट दिखाई पड़ता है। यदि एक शब्द के कई अर्थ हों तो शब्दकोश में उन्हें एक ही शब्द के अंतर्गत दर्शाया जाएगा और उन अर्थों को क्रमशः गिनती में 1,2,3 के रूप में दर्शाया जाता है और ये अर्थ अनेकार्थकता के अंतर्गत आते हैं। किंतु यदि दो शब्दों के मध्य समनामीय संबंध हो तो शब्दकोश में वे दो अलग-अलग शब्द के रूप में रखे जाते हैं। 

  1. लाक्षणिकता (Metonymy)-

  जब किसी वस्तु का निर्देश उससे घनिष्ठता से संबंद्ध किसी दूसरी वस्तु के द्वारा किया जाता है तो इसे लाक्षणिकता (Metonymy) कहा जाता है। जैसे- अमेरिकी राष्ट्रपति को ‘The White House’ कहना, क्योंकि वह राष्ट्रपति का निवास स्थान है।

 

अनेकार्थकता में दर्शाए गए संबंधित अर्थ किसी संबंध द्वारा निर्धारित किए जाते हैं। इसी प्रकार शब्दों के अर्थ का संबंध कुछ भिन्न भी हो सकता है, जैसे- ‘धारित्र’ शब्द उन सभी वस्तुओं को कहा जा सकता है जिसमें कोई तरल पदार्थ (द्रव) रखे जा सकते हैं, यथा- डिब्बा, बोतल, गिलास आदि। इसमें बोतल और उसमें रखे गए द्रव का संबंध, मकान और छत का संबंध, राजा और उसके सिर पर रखे हुए मुकुट का संबंध आदि मेटोनिमी कहलाते हैं। Metonymy के आधार पर ही कोई व्यक्ति निम्नलिखित प्रकार के वाक्यों का अर्थ समझने में सक्षम हो पाता है- उसने पूरी बोतल पी ली’, जबकि हम भली-भाँति जानते हैं कि बोतल पीने की चीज नहीं है, बल्कि उसमें रखा हुआ द्रव पिया जाता है। इसी प्रकार उसके सर पर छत नहीं है’, इसका अर्थ है कि उसके पास घर नहीं है। मेटोनिमी के कई उदाहरण रीति या परंपरा के  द्वारा भी प्राप्त होते हैं। कई बार अर्थ समझने में कठिनाई भी होती है, जो बिना संदर्भ ज्ञान के समझना कठिन होता है। 

  1. सहप्रयोग (Collocation)-

   शब्द ज्ञान में एक और पहलू भी देखा जाता है जो अब तक बताई गई बातों से बिलकुल भिन्न है। हम यह भली-भाँति जानते हैं कि किस शब्द को किन शब्दों के साथ जोड़ कर प्रयोग में लाया जा सकता है, जैसे हम यदि एक हजार लोगों से पूछे कि हथौड़े के साथ कौन सा शब्द अधिकतम मेल खाता है तो आधे से ज्यादा हमें कील/लोहा बताएँगे। इसी प्रकार सूई का धागे के साथ, नमक का मिर्च के साथ होना ही collocation कहलाता है। यद्यपि ऐसे जोड़े भी ज्यादातर एक प्रकार के भाषा-भाषी अपने-अपने ढ़ंग से जोड़ते है, जैसे- पूर्व काल में हमारे यहाँ छुरी शब्द का प्रयोग चाकू या इसी प्रकार के तेज धारदार हथियार के लिए किया जाता था किंतु पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव से अब छुरी के साथ काँटा शब्द का व्यवहार होने लगा है जैसे- छुरी-काँटा।

  1. निष्कर्ष

  इस प्रकार हम देखते हैं कि शब्दार्थ संबंधों अथवा आशय संबंधों (Word sense relations) की अलग-अलग श्रेणियों की सहायता से भाषा में विद्यमान आर्थी जटिलताओं को सरल किया जा सकता है। भाषाविज्ञान की प्रमुख शाखा अर्थविज्ञान का यही औचित्य है कि इसमें प्रतिपादित सिद्धांतों एवं विधियों द्वारा भाषा की अर्थ संबंधी दुरुहता को सहज और तकनीकी युक्तियों की सहायता से सरल किया जाए। भाषा अधिगम अथवा भाषा की समझ के लिए अर्थविज्ञान की समझ होना अत्यावश्यक है कि किस प्रकार से भाषा का प्रयोग करते समय बोलने वाले, सुनने वाले, पढ़ने वाले, लिखने वाले के रूप में अर्थ को कैसे ग्रहण करते हैं तथा किस प्रकार भाषा में अर्थ एक समय अंतराल के बाद परिवर्तित हो जाता है। भाषा को सामाजिक संदर्भ में समझना जरूरी है क्योंकि विभिन्न सामाजिक कारक अर्थ को प्रभावित करते हैं। इस प्रकार अर्थविज्ञान भाषाविज्ञान में सबसे महत्त्पूर्ण पहलुओं में से एक हैं । अतः पर्यायवाची, विलोमार्थी, अंग-अंगी संबंध, प्रतिमान, समध्वनिकता, अनेकार्थकता, लाक्षणिकता, सह-प्रयोग शब्द प्रकारों का वर्गीकरण अर्थविज्ञान में एक विशेष महत्व रखता है।

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अतिरिक्त जानें

पुस्तकें

 

1) तिवारी, भोलानाथ, (1969 प्रथम संस्करण) शब्दों का अध्ययन. दिल्ली: शब्दकार प्रकाशक

2) द्विवेदी, कपिलदेव, (2012) भाषा विज्ञान एवं भाषा शास्त्र. वाराणसी: विश्वविद्यालय प्रकाशन.

3) Jackendoff, R. 1990. Semantic Structures.Cambridge, MIT-Press.

4) Lyons, J. (1995). Linguistic Semantics. An Introduction. Cambridge: Cambridge University Press.

5) Edmonds, P. & Hirst, G. (2002). Near-synonymy and lexical choice. Computational Linguistics, 28(2), 105-144.

 

वेबलिंक्स

 

1) kyoto-seika.ac.jp/researchlab/wp/wp-content/…/no_matthew_michaud.pd

2) wdfiles.com/local–files/illa:vol1n7/illa_vol1n7_klein.pdf

3) acsu.buffalo.edu/~jb77/handout_Svorou.pdf

4) http://www.ibuzzle.com/articles/lexical-relations-hyponymy-and-homonymy.html

5) http://www.unizd.hr/Portals/36/kolegiji/semantics/SENSE%20RELATIONS