18 वाक्य की संरचनात्मक एवं प्रकार्यात्मक कोटियाँ

वी. आर. जगन्‍नाथन

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पाठ का प्रारूप

  1. पाठ का उद्देश्य
  2. प्रस्तावना
  3. प्रकार्य के आधार पर वाक्य के प्रकार
  4. रचना के आधार पर वाक्य के प्रकार
  5. रचनांतरण
  6. विस्तृत वाक्य
  7. निष्‍कर्ष 
  1. पाठ का उद्देश्य

    इस पाठ के अध्‍ययन के उपरांत आप-

  • विशिष्‍ट प्रकार के वाक्यों की पहचान कर सकेंगे;
  • रचना के आधार पर सरल वाक्यों के प्रकार बता सकेंगे;
  • हिंदी भाषा के बीज वाक्य गिना सकेंगे;
  • प्रयोग के आधार पर सरल वाक्यों के प्रकार बता सकेंगे;
  • सन्निहित वाक्यों की रचना का विश्‍लेषण कर सकेंगे और
  • वाक्य विस्तार की पहचान के साथ संयुक्‍त और मिश्र वाक्यों का स्वरूप समझा सकेंगे।
  1. प्रस्तावना

   पिछली इकाई में हमने उद्देश्य और विधेय की चर्चा की और देखा कि वाक्य का स्वरूप क्या है। अर्थात् हमने वाक्य की रचना की चर्चा प्रारंभ कर दी थी। भाषा रचना की दृष्टि से विविधरूपा है। इसमें एक शब्द के वाक्य भी मिलते हैं और ‘कादम्‍बरी’ नामक संस्कृत उपन्यास में हज़ार शब्द वाले वाक्य भी मिलते हैं। इस इकाई में हम रचना की दृष्टि से वाक्य के विविध प्रकारों की चर्चा करेंगे। वाक्य ही भाषा की अभिव्यक्तियाँ हैं। हम जानते हैं कि वास्तविक जीवन के विविध संदर्भों में भाषा के विविध रूप हैं। संप्रेषण की स्थितियों में सवाल-जवाब, गाली देना या प्रशंसा करना, अनुरोध या आज्ञा करना आदि प्रसंगों में विभिन्न प्रयोजनों के लिए बोले जानेवाले विविध प्रकार के वाक्य हैं। इस इकाई में हम प्रयोग के अनुसार वाक्य के प्रकारों की चर्चा करेंगे। प्रसंग से हिंदी के आधारभूत वाक्यों की संरचना की भी चर्चा करेंगे।

 

वाक्यविज्ञान इस बात का भी अध्ययन करता है कि आधारभूत वाक्यों से अन्य कई प्रकार के वाक्य कैसे बनते हैं। इस प्रक्रिया के दो रूप हैं – बीज वाक्यों से हम रूप परिवर्तन द्वारा अन्य कई वाक्यों की रचना कर लेते हैं, जैसे कर्मवाच्य के वाक्य आदि। यह वाक्य के रचनांतरण की प्रक्रिया है। हम दो या अधिक वाक्यों को मिलाकर संयुक्‍त वाक्य आदि का निर्माण करते हैं। इसी तरह अपने मंतव्य आदि को अभिव्यक्त कर मिश्र वाक्यों का प्रयोग करते हैं। यह वाक्य के विस्तार की प्रक्रिया है। 

  1. प्रकार्य के आधार पर वाक्य के प्रकार

   प्रकार्य को समझने के लिए भाषा के प्रयोजनों की चर्चा आवश्यक है। संवाद में आमतौर पर दो पक्ष होते हैं। कोई व्यक्ति पूछता हैं, दूसरा व्यक्ति उसका उत्तर देता है, जैसे माँ बच्चे से स्वयं पूछ सकती है, “तुम्हें भूख लगी है ?” उसने एक प्रश्‍न किया। बच्चा कहता है, “हाँ, भूख लगी है।” आमतौर पर संवाद प्रश्‍न और उत्तर के सहारे चलता है। उत्तर हमारे कथनात्मक वाक्य हैं और प्रश्‍न करने के लिए हम प्रश्‍नवाचक वाक्यों का प्रयोग करते हैं। इस प्रकार हम दो प्रमुख वाक्य प्रकारों की चर्चा कर सकते हैं जिनका उद्देश्य है विचारों का आदान-प्रदान करना अर्थात् सूचना माँगना और सूचना देना।

 

3.1  तथ्य पर आधारित वाक्य

संवाद की स्थिति में प्रश्‍न वाले वाक्य प्रश्‍नार्थ या प्रश्‍नवाचक (Interrogative sentence) कहलाते हैं। ये प्रश्‍न दो प्रकार के हैं। पुष्टि के प्रश्‍न किसी सूचना की पुष्टि के लिए पूछे जाते हैं, जैसे “क्या कल छुट्टी है?” जानकारी के लिए प्रश्‍न ‘क्या, कब, कहाँ, कैसे, कितने’ आदि प्रश्‍नवाचक शब्दों से बनते हैं।

 

अनुमति देनेवाले वाक्यों को छोड़कर उत्तर के वाक्य प्रायः कथनात्मक होते हैं। पुष्टि के प्रश्नों के उत्तर में ‘हाँ’ या ‘नहीं’ के बाद कथन जोड़ा जाता है। “हाँ, कल छुट्टी है।” जानकारी के लिए प्रश्नों के उत्तर में अपेक्षित सूचना दी जाती है। निश्चित कथन के रूप में उत्तर देने के कारण इस वाक्य प्रकार को निश्‍चयार्थ (Declarative sentence) कहा जाता है। तर्क में इन वाक्यों को तथ्य कथन वाक्य (Proposition) कहा जाता है, क्योंकि ये कथन वस्तु जगत के किसी तथ्य को उजागर करते हैं। वास्तव में ये वाक्य लोगों को सूचनाएँ देने के लिए हैं और सूचनाएँ हम अपनी आवश्यकताओं के लिए देते या लेते हैं।

 

कथन का प्रयोग केवल प्रश्‍न का उत्तर देने के लिए नहीं होता। इससे हम वस्तु स्थिति का विवरण दे सकते हैं, किसी घटना का वर्णन कर सकते हैं, अपने मन की बात अभिव्यक्‍त कर सकते हैं। बच्चे को भूख लगती है तो वह कहता है “मुझे भूख लगी है।” यह एक कथन है, लेकिन माँ को संकेत है कि उसे खाना चाहिए। बच्चे का यह कथन प्रश्‍न के उत्तर के रूप में नहीं है, स्वतंत्र अभिव्यक्ति है। घटनाओं का वर्णन, स्थितियों के विवरण आदि संदर्भ कथनात्मक वाक्यों से निर्मित होते हैं। हाँ, भाषण में तार्किक विवेचन के लिए वक्‍ता संभावित प्रश्‍न को लेकर उसके उत्तर के रूप में अपनी बात कह सकते हैं। इस पाठ में भी आप इस शैली का प्रयोग देख सकते हैं।

 

अब हम तीसरे प्रकार्य की चर्चा करेंगे। तीसरे प्रकार के वाक्यों का संदर्भ वह है जहाँ हम सूचना तो दे रहे हैं लेकिन अपनी मनोदशा के अनुसार। ताजमहल को देखकर आप कहते हैं कि “वाह, कितना सुंदर है।” हम यहाँ केवल सूचना नहीं दे रहे हैं, इस वाक्य के माध्यम से यह प्रकट कर रहे हैं कि उसकी सुंदरता के बारे में हमारा अपना विचार क्या है। इन वाक्यों को हम विस्मयार्थ या विस्मयादिबोधक वाक्य (Exclamatory sentence) कहते हैं। इनके कई प्रकार्य हैं जैसे, प्रशंसा करना “वाह! कितना अच्छा काम है”, आश्‍चर्य प्रकट करना “अरे! इतनी जल्दी कैसे आ गए”, घृणा प्रकट करना “थू, कितनी गंदगी है यहाँ” आदि। प्राय: सामान्य वाक्य के साथ जब ‘कितना, कैसा, क्या‘ आदि प्रश्‍नवाचक शब्द जुड़ते हैं, तब विस्मयादिबोधक वाक्य बनते हैं। लेकिन ये सच में प्रश्‍नवाचक शब्द नहीं हैं, अतः इन वाक्यों का सूचनापरक उत्तर नहीं दिया जाता। हाँ, पुष्टि में मूल वाक्य दुहराया जा सकता है। “हाँ, यहाँ बहुत गंदगी है।”  संक्षेप में कह सकते हैं कि तथ्यपरक वाक्य के तीन प्रकार हैं – सूचना या अपेक्षित उत्तर देने के लिए निश्‍चयार्थ वाक्य, जानकारी या अनुमति माँगने के लिए प्रश्‍नवाचक वाक्य और आश्‍चर्य, प्रशंसा आदि भावों की अभिव्यक्ति के लिए विस्मयादिबोधक वाक्य।

 

3.2  तथ्येतर वाक्य

इसका प्रयोग सुझाव या अनुमति माँगने के लिए भी किया जाता है, जैसे “क्या मैं जाऊँ ?” हमने देखा कि निश्‍चयार्थ वाक्य तथ्य कथन के लिए प्रयुक्‍त होते हैं। इनसे इतर वाक्य अन्य कई संदर्भों में प्रयुक्‍त होते हैं, जहाँ सूचना का आदान-प्रदान उद्देश्य नहीं है। तथ्येतर वाक्यों के पहले वर्ग में अनुमति या सुझाव माँगने और देने के वाक्य, इच्छा या अनिच्छा प्रकट करने वाले वाक्य, आशीष या शाप देने वाले वाक्य, भविष्य की योजना बताने वाले आदि आते हैं। वर्ग बड़ा है, लेकिन सौभाग्य से इनका क्रिया रूप सरल है जिसे भाषाविज्ञान में Subjunctive कहा जाता है। हिंदी में इसका कोई एक शब्द नहीं है। प्रयोग के आधार पर इसके कई नाम हैं। हम इन वाक्यों को निम्नलिखित उपवर्गों में देख सकते हैं। हम सुविधा के लिए इस पूरे वर्ग को संभावनार्थ वाक्य कहेंगे।

 

संभावनार्थ – संभव है कि वह न आए।

संदेहार्थ – शायद वह बीमार हो।

संकेतार्थ – अगर बारिश होती

सुझाव – आप जाएँ।

 

तथ्येतर वाक्यों का दूसरा प्रकार आज्ञार्थ (Imperative sentence) है, जैसे “तुम जाओ” और “आप जाइए”। ये वाक्य आदेशात्मक हैं, जिनका तुरंत अनुपालन अभीष्‍ट है।

 

संक्षेप में कह सकते हैं कि तथ्येतर वाक्य के दो प्रकार हैं। संभावनार्थ वाक्य संभावना, अनुमान, आशंका, संदेह आदि स्थितियों में प्रयुक्‍त होता है। इससे हम आशीर्वाद या शाप देना, आज्ञा देना, सुझाव देना या माँगना आदि से संबंधित अभिव्यक्तियाँ करते हैं। आज्ञार्थ वाक्यों से हम तुरंत अनुपालन के लिए आदेश देते हैं। इनकी तुलना में ‘जाएँ ’ अनुरोध, सुझाव आदि स्थितियों में प्रयुक्‍त होता है।

 

हम यह याद रखें कि तथ्येतर वाक्यों में भी प्रश्‍न आते हैं। ये प्रश्न तथ्यात्मक नहीं हैं। यह ध्यान रखें कि तथ्यपरक ‘क्या’ वाले प्रश्‍न से निश्चित सूचना माँगी जाती है, जबकि तथ्येतर ‘क्या’ वाले प्रश्‍न सुझाव अपेक्षित है।

 

प्रश्‍नवाचक वाक्यों की तालिकाएँ देखिए-

 

    “कितना अच्छा हो अगर सब आ जाएँ!” यह वाक्य विस्मयादिबोधक जैसा लगता है, क्योंकि यहाँ ‘कितना’ प्रश्‍नवाचक शब्द नहीं है। लेकिन भविष्य की घटनाओं का विस्मय नहीं हो सकता। यह वाक्य विस्मयादिबोधक नहीं है, किसी संभावित घटना के संभावित परिणाम की आशा प्रकट करता है। यह भी द्रष्‍टव्य है कि यह ‘अगर’ के साथ ही आ सकता है, अकेले सरल वाक्य के रूप में नहीं।

 

3.3 नकारात्मक वाक्य (Negative sentences)

तथ्य और तथ्येतर दोनों प्रकार के वाक्यों से  नकारात्मक वाक्य बनते हैं। सकारात्मक वाक्य और नकारात्मक वाक्य दोनों वस्तु सत्य के दो पहलू हैं, अर्थात् किसी प्रकरण में इनमें कोई एक ही वाक्य सही होगा। आप घर में झाँककर स्थिति के अनुसार कहते हैं “घर में कोई नहीं है” या “घर में कोई है”। लेकिन एक ही स्थिति में दोनों वाक्य बोले नहीं जा सकते।  संपुष्टि वाले वाक्य में भी उत्तर सकारात्मक होगा या नकारात्मक होगा। “क्या तुम्हें भूख लगी है?”  “नहीं, मुझे अभी भूख नहीं लगी है।” वक्‍ता ने नकारात्मक ढंग से इसका उत्तर दिया क्योंकि स्थिति के अनुसार वही वस्तु सत्य है।

 

हिंदी में हम सभी प्रकार के वाक्यों का नकारात्मक वाक्य में रचनांतरण कर सकते हैं। हाँ, रचना की दृष्टि से नकार के लिए तीन शब्द हैं। मोटे तौर पर तथ्य वाले वाक्यों में नकार ‘नहीं’  से व्यक्‍त होता है और संभावनार्थ आदि वाक्यों में नकार ‘न’ से सूचित होता है। इनके उदाहरण आगे देखें-

 

निश्‍चयार्थ वाक्य – वह होशियार नहीं है।

संभावनार्थ – हो सकता है वे स्वस्थ न हों।

आज्ञार्थ वाक्यों में नकार को निषेधार्थ (Prohibitive) कहा जाता है। यहाँ ‘मत’ का प्रयोग होता है।

निषेधार्थ – तुम लोग शोर मत करो। 

  1. 4. रचना के आधार पर वाक्य के प्रकार

   पिछले मॉड्यूल में हमने उद्देश्य और विधेय में दो प्रकार के पदबंधों – संज्ञा पदबंध और क्रिया पदबंध – से वाक्य रचना की चर्चा की। हमने संकेत किया था कि कारकों से विविध संज्ञा पदबंधों की रचना होती है। पदबंधों के साथ हमने वाक्य में योजक, निपात आदि प्रकार्यात्मक शब्दों के प्रकार्य की भी चर्चा की। इस इकाई में हम यह देखना चाहेंगे कि भाषा के सैकड़ों प्रकार के वाक्यों की रचना का आधार क्या है।

 

सबसे पहला सवाल यह है कि हम वाक्य के विविध प्रकारों की पहचान कैसे करें? ‘गीता ने चाय पी’,  ‘गीता ने दूध पिया’ ये दो प्रकार के वाक्य नहीं, एक वाक्य प्रकार के दो नमूने हैं। ‘कमल’ और ‘विमल’ वस्तु जगत् में जातिवाचक शब्द ‘लड़का’ के दो व्यक्‍त रूप हैं, इसलिए व्यक्तिवाचक संज्ञा कहलाते हैं। संस्कृत के व्याकरणाचार्यों ने जातिवाचक संज्ञा की तरह ‘जाति वाक्य’ की भी बात कही है। ऊपर बताए दोनों वाक्य एक ‘जाति’ के हैं, अर्थात् इनकी रचना एक है। आधुनिक भाषावैज्ञानिकों ने रचना की दृष्टि से भिन्न और विस्तार रहित मूल वाक्यों को ‘बीज वाक्य’ (Kernel sentence) की संज्ञा दी है। हम आगे हिंदी के परिप्रेक्ष्य में भाषा की आधारभूत वाक्यों की संरचना की चर्चा करेंगे।

 

4.1.  विशिष्‍ट प्रकार के वाक्य

भाषाविज्ञान की वाक्यविज्ञान नामक शाखा में सामान्य प्रकार के वाक्यों का अध्ययन किया जाता है। हमने चर्चा की कि वाक्य में उद्देश्य और विधेय नामक दो प्रमुख खंड हैं। इन खंडों में विशेषण युक्‍त संज्ञा और क्रिया पदबंध होते हैं, ये पदबंध शब्दों से निर्मित होते हैं। वाक्यों में हर शब्द का अपना स्थान और प्रकार्य होता है। हम सामान्य रूप से सभी वाक्यों को रचना के नियमों से स्पष्‍ट कर सकते हैं। फिर विशिष्‍ट प्रकार के वाक्यों की उपादेयता क्या है, आवश्यकता क्या है?

 

भाषा प्रमुखतः बातचीत या संवाद का साधन है। संवाद में उक्तियों की शृंखला बनती है। भाषा के विद्वान इसे प्रोक्ति (Discourse) कहते हैं। उक्तियों की शृंखला होने के कारण प्रोक्ति वाक्य से बड़ी रचना है, इसकी अपनी विशेषताएँ हैं। लेकिन वाक्य प्रोक्ति का घटक नहीं है। प्रयत्‍न लाघव संवाद की सबसे बड़ी विशेषता है। विस्तार में कुछ कहने से बचना, रूढ़ उक्तियों का प्रयोग आदि संवाद की विशेषताएँ हैं। हिंदी में विशिष्‍ट प्रकार के वाक्य निम्न प्रकार के हैं-

 

क) एक शब्द वाले

हम अक्सर प्रश्‍न करने के लिए और प्रश्‍न के उत्तर में एक ही शब्द बोलते हैं जैसे ‘क्या, कब,  हाँ, नहीं, है’; उत्तर में पुष्टि के लिए आश्वासन देने के उद्देश्य से ‘ज़रूर, बेशक’ आदि एक शब्द वाला वाक्य बोलते हैं। ‘रमेश, गीता’ आदि संबोधन; विस्मय, तिरस्कार, घृणा आदि की अभिव्यक्ति के लिए विस्मयादिबोधक शब्द ‘छि, थू, वाह’ एक शब्द की उक्तियाँ हैं। यह आवशयक नहीं कि हमेशा इन प्रसंगों में एक ही शब्द हो। भाषा में हर जगह विस्तार की गुंजाइश है जिसे हम ‘सिन्हा साहब, जी हाँ, बिला शक’ आदि उक्तियों में देख सकते हैं।

 

ख) संक्षिप्‍त वाक्य

इसका आधार शब्द लोप (Gapping) नाम की प्रक्रिया है। संक्षेप में उत्तर देने के उद्देश्य से हम सिर्फ़ माँगी गई सूचना देते हैं। जैसे, ”कार्यक्रम में कितने लोग आए थे ? ” “दस-पंद्रह भी नहीं।” हम संयुक्‍त वाक्यों की चर्चा आगे करेंगे। यहाँ इतना ही उल्लेख करना चाहेंगे कि दो उपवाक्यों में जो घटक समान हो, उसका संक्षेप में बोलने की दृष्टि से दूसरी जगह लोप हो जाता है। “मैंने कॉफ़ी ली और अब्दुल ने चाय।” यहाँ दूसरी बार ‘ली’ नहीं बोला गया है।

 

ग) अधूरा वाक्य

कई कारणों से वक्‍ता वाक्य को अधूरा छोड़ देते हैं जैसे धमकी के उद्देश्य से – “मेरा पैसा वापस कर दो, वरना…”। इस वाक्य में वक्‍ता परिणाम की कल्पना श्रोता पर छोड़ देता है। “हम जाना तो चाहते हैं, लेकिन…” इस वाक्य में वक्‍ता न जाने का कारण बताना आवश्यक नहीं समझता।

 

घ) अल्पांग वाक्य

ये भाषा की रूढ़ उक्तियाँ हैं, जिनकी रचना की व्याख्या आसान नहीं होती। अंग्रेज़ी में “What about me?”, “Well done” और हिंदी में ”यों ही”, “ख़ुदा कसम”, “करे तो सही” आदि इसके उदाहरण हैं।

 

4.2.  सरल वाक्य की रचना

सरल वाक्य की परिभाषा यह है कि इसमें केवल एक कर्ता और एक क्रिया होनी चाहिए। एक से अधिक क्रियाएँ होने पर वाक्य का प्रकार बदल जाएगा और हमें विश्‍लेषण की प्रक्रिया बदलनी पड़ेगी। हिंदी में कर्ता के दो प्रकार हैं और क्रियाओं के भी दो प्रकार हैं। इन दोनों के योग से आठ विशिष्‍ट प्रकार के वाक्य बनते हैं, जिन्हें आगे की तालिका में देखा जा सकता है।

सहायक क्रिया वाले वाक्य कार्य व्यापार वाले वाक्य
प्रत्यक्ष कर्ता    मैं इंजीनियर/बीमार हूँ।

 

टंकी छत पर है।

   अकर्मक – वह सो रहा है।

 

सकर्मक – मैं खाना खा रहा हूँ।

 

‘द्विकर्मक’ – हम गरीबों को दान देते हैं।

तिर्यक कर्ता     मुझे सिरदर्द है।

 

मेरे पास एक कार है।

    मुझे एक घड़ी लेनी है।

 

4.3  बीज वाक्य

 

कई बार लोग प्रश्‍न करते हैं कि हिंदी भाषा के बीज वाक्य कितने हैं और कौन-से हैं। इसका उत्तर तलाशने से पहले यह जानना आवश्यक होगा कि हम बीज वाक्यों की पहचान कैसे करें। जातिवाचक वाक्यों के संदर्भ में हमने देखा कि किसी वाक्य में आए शब्दों की स्थानापत्ति से भिन्न प्रकार के वाक्य नहीं बनते। “मैं पाठ पढ़ रहा हूँ” और “मैं पाठ लिख रहा हूँ” एक ही वाक्य प्रकार हैं। लिंग, वचन, काल, पक्ष आदि कोटियों से प्रकार नहीं बदलते। “मैं खाना खा रहा हूँ” और “मैंने खाना खाया” एक ही वाक्य प्रकार हैं। रूपांतरण से बना वाक्य भिन्न प्रकार का नहीं है। “त्योहार मनाए जाते हैं” बीज वाक्य “हम त्योहार मनाते हैं” से निर्मित है। संक्षिप्‍त, अधूरा या अल्पांग वाक्य बीज वाक्य से ही निर्मित होते हैं। वाक्य संयोजन के कारण सन्निहित उपवाक्य वाले सरल वाक्य बीज वाक्य नहीं हो सकते, जैसे “वह खाना खाकर सो गया”, “मुझे देखते ही वह घबरा गया” आदि। कुल मिलाकर कह सकते हैं कि बीज वाक्य का आधार रचनांतरण या व्याकरणिक कोटियाँ नहीं हैं। केवल क्रिया का रूप और संज्ञा पदबंधों के प्रकार बीज वाक्य के प्रकार सुनिश्चित करते हैं। सार रूप में कह सकते हैं कि ऊपर की तालिका में जो वाक्य दिए गए हैं वे ही हिंदी के आठ बीज वाक्य हैं। इनके बारे में दो स्पष्‍टीकरण आवश्यक हैं। पहले वाक्य में हमने संज्ञा और विशेषण दो प्रकार के शब्द रखे हैं। इन्हें एक ही कोटि मानने के तर्क हैं। भाषावैज्ञानिक प्रकार्यात्मक दृष्टि से संज्ञा और विशेषण को एक मानते हैं। कई जगह विशेषण संज्ञावत् कार्य करता है, जैसे ‘छोटा बदमाश है’, कई जगह संज्ञा विशेषण का कार्य करते हैं, जैसे ‘हिंदू धर्म’। दूसरी बात ‘द्विकर्मक’ के बारे में है। वास्तव में हमारी मान्यता के अनुसार किसी वाक्य में दो कर्म नहीं हो सकते। यह संप्रदान वाला वाक्य है। इसके बारे में आगे चर्चा करेंगे।

 

4.4 कारक और आधारभूत वाक्य

 

हम इस प्रकरण में चर्चा करेंगे कि आधारभूत वाक्य संरचनाओं के निर्माण में कारक व्यवस्था का क्या काम है। संबोधनकारक अपने में एक वाक्य है – एक शब्दवाला वाक्य, जैसे ‘लड़के!’, ‘बच्चो!’ आदि। वैसे एक शब्दवाले और वाक्य भी हैं जो संबोधन कारक नहीं हैं, जैसे ‘वाह’, ‘हाँ’ आदि। अंतर यही है कि संबोधनकारक अन्य वाक्यों की तरह विस्तार पा सकता है। उदाहरण के लिए देखिए–

 

अपने प्राणों पर खेलकर देश की रक्षा करनेवाले मेरे प्यारे नौजवानो!

 

संबंधकारक को कई वैयाकरण कारक नहीं मानते, क्योंकि इसका क्रिया से सीधा संबंध नहीं है। हम यह बताना चाहेंगे कि इससे एक बीज वाक्य की सृष्टि होती है। यों कह सकते हैं कि बीज वाक्य “मेरे पास एक कार है” से ही ‘मेरी कार’ की रचना स्पष्‍ट होती है। इसी तरह “मुझे सिरदर्द है” से ‘मेरा सिरदर्द’ सिद्ध होता है। इन दोनों को एक ही प्रकार मानें या दो, यह विवाद का विषय है।

 

अब हम कार्य व्यापार वाले वाक्यों की रचना में कारकों के प्रकार्य की चर्चा करेंगे। इनमें ‘जाना’, ‘करना’ आदि व्यापारसूचक क्रियाएँ आती हैं। इन क्रियाओं के ही तीन भेदों से तीन बीज वाक्य बनते हैं। प्रेरणार्थक क्रिया मूल क्रिया नहीं है, व्युत्पन्न क्रिया है।

 

अकर्मक वाक्य – कर्ता + ‘सोना’ आदि अकर्मक क्रिया

सकर्मक वाक्य – कर्ता + कर्म + ‘करना’ आदि सकर्मक क्रिया

द्विकर्मक वाक्य – कर्ता + कर्म + संप्रदान + ‘देना’ आदि द्विकर्मक क्रिया

 

अब हम करण कारक और अधिकरण कारक की वाक्य में प्रकार्य की चर्चा करें। करण कारक दूसरे और तीसरे प्रकार में ऐच्छिक रूप में आ सकता है। जैसे, मैंने चाकू से फल काटे, हमने अपने हाथ से पैसे दिए। अधिकरण कारक तीनों प्रकार के वाक्यों में ऐच्छिक रूप में आ सकता है। जैसे, मैं छत पर सोया, हमने होटल में खाना खाया आदि। आप तालिका से देख सकते हैं कि अकेले अधिकरण कारक से भी एक बीज वाक्य बनता है।

 

अब बचा संप्रदान कारक। वैयाकरण इसे मात्र एक उदाहरण देकर निपटा देते हैं, जैसे ‘पिता ने उसे रुपये दिए’। वास्तव में संप्रदान और अपादान की जोड़ी है और दोनों में परस्परता का संबंध है। इस संबंध को हम निम्न प्रकार से क्रमशः इन दोनों के परस्पर आश्रित क्रिया युग्म से स्पष्‍ट कर सकते हैं।

 

                     अकर्मक                      सकर्मक

संप्रदान            जाना                        बेचना        देना

अपादान          आना                        ख़रीदना     लेना

 

उतरना – चढ़ना, निकलना – पहुँचना, निकालना – डालना, मिलना – भेजना आदि युग्म इसके उपवर्ग हो सकते हैं। परस्पर आश्रितता के कारण इन्हें एक ही बीज वाक्य माना जा सकता है, भले ही दोनों में कारक भिन्न हों। 

  1. 5. रचनांतरण

    बीज वाक्यों के अतिरिक्‍त सरल वाक्य के अन्य कुछ प्रकार हैं जो रचनांतरण से बनते हैं। केवल कार्य व्यापार वाले वाक्यों से ही रचनांतरित वाक्य बनते हैं क्योंकि इनमें कार्य करने में अन्य व्यक्तियों की भागिता का विवरण जोड़ा जा सकता है। आगे हम दो प्रकार के रचनांतरित वाक्यों की चर्चा करेंगे।

 

5.1 वाच्य

सकर्मक वाक्यों में कर्ता का उल्लेख छोड़ दिया जाए, तो कर्मवाच्य का रचनांतरण होता है। हम इन वाक्यों में कर्म को (उस कार्य को) महत्व देते हैं, करनेवाले को नहीं। इस कारण आगे के दोनों वाक्यों में दूसरा अधिक प्रचलित है।

 

       भारत में हम सब बड़ी धूमधाम से दीवाली मनाते हैं।

       भारत में बड़ी धूमधाम से दीवाली मनायी जाती है।

 

कुछ व्याकरण अंग्रेज़ी की नकल में कर्ता में ‘से’ के प्रयोग की सिफ़ारिश करते हैं, जैसे ‘राम से रावण मारा गया’ । कर्ता होने की स्थिति में वाक्यों में कर्मवाच्य की आवश्यकता ही नहीं है। हमें कभी ”मुझसे खाना खाया गया” कहने की आवश्यकता ही नहीं पड़ती। अगर औपचारिक संदर्भों में कर्ता का उल्लेख करना हो तो कर्ता में ‘द्वारा’ का प्रयोग देखा जा सकता है। उदाहरण देखें-

 

पाइप को तोड़कर बच्चे को बाहर निकाला गया।

मंत्री द्वारा कर में छूट की घोषणा की गई।

 

कार्य व्यापार वाले तीनों वाक्यों में प्रत्यक्ष कर्ता में ‘से’ जोड़ने पर अशक्‍तताबोधक वाक्य का रचनांतरण होता है। अशक्‍तता सूचित करनेवाले अकर्मक वाक्यों को व्याकरण भाववाच्य कहते हैं। उदाहरण देखें-

 

मुझसे चला नहीं जा रहा है।

मुझसे इतनी गर्म चाय नहीं पी जाएगी।

यह घर मुझसे बेचा नहीं जाएगा।

 

5.2  सम्मिश्र वाक्य

हमने ऊपर उल्लेख किया कि सरल वाक्यों में एक ही विधेय आ सकता है। विधेय का तात्पर्य यह है कि एक ही क्रिया पदबंध आना चाहिए। लेकिन हम देखते हैं कि कुछ सरल वाक्यों में एक से अधिक क्रिया रूप दिखाई देते हैं जैसे ”वह खाना खाकर सो गया”। क्या यह भी सरल वाक्य है ? कुछ वैयाकरण ‘खाकर’ को पूर्वकालिक कृदंत कहकर उत्तर देने से बच जाते हैं, कुछ वैयाकरण इसे क्रियाविशेषण कहकर छुट्टी पा जाते हैं।

 

हम पहले इस बात का उत्तर ढूँढ़ लें कि वाक्य में दो क्रियाओं का होना नियमविरुद्ध तो नहीं है ? हमें परिभाषा में थोड़ा परिवर्तन करना होगा। सरल वाक्य में एक ही समापिका क्रिया आ सकती है। इसका तात्पर्य यह है कि ‘खाकर’ असमापिका क्रिया है और परिभाषा के अनुसार यह वाक्य सही है। बीज वाक्यों में जितनी क्रियाएँ हैं, वे समापिका क्रियाएँ हैं, इनसे वाक्य की समाप्ति हो जाती है। इसी तरह तथ्येतर वाक्यों की ‘करूँ’, ‘करें’ आदि क्रियाएँ भी समापिका क्रियाएँ हैं। असमापिका क्रियाएँ अपने में पूर्ण किसी वाक्य के रूप हैं। ‘खाकर’ वास्तव में संयुक्‍त वाक्य का एक प्रकार है और अंग्रेज़ी इस वाक्य को इसी रूप में प्रयोग में लाती है, जैसे He had his food and went to sleep. हिंदी भाषा ने पहले वाक्य को असमापिका क्रियावाला उपवाक्य बनाकर सरल वाक्य में मिला दिया। इस तरह मिलाए गए उपवाक्य को आधायित उपवाक्य (Embedded clause) कहा जाता है। आधायित उपवाक्यवाले पूरे वाक्य को हम सम्मिश्र वाक्य (Embedded sentence) की संज्ञा दे सकते हैं। हिंदी के अन्य सम्मिश्र वाक्य देखिए और उनमें दोनों क्रियाओं के संदर्भ में दो अलग वाक्यों की पहचान कीजिए-

 

बच्चे खेलते-खेलते थक गए।

मेरे अंदर आते ही सब चुप हो गए।

मैंने घर जाते हुए बच्चों को देखा। (संदिग्ध वाक्य)

 

पिछले पाठ में हमने रेखांकित क्रिया में संदिग्धता की चर्चा की थी। अगर ‘घर जाते हुए ‘मैं’ के साथ जाए तो वह मूल वाक्य का क्रियाविश्‍लेषण है, अगर वह ‘बच्चों’ के साथ जाए तो वह ‘बच्चों’ का विशेषण है। चाहे विशेषण हो या क्रियाविशेषण, दोनों उपवाक्य आधायित हैं, जिनकी आंतरिक संरचना को वाक्य के विस्तार में ही देख सकते हैं।

 

विशेषण – बच्चे घर जा रहे हैं, आप उनसे मिल लीजिए।

क्रियाविशेषण – आप घर जा रहे हैं, (रास्ते में) बच्चों से मिल लीजिए।

 

वाक्य में स्थिति के आधार पर संदिग्धता का निवारण नहीं हो सकता। संदिग्धता के निवारण के लिए हम अन्य उपायों का सहारा ले सकते हैं। उदाहरणस्वरूप एक वाक्य देखिए – ”आप घर जाते हुए ज़रा बच्चों से मिल लीजिए।” अगर सन्निहित उपवाक्य ‘घर जाते हुए’ शब्द ‘बच्चों’ का विशेषण हो, तो उन दोनों के बीच मूल वाक्य का क्रियाविशेषण ‘ज़रा’ नहीं आ सकता। तब दोनों क्रियाएँ ‘आप’ के साथ ही आएँगी।

 

5.3  प्रेरणार्थक क्रिया

कई भाषावैज्ञानिक प्रेरणार्थक क्रिया के वाक्यों को भी रूपांतरित वाक्य मानते हैं। इनके दो उदाहरण देखिए-

माँ रोज़ शाम को मुझे गृहकार्य कराती हैं।

पिता जी ने अपना सूट धुलवाया।

 

प्रेरणार्थक क्रिया को निष्पन्न वाक्य मानने का एक आधार है। पहले वाक्य में छिपा हुआ एक वाक्य है – “मैं रोज़ शाम को गृहकार्य करती हूँ।“ लड़की के गृहकार्य करने में माँ सहायक का काम करती हैं। दूसरे वाक्य में यह पता नहीं चलता कि धोने का काम कौन कर रहा है, क्योंकि यहाँ इसका उल्लेख आवश्यक नहीं समझा गया। यह तो निश्चित है कि धोनेवाला पिता जी नहीं, कोई और है। इन वाक्यों को देखने पर यह भी स्पष्‍ट हो जाता है कि क्रिया ‘कराना’ का कर्ता ‘माँ’ है और ‘धुलवाना’ का कर्ता ‘पिता जी’ है। इस तरह इन वाक्यों में कार्य व्यापार से दो कर्ता जुड़ते हैं – एक व्यापार का वास्तविक कर्ता और दूसरा प्रेरणार्थक क्रिया का वाक्यगत कर्ता। 

  1. 6. विस्तृत वाक्य

   वाक्य विस्तार से हमारा क्या तात्पर्य है ? बीज वाक्य में अनिवार्य घटक होते हैं। इनके पदबंधों में विशेषण और क्रियाविशेषण आदि ऐच्छिक घटक जोड़ने से सरल वाक्यों का आकार में विस्तार होता है, लेकिन मूल रचना प्रभावित नहीं होती। आधायित सरल वाक्य में दूसरा वाक्य पदबंध के रूप में सरल वाक्य का अंग बन जाता है।

 

जब एक से अधिक सरल वाक्य जुड़ते हैं, तो उसे विस्तृत वाक्य की संज्ञा दी जा सकती है। विस्तृत वाक्य में दो या अधिक उपवाक्य होते हैं और सभी समापिका क्रिया के साथ आते हैं। इसके दो प्रकार हैं – संयुक्‍त वाक्य और मिश्र वाक्य। इनमें यह अंतर बताया जाता है कि संयुक्‍त वाक्य के उपवाक्य स्वतंत्र हैं, अकेले वाक्य का दर्जा पा सकते हैं। जैसे, “सोहन अंदर आया और लीना बाहर चली गई।“ मिश्र वाक्य में एक या अधिक उपवाक्य आश्रित होते हैं, अकेले स्वतंत्र वाक्य के रूप में नहीं आ सकते, जैसे ”अगर आप कहें तो मैं चला जाऊँगा” का पहला उपवाक्य।

 

6.1   संयुक्‍त वाक्य (Compound sentence)

संयुक्‍त वाक्य में एक से अधिक स्वतंत्र उपवाक्य होते हैं। इन्हें जोड़नेवाले शब्द योजक कहलाते हैं। उदाहरण वाले वाक्यों में रेखांकित योजक शब्दों पर ध्यान दीजिए-

 

सोहन अंदर आया और लीना बाहर चली गई।

आप यहाँ बैठ सकते हैं या ऊपर जाकर आराम कर सकते हैं।

मैं जाना चाहता था लेकिन नहीं गया।

 

6.2   मिश्र (Complex sentence)

मिश्र वाक्य में कम से कम एक आश्रित उपवाक्य होना चाहिए। इसके तीन प्रकार बताए जाते हैं। इसका कोई योजक शब्द नहीं है, लेकिन तीनों प्रकारों की अपनी-अपनी विशेषता है। निम्नलिखित वाक्यों में दोनों उपवाक्यों में उनमें संबंध जोड़नेवाला एक-एक शब्द आता है।

 

शर्त वाले वाक्य – अगर/यदि आप चाहेंगे तो मैं चला जाऊँगा।

संबंधवाचक वाक्य – जो व्यक्ति झूठ बोलता है, उसकी बात कोई नहीं मानता।

तीसरे प्रकार के मिश्र वाक्य में आश्रित उपवाक्य को मूल उपवाक्य से ‘कि’ जोड़ता है।

हम जानते हैं कि हिंदी एक सरल भाषा है।

 

‘कि’ वाला वाक्य संज्ञा उपवाक्य कहा जाता है क्योंकि यह पहले वाक्य के कर्म (संज्ञा) की तरह है। ‘जो’ का वाक्य विशेषण उपवाक्य कहलाता है और ‘जब’, ‘जहाँ’ के वाक्य क्रियाविशेषण उपवाक्य कहलाते हैं।

 

व्याकरण ग्रंथ अधिकतर ‘कहना, पूछना, जानना, देखना’ आदि क्रियाओं के साथ ‘कि’ वाले संज्ञा  उपवाक्य की ही चर्चा करते हैं। आधुनिक भाषाविज्ञान में तथ्येतर वर्ग की संभावनार्थ क्रियाओं के साथ ‘कि’ उपवाक्य पर बहुत काम हो रहा है। इसके कई आयाम हैं। पूरा उपवाक्य संज्ञा पदबंध बन सकता है, जैसे ”उन लोगों का यह विश्वास कि धरती सपाट है”, ”धरती की सपाटता संबंधी उन लोगों का यह विश्वास” आदि। इन वाक्यों में मंतव्य के उपवाक्य को छोड़ दिया जाए, तो संभावनार्थ क्रिया अकेला सरल वाक्य बन जाती है, जैसे-

 

मैं चाहता हूँ कि आप आएँ > आप आएँ।

मेरा सुझाव है कि आप अकेले जाएँ > आप अकेले जाएँ।

इस संक्षिप्तीकरण में वक्‍ता का मंतव्य प्रकट नहीं होता, हमें संदर्भ से ही इसका अनुमान करना होगा।

 

जिस तरह ‘खाकर’ वाला वाक्य संयुक्‍त वाक्य से निष्पन्न सम्मिश्र वाक्य है, उसी तरह मिश्र वाक्यों से भी सम्मिश्र वाक्यों की रचना होती है। उदाहरण के लिए, मैं चाहता हूँ कि एक घड़ी लूँ > मैं एक घड़ी लेना चाहता हूँ। मेरी इच्छा है कि खीर बनाऊँ। > मेरी खीर बनाने की इच्छा है। यह ज़रूरी है कि आप आएँ। > आपका आना ज़रूरी है। मुझे लगा कि वह होशियार है। > मुझे वह होशियार लगा।

 

इस तरह हम वाक्यों के अंतःसंबंधों को समझ जाएँ, तो भाषा का विशद ज्ञान प्राप्‍त कर सकेंगे। 

  1. निष्‍कर्ष

    हम सामान्य बोलचाल में प्रश्‍न करते हैं या प्रश्‍नों के उत्तर देते हैं। स्थिति के अनुसार आशंका, आश्‍चर्य आदि व्यक्‍त करते हैं। इन संदर्भों में बोले गए वाक्यों को भाषा व्यवहार के प्रकार्य से जोड़ते हैं। यहाँ बताए गए तीन प्रकार क्रमशः प्रश्‍नवाचक, निश्‍चयार्थ और विस्मयादिबोधक वाक्य कहे जाते हैं। ये तीनों प्रकार वस्तु जगत के तथ्यों के परिचायक हैं। अतः इन्हें तथ्यपरक वाक्य कहा जाता है।

 

तथ्येतर वाक्य वस्तु सत्य पर आधारित नहीं हैं, इस कारण इनकी सत्यता की परीक्षा नहीं हो सकती। ये वाक्य इच्छा, डर, अनुरोध करना या अनुमति माँगना आदि स्थितियों में प्रयुक्‍त होते हैं। इन दोनों प्रकारों में प्रश्‍न और उत्तर की शृंखला दिखाई देती है। विस्मयादिबोधक केवल तथ्यपरक वाक्य है।

 

रचना के आधार पर हम वाक्य के अनिवार्य घटकों को ध्यान में रखते हुए बीज वाक्यों की स्थापना कर सकते हैं। हिंदी में आठ बीज वाक्य हैं। ये वाक्य दो प्रकार की क्रियाओं यथा सहायक क्रिया और व्यापारसूचक क्रिया तथा दो प्रकार के कर्ता यथा प्रत्यक्ष क्रिया और संप्रदान कारक क्रिया के योग से बनते हैं। इन बीज वाक्यों से रचनांतरण की प्रक्रिया से वाच्य और प्रेरणार्थक वाक्य निर्मित होते हैं। पदबंध विस्तार की प्रक्रिया से याने विशेषण और क्रियाविशेषण जोड़ने से सरल वाक्यों का विस्तार होता है। रचनांतरण की प्रक्रिया से ही सरल वाक्य में आधायित उपवाक्य जोड़ा जाता है। इन वाक्यों को सम्मिश्र वाक्य कहा जा सकता है।

 

एक से अधिक वाक्यों को मिलाकर हम विस्तृत वाक्यों की रचना करते हैं। दो या अधिक सरल वाक्यों को ‘और’, ‘या’, ‘लेकिन’ आदि योजक शब्दों से जोड़ने से संयुक्‍त वाक्य बनता है और सरल वाक्यों के साथ एक या अधिक आश्रित उपवाक्य जोड़ने पर मिश्र वाक्य की रचना होती है। ‘अगर’ के वाक्य, ‘जो’  के वाक्य तथा ‘कि’  वाले वाक्य मिश्र वाक्य के उदाहरण हैं।

you can view video on वाक्य की संरचनात्मक एवं प्रकार्यात्मक कोटियाँ

 

अतिरिक्‍त जानें

बीज शब्‍द

  1. बीज वाक्य (Kernel sentence) वह वाक्य जो केवल अनिवार्य घटकोंसे निर्मित हो और दूसरे बीज वाक्यों से क्रिया और कारकों के कारण भिन्न हो।
  2. रचनांतरण (Transformation) सरल वाक्य का मिलती-जुलती रचना में परिवर्तन
  3. तथ्यपरक, तथ्येतर वाक्य का वह प्रकार जो वस्तु सत्य प्रकट करे/ न करे।
  4. शब्द लोप (Gapping) संयुक्‍त वाक्य में पहले उपवाक्य के पदों का दूसरे उपवाक्य में लोप कर देना
  5. समापिका क्रिया (Finite verb) बीज वाक्य में आनेवाली क्रियाएँ, है, हो, आया, आए आदि
  6. असमापिका क्रिया आधायित उपवाक्य में आनेवाली क्रियाएँ, लेकर, आते हुए आदि
  7. अशक्‍तताबोधक वह वाक्य प्रकार जिसमें कार्य करने में अक्षमता का बोध हो।
  8. प्रोक्ति (Discourse) भाषा में वाक्य से बड़ी इकाई, संवाद, भाषण आदि
  9. आधायित उपवाक्य (Embedded sentence) किसी सरल वाक्य का पदबंध के रूप में परिवर्तित घटक जो दूसरे सरल वाक्य का अंग बन जाए।
  10. आश्रित उपवाक्य (Dependent clause) मिश्र वाक्य का उपवाक्य जो स्वतंत्र वाक्य के रूप में नहीं आ सकता।
  11. घटक (Constituent) किसी संरचना के खंड, जैसे संज्ञा पदबंध ‘नयी गाड़ी’ में दो घटक हैं – विशेषण और संज्ञा।

    पुस्‍तकें

  1. गुरु, कामताप्रसाद. (1920). हिंदी व्‍याकरण. काशी : नागरी प्रचारिणी सभा
  2. जैन, महावीर सरन. (1974). हिंदी की उपवाक्‍य संरचना. मसूरी : जर्नल ऑफ द नेशनल अकेदमी ऑफ एडमिनिस्‍ट्रेशन
  3. सहाय, चतुर्भुज. (1978). हिंदी वाक्‍य रचना. वाराणसी : संजय बुक सेंटर
  4. सिंह, सूरजभान. (2000 सं.). हिंदी का वाक्‍यात्‍मक व्‍याकरण. दिल्‍ली : साहित्‍य सहकार
  5. Jagannathan, V.R.; Bahri, Ujjal Singh. (1973). Introductory Course in Spoken Hindi: A Microwave Approach in Language Teaching, Chandigarh: Bahri Publications 

    वेब लिंक

 

https://hi.wikipedia.org/s/51p

http://bharatdiscovery.org/india/वाक्य

https://www.youtube.com/watch?v=wRVlJmRZJf4

www.linguanet.in